गुरुवार, 8 फ़रवरी 2018

कौन अपना ? कौन पराया ? ------ विजय राजबली माथुर





प्रस्तुत चित्र में प्रदर्शित अपने देश के सर्वाधिक ठंडे स्थान ' द्रास ' क्षेत्र के ' ज़ोजिला ' दर्रे में फंस कर एक पूरी रात गुजारने का मौका मुझे भी मिला है जिसका वर्णन 2011 में लिखित संस्मरणों से उद्धृत किया जा रहा है :

 "हेमंत कुमार जी छात्र जीवन में सयुस(समाजवादी युवजन सभा)  में रहे थे और बांग्लादेश आन्दोलन में दिल्ली के छात्र प्रतिनिधि की हैसियत  से भाग ले चुके थे.लेकिन होटल मुग़ल के पर्सोनल मेनेजर के रूप में कर्मचारियों के हितों के विपरीत कार्य करके हायर मेनेजमेंट  को खुश करना चाहते थे.कारगिल,लद्दाख में आई.टी.सी.ने एक लीज प्रापर्टी 'होटल हाई लैंड्स'ली थी.यह होटल ,होटल मुग़ल के जी.एम्.के ही अन्डर था.पेंटल साहब सीराक होटल,बम्बई ट्रांसफर होकर जा चुके थे और सरदार नृप जीत  सिंह चावला साहब नये जी.एम्.थे,वह भी एंटी एम्प्लोयी छवि के थे.यूं.ऍफ़.सी.शेखर साहब की जगह पी.सुरेश रामादास साहब आ गए थे जो पूर्व मंत्री एवं राज्यपाल सत्येन्द्र नारायण सिंहां के दामाद थे और अटल बिहारी बाजपाई के प्रबल प्रशंसक थे.१९८० के मध्यावधी चुनावों में इंदिरा गांधी पहली बार आर.एस.एस.के समर्थन से पूर्ण बहुमत से सत्ता में वापिस आ चुकीं थीं.२५ मार्च १९८१ को मेरी शादी करने की बाबत फाइनल फैसला हो चुका था.इतनी तमाम विपरीत परिस्थितियों में मुझे अस्थायी तौर पर (मई से आक्टूबर)होटल हाई लैंड्स ,कारगिल ट्रांसफर कर दिया गया.इन्कार करके नौकरी छोड़ने का यह उचित वक्त नहीं था.

२४ मई १९८१ को होटल मुग़ल से पांच लोगों ने प्रस्थान किया.छठवें अतुल माथुर,मेरठ से सीधे कारगिल ही पहुंचा था.आगरा कैंट स्टेशन से ट्रेन पकड़ कर दिल्ली पहुंचे और उसी ट्रेन से रिजर्वेशन लेकर जम्मू पहुंचे.जम्मू से बस   द्वारा श्री नगर गए जहाँ एक होटल में हम लोगों को ठहराया गया.हाई लैंड्स के मेनेजर सरदार अरविंदर सिंह चावला साहब -टोनी चावला के नाम से पापुलर थे,उनका सम्बन्ध होटल मौर्या,दिल्ली से था.वह एक अलग होटल में ठहरे थे,उन्होंने पहले १५ हजार रु.में एक सेकिंड हैण्ड जीप खरीदी जिससे ही वह कारगिल पहुंचे थे.४-५ रोज श्री नगर से सारा जरूरी सामान खरीद कर दो ट्रकों में लाद कर और उन्हीं ट्रकों से हम पाँचों लोगों को रवाना कर दिया.श्री नगर और कारगिल के बीच 'द्रास'क्षेत्र में 'जोजीला'दर्रा पड़ता है.यहाँ बर्फबारी की वजह से रास्ता जाम हो गया और हम लोगों के ट्रक भी तमाम लोगों के साथ १२ घंटे रात भर फंसे रह गए.नार्मल स्थिति में शाम तक हम लोगों को कारगिल पहुँच चूकना था.( ठीक इसी स्थान पर बाद में किसी वर्ष सेना के जवान और ट्रक भी फंसे थे जिनका बहुत जिक्र अखबारों में हुआ था).

इंडो तिब्बत बार्डर पुलिस के जवानों ने अगले दिन सुबह बर्फ कट-काट कर रास्ता बनाया और तब हम लोग चल सके.सभी लोग एकदम भूखे-प्यासे ही रहे वहां मिलता क्या?और कैसे?बर्फ पिघल कर बह रही थी ,चूसने पर उसका स्वाद खारा था अतः उसका प्रयोग नहीं किया जा सका .तभी इस रहस्य का पता चला कि,इंदिरा जी के समक्ष एक कनाडाई फर्म ने बहुत कम कीमत पर सुरंग(टनेल)बनाने और जर्मन फर्म ने बिलकुल मुफ्त में बनाने का प्रस्ताव दिया था.दोनों फर्मों की शर्त थी कि ,'मलवा' वे अपने देश ले जायेंगें.इंदिराजी मलवा देने को तैयार नहीं थीं अतः प्रस्ताव ठुकरा दिए.यदि यह सुरंग बन जाती तो श्री नगर से लद्दाख तक एक ही दिन में बस  द्वारा पहुंचा जा सकता था जबकि अभी रात्रि हाल्ट कारगिल में करना पड़ता है.सेना रात में सफ़र की इजाजत नहीं देती है. " 
घर , बाहर , समाज, राजनीति  सभी  क्षेत्रों  का मेरा निजी अनुभव यह रहा है कि , जिन लोगों ने मुझसे कोई भी फायदा उठाया है वे ही मुझे पीछे धकेलने के  प्रयासों में आगे रहे हैं। वैसे तो मैं  निराश कभी होता नहीं हूँ परंतु इस बार अपने जन्मदिन  ( 05 फरवरी ) पर प्राप्त बधाई संदेशों पर प्रारम्भ में यह उत्तर बतौर टिप्पणी दिया था : 
 " आपकी शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद , वस्तुतः इस धरती पर एक बोझ के 66 वर्ष कम हुये। "  वैसे मैंने प्रत्येक संदेश - प्रेषक को व्यक्तिगत रूप से उत्तर दिया है फिर भी उनमें से कुछ का उल्लेख करना उचित प्रतीत होता है। 
किन्तु उत्तर - प्रदेश की प्रथम संविद सरकार में गृह राज्यमंत्री रहे कामरेड रुस्तम सेटिन साहब की सुपुत्री कामरेड रीना सेटिन जी ने जो प्रत्युत्तर दिया उसी ने इस विवरण का शीर्षक " कौन अपना ?  कौन पराया ? " रखने की प्रेरणा दी है।   
कामरेड रीना सेटिन जी ने  सन्मार्ग को इंगित कर सच्चे अर्थों में एक बहन की भूमिका का निर्वहन किया है। 
जबकि सगे कहे जाने वाले बहन - भाई और रिश्तेदार  तथा निकटतम लोग टांग - खिचाई का कोई भी मौका नहीं छोडते हैं। 



यद्यपि अपने ही माता - पिता के पुत्र - पुत्री मेरे सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी विपरीत  रुख रखने के कारण और छोटे होने के कारण  जबरिया दबा पाने में असमर्थ रहने के कारण दूरी बनाए हुये हैं  हमारे बाबाजी  ( Grand Father ) के चचेरे भाई साहब के पौत्र - पौत्री  अपने कहलाने वाले भाई - बहन से भी कहीं अधिक अपनत्व अपनाते हैं । उनके बधाई संदेशों  को सहेजना और सार्वजनिक करना ज़रूरी लगता है :



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पुत्र एवं कुछ अन्य फेसबुक फ्रेंड्स के संदेशों को भी देना अनुचित नहीं होगा। जिन लोगों ने इन बाक्स मेसेज के जरिये अपने संदेश भेजे वे क्रमानुसार अशरफ पूकम, पवन करन,महेश दौनिया,गौतम कुमार साहेबान तथा बहन सुषमा सिंह जी एवं सूर्यकांत सरवासे व नाना साहब कदम साहेबान  हैं। 






इनके अतिरिक्त एक निकटतम रिशेदार की निकटतम रिश्तेदार जिनसे मेरा कोई सीधा रिश्ता नहीं है , सिर्फ फेसबुक फ्रेंड हैं ने भी उतनी ही आत्मीयता से अपना संदेश दिया है जितनी आत्मीयता से उपरोक्त चचेरे भाइयों व बहन ने किन्तु उनका नामोल्लेख करना इसलिए उचित नहीं है कि, नाम सार्वजनिक होने पर उनके व हमारे निकटतम रिश्तेदार कहीं उनसे  भी नफरत न करने लगें जिस प्रकार कि मुझसे घोर नफरत रखते हैं। 

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