बुधवार, 19 अक्तूबर 2016

हम और हमारे पर्व ------ विजय राजबली माथुर

*जब पृथ्वी पर मानव सभ्यता का विकास हुआ तब मानव जीवन को सुखी,सम्पन्न,समृद्ध व दीर्घायुष्य बनाने के लिए प्रकृतिक नियमों के अनुसार चलने के सिद्धान्त खोजे और बताए गए थे। कालांतर में निहित स्वार्थी किन्तु चालाक मनुष्यों ने अपने निजी स्वार्थ के चलते उन नियमों को विकृत करके मानवता प्रतिगामी बना दिया और बड़ी ही धूर्तता से उसे धर्म के आवरण में ढक कर पेश किया जबकि वह कुतर्क पूरी तरह से अधार्मिक व थोथा पाखंड-ढोंग -आडंबर ही था। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि, खुद को एथीस्ट और प्रगतिशील कहलाने वाला तबका भी उसे ही धर्म की संज्ञा देकर अज्ञान-अंधकार को बढ़ाने में पोंगापंथियों की अप्रत्यक्ष सहाता ही करता है। 
अर्थशास्त्र के 'ग्रेशम ' सिद्धान्त के अनुसार खराब मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है उसी प्रकार समाज में भी खराब बातें अच्छी बातों को बेदखल कर देती हैं। बदलते मौसम के अनुसार कुछ पर्व और उनके नियम मनुष्य के फायदे के लिए बनाए गए थे जिनको आज न कोई जानता है न ही जानना चाहता है। आज हर पर्व - त्योहार व्यापार/उद्योग जगत के मुनाफे का साधन बन कर रह गया है। अब ये पर्व स्वास्थ्य वर्द्धक जीवनोपयोगी नहीं रह गए हैं। 
पाँच वर्ष पूर्व से मेरी पत्नी ने मेरी बात मान कर 'करवा चौथ' , 'बरमावस ' जैसे हीन पर्वों का परित्याग कर दिया है। अतः हमारे घर से ढोंग-पाखंड विदा हो चुका है। हम अब सुविधानुसार मेटेरियल साईन्स : पदार्थ विज्ञान पर आधारित हवन ही करते हैं जो पर्यावरण शुद्धि का भी साधन है।

*जब तुलसीदास ने तत्कालीन शासन - व्यवस्था के विरुद्ध जनता का आह्वान करने हेतु 'रामचरितमानस ' को प्रारम्भ में 'संस्कृत ' में लिखना शुरू किया था तब काशी के ब्राह्मणों ने उनकी पांडु लिपियों को जला जला दिया जिस कारण उनको अयोध्या आकर 'अवधी ' में रचना करनी पड़ी। कालांतर में ब्राह्मणों ने दो चालें चलीं एक तो 'रामचरितमानस ' में 'ढ़ोल,गंवार,शूद्र,नारी ... ' जैसे प्रक्षेपक ठूंस कर तुलसीदास को और प्रकारांतर से राम को बदनाम कर दिया। दूसरी चाल काफी गंभीर थी जिसके जरिये एक जन - नायक राम को 'अवतार ' या 'भगवान ' घोषित करके उनका अनुसरण करने से रोक दिया गया।
वस्तुतः रावण प्रकांड विद्वान  और वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ तो था किन्तु था विसतारवादी/साम्राज्यवादी उसने लगभग सम्पूर्ण विश्व की अपने अनुकूल घेराबंदी कर ली थी और भारत पर भी कब्जा करना चाहता था। उसे 'दशानन ' दसों दिशाओं ( पूर्व,पश्चिम,उत्तर,दक्षिण,ईशान - उत्तर पूर्व,आग्नेय - दक्षिण पूर्व,नेऋत्य - दक्षिण पश्चिम,वावव्य - उत्तर पश्चिम,अन्तरिक्ष,भू गर्भ ) का ज्ञाता होने के कारण कहा जाता था । ...रावण ने सीता का अपहरण नहीं किया था राम व सीता की यह कूटनीति थी कि, सीता ने लंका पहुँच कर वहाँ की सामरिक व आर्थिक सूचनाओं को राम तक पहुंचाया था। सीता से सूचना पाकर ही राम की वायु सेना के प्रधान ' हनुमान ' ने 'राडार ' (सुरसा ) को नष्ट कर लंका में प्रवेश किया और कोशागार तथा आयुद्ध भंडारों को नष्ट करने के अलावा ' विभीषण ' को राम के साथ आने को राज़ी किया था।  भारत की जनता की ओर से राम ने कूटनीतिक व सामरिक युद्ध में रावण को परास्त कर भारत को साम्राज्यवाद की जकड़ से बचा लिया था। लेकिन दुर्भाग्य से आज वही राम साम्राज्यवादियों, व्यापारियों एवं ब्राह्मणों द्वारा जनता की लूट व शोषण हेतु तथा बाज़ार/कारपोरेट घरानों  की मजबूती के लिए प्रयोग किए जा रहे हैं।

*'ॐ नमः शिवाय च ' का अभिप्राय है भारत देश को नमन। इसे समझने के लिए भारत वर्ष का मानचित्र लेकर 'शिव ' के रूप मे की गई कल्पना को मिला कर विश्लेषण करना होगा। उत्तर में  हिम - आच्छादित हिमालय ही तो शिव के मस्तक का अर्द्ध चंद्र है। शिव के मस्तक में 'गंगा ' का प्रवेश इस बात का सूचक है कि, भारत भाल के ऊपर 'त्रिवृष्टि ' - तिब्बत स्थित 'मानसरोवर झील ' से गंगा का उद्गम है। शिव के साथ सर्प, बैल (नंदी ), मनुष्य आदि विविध जीवों का दिखाया जाना ' भारत की  विविधता में एकता ' का संदेश है। 'शिव ' का अर्थ ज्ञान - विज्ञान से है अर्थात शिव का आराधक व्यापक दृष्टिकोण वाला ही हो सकता है जो सम्पूर्ण देश के सभी प्राणियों के साथ सह - अस्तित्व की भावना रखता हो। इसका यह भी अर्थ है कि, जो देश के सभी प्राणियों से एक समान व्यवहार नहीं रखता है वह 'शिव - द्रोही ' अर्थात 'भारत देश का द्रोही ' है। तुलसीदास ने राम द्वारा यही कहलाया है 'जो सिव द्रोही सो मम द्रोही '। जो राम भक्त होने का दावा करे और राम के देश अर्थात शिव भारत के सभी लोगों में समान भाव न रखे वह न तो देश भक्त है न ही राम भक्त। 

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