मंगलवार, 4 अगस्त 2015

उदारता और संघर्ष --- विजय राजबली माथुर

 **कल तीन अगस्त को यह ब्लाग प्रारम्भ किए हुये पाँच वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। पचास वर्ष पूर्व जब सिलीगुड़ी में नौवीं कक्षा में पढ़ रहा था तब  कोर्स के  एक निबंध का यह वाक्यांश आज भी याद है -" उदारता एक मानवीय गुण है सभी को उदार होना चाहिए किन्तु उसके साथ-साथ पात्र की अनुकूलता भी होनी चाहिए। "

याद होने के बावजूद कभी-कभी अयोग्य और प्रतिकूल पात्र को न पहचान पाने के कारण भारी नुकसान भी उठाना पड़ता है। हाल के ऐसे ही कुछ  सच्चे घटनाक्रम का उल्लेख यहाँ कर रहा हूँ। :
https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/919462651449045

जिनकी चर्चा है वह महानुभाव फेसबुक पर रिक्वेस्ट भेज कर फ्रेंड बन गए थे। मित्रता दिवस पर उनकी एक टिप्पणी सुदामा व कृष्ण के विपरीत प्राप्त हुई। न केवल उनकी टिप्पणी को हटाना पड़ा बल्कि उनको भी फ्रेंड लिस्ट से ब्लाक कर दिया। ऐसे लोग शरारतन ही फ्रेंड बनते होंगे। 

 https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/919466114782032
यह एक 'नास्तिक' संप्रदाय के बड़े नेता के विचार हैं जो सुनने की उनसे अपेक्षा नहीं थी। 'कथनी-करनी में अंतर' के इस जमाने में उनको पहचानने में भी चूक हुई जो गैर-जिम्मेदाराना सीख सुनने को मिली।
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 https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/919467598115217


https://www.facebook.com/photo.php?fbid=918461774882466&set=pcb.918462944882349&type=1&theater
ब्राह्मण वाद के कुचक्र में फंसे एक गैर ब्राह्मण विद्वान की यह दुखद गाथा है। इस चित्र में जिस अपने ब्राह्मण मित्र को पुरुसकृत होते देख कर वह अतीव प्रसन्न हैं वही इनकी एक साक्षात्कार की खबर पढ़ कर सन्न रह गया तथा उसने इनकी ही एक ब्राह्मण शिष्या को मोहरा बना कर उससे कहलवाया कि इनको सहयोग न दिया जाये जिस संबंध में इनको उचित समय से सूचित भी कर दिया था। इनको वांछित विद्वानों से परिचित भी करवा दिया था। किन्तु एक और ब्राह्मण ने उन विद्वानों में से एक के विरुद्ध अनर्गल आलाप किया व 20 जून 2015 को मुद्रा राक्षस जी की जयंती के कार्यक्रम में एक और बूढ़े ब्राह्मण ने कुटिल मुस्कान फेंकी तब तत्काल इनको आगाह कर दिया था। फिर भी अपने चचेरे भाई व इन चारों ब्राह्मणों के जाल-जंजाल में यह इस बुरी तरह फंस गए हैं कि उससे निकलना अब इनके लिए मुमकिन नहीं रह गया है तभी तो अनावश्यक आरोपों का तोहफा भेंट कर गए। जवाब देना बेहद ज़रूरी था जो समुचित प्रकार से दे दिया गया है। इनके साथ उदारता बरतना व इनको सहयोग करना मुझे काफी नुकसानदायक रहा लेकिन वह तो भुगतना ही था जब 'पात्र की अनुकूलता' पर पहले ही ध्यान नहीं दिया था तो। निम्न चित्रों से इनके परिवर्तित चरित्र का स्पष्ट परिलक्षण हो जाएगा कि ब्राह्मण वाद के कुचक्र में फँसने से पहले यह ठीक चल रहे थे और जाल में फँसने के बाद कैसे बिदक गए थे।

* " उदारता एक मानवीय गुण है सभी को उदार होना चाहिए किन्तु उसके साथ-साथ पात्र की अनुकूलता भी होनी चाहिए। "
इसके साथ-साथ मैंने अपने लिए इन सिद्धांतों को भी बनाया हुआ है जिन पर ही चलता हूँ :
**'Quick & Fast Decision but Slow & Steady Action'
***'Decided at Once decided for Ever &Ever' 
अपने ही बनाए सिद्धांतों पर तो अमल कर ले जाता हूँ 50 वर्ष  पूर्व पढे सिद्धान्त पर अमल करने में चूक गलत पहचान करने के कारण हो जाती है। बचपन से ही स्वभाव सब की मदद करने का रहा है जबकि तमाम लोग मदद लेकर लात मारते रहे हैं उनके खुद के अनुसार उनको मदद करना मेरी अपनी ही गलती थी। और सज़ा उसी को मिलेगी जो गलती करेगा। प्रतीत होता है कि अब शेष बची ज़िंदगी में दूसरों को मदद करने की बात को 'दिल' व 'दिमाग' से निकाल देने का समय आ गया है।

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