बुधवार, 14 अक्तूबर 2015

झूठ की हांडी फूट गई --- विजय राजबली माथुर

काठ की हांडी दोबारा आग पर  चढ़ती है?  :
कहावत तो यह है कि, काठ की हांडी दोबारा आग पर नहीं चढ़ती है। लेकिन इलाहाबादी प्रोफेसर साहब अपनी काठ की हांडी को दोबारा आग पर चढ़ाने की असफल कोशिश कर रहे हैं। विगत आठ जून को उनसे पहली व्यक्तिगत मुलाक़ात हुई और उनका एक परिचित के माध्यम से एक साक्षात्कार समाचार पत्र में छपवाने का कार्य क्या सम्पन्न करवा दिया उनको लगा कि एक 'गुलाम' मिल गया। बीस जून को वह घर पर आए तो एक अतिथि के रूप में उनको भोजन, चाय-नाश्ता भी करा दिया तो उनको लगा कि इस बेवकूफ को अपनी एक उंगली पर नचाया जा सकता है। 'अतिथि सत्कार', 'सहायता' और 'गुलामी' को इन प्रोफेसर साहब ने पर्यायवाची समझ लिया तो गलती किसकी है?
बीस जून को अनावश्यक मुस्कराहट फेंकने वाले अश्लीलता समर्थक बाजारवादी के प्रति प्रोफेसर साहब को आगाह किया था किन्तु तब यह पता नहीं था कि वह उसी मुस्कराहटे के इशारे पर छल कर रहे हैं। मुस्कराहटे ने अपनी जासूस के माध्यम से भी गुमराह करने का असफल प्रयास किया था। अब फिर से प्रोफेसर साहब को सक्रिय किया गया है। एक बार धोखा खाने व नुकसान उठाने के बाद कौन उनके झांसे में फँसेगा ? जबकि मैंने तो  पटना के पत्रकार एक फेसबुक फ्रेंड को भी उनके प्रति 'एलर्ट' रहने का निवेदन किया था  तब मैं खुद ही प्रोफेसर साहब की जली हुई काठ की हांडी को दोबारा आग पर चढ़वा दूंगा ऐसा सोचना प्रोफेसर साहब की 'नादानी' है या कोई 'गंभीर साजिश '? इसे समझना क्या मुश्किल है ? 

https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/954489827946327

-------------------------------------------------------------------------------------------------
* युद्ध एक कला भी है और विज्ञान भी। युद्ध में विजयी होने के लिए 'धैर्य ' व 'संयम '  रखने की नितांत आवश्यकता होती है। 'दो टूक ' की हड़बड़ी तो शत्रु के जाल में फंस व उलझ कर शत्रु को ही 'विजय श्री' दिला सकती है। 
* जब शत्रु उकसाना चाहे और हम उकस कर बौखला जाएँ तो यह हमारी 'हार'- defeat का पहला कदम होगा। शत्रु को एहसास होना चाहिए कि वह 'हावी' है और वह उतावली में अपनी सम्पूर्ण 'ऊर्जा ' जल्दबाज़ी में खर्च कर डाले तो यह हमारी 'विजय ' का पहला कदम है। 
* शत्रु की यह चाल होती है कि वह हमें आपस में उलझा दे और हमें चौतरफा घेर कर परास्त कर दे। तब हमें उसके मुक़ाबले के लिए चुप बैठ कर तमाशा देखना होता है और उसकी घेरा बंदी को धीरे-धीरे तोड़ना होता है। यदि हम ऐसा करने में सफल रहे तो आक्रामक शत्रु को 'मुंह की खानी' पड़ती है। 
* इलाहाबादी प्रोफेसर  साहब को स्पष्ट जतला दिया गया था कि बाज़ारवादी ब्राह्मण समुदाय के लोग गैर-ब्राह्मण लोगों को सफल होते कभी नहीं देखना चाहते हैं फिर भी वह अपने इलाहाबादी ब्राह्मण मित्र (और उनके लखनवी मित्र व उसकी जासूस ) एवं अपनी शिष्या आदि ब्राह्मणों के प्रभाव में बने रहे। उनकी शिष्य ने उनके जिन विरोधी लोगों के नाम बताए थे उनमें उनके एक भाई (तथा उनके भी मित्र ) शामिल थे जिसकी पुष्टि उनके कृतित्व से हो भी चुकी है। तब भी प्रोफेसर साहब बजाए खुद को 'मुक्त ' कराने के उल्टे मुझे घेरने के प्रयास ही करते रहे  जैसे चाहते हों  --- 'हम तो डूबे हैं सनम तुम्हें भी ले डूबेंगे '। तब यही इलाज बचता है कि आपको 'डूबना' मुबारक हो हम क्यों डूबें आपके साथ ? आप ब्राह्मणों के जाल में फंसे हैं तो फंसे रहें , अपने साथ हमें भी फाँसने का प्रयास करेंगे तो जल तो क्या दलदल में भी नहीं आप 'खुश्की' में ही डूबेंगे। 

https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/954637457931564

------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

जब हर तरफ से अपने छल -प्रपंच को परास्त होते देख लिया तब अंततः फेसबुक पर मुझे ब्लाक कर दिया और मैंने भी उनको जवाबी ब्लाक कर दिया है। ब्लाक तो मैं उनको 20 जून 2015 को ही कर देता लेकिन उनके सारे ड्रामे देखने के इरादे से नहीं किया था। अब जब उनकी सारी स्क्रिप्ट आउट हो गईं तब जाकर उन्होने ब्लाक किया क्योंकि उपरोक्त स्टेटस पढ़ने के बाद वह समझ गए कि, वह अपने ही बुने जाल में बुरी तरह फंस चुके हैं जिससे निकलना अब उनके लिए संभव भी नहीं है। 

दो टूक :
जहां तक दो टूक स्पष्ट करने की बात है  मेरी ओर से काफी पहले ही दो टूक स्पष्ट पोस्ट् दी गई थीं ----

*  अपने चचेरे भाई व इन चारों ब्राह्मणों के जाल-जंजाल में यह इस बुरी तरह फंस गए हैं कि उससे निकलना अब इनके लिए मुमकिन नहीं रह गया है तभी तो अनावश्यक आरोपों का तोहफा भेंट कर गए। जवाब देना बेहद ज़रूरी था जो समुचित प्रकार से दे दिया गया है। इनके साथ उदारता बरतना व इनको सहयोग करना मुझे काफी नुकसानदायक रहा लेकिन वह तो भुगतना ही था जब 'पात्र की अनुकूलता' पर पहले ही ध्यान नहीं दिया था तो।
http://vidrohiswar.blogspot.in/2015/08/blog-post.html

Link to this post-



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

ढोंग-पाखंड को बढ़ावा देने वाली और अवैज्ञानिक तथा बेनामी टिप्पणियों के प्राप्त होने के कारण इस ब्लॉग पर मोडरेशन सक्षम कर दिया गया है.असुविधा के लिए खेद है.

+Get Now!