मंगलवार, 16 जून 2015

एक स्मरण 22 वीं पुण्यतिथि पर --- विजय राजबली माथुर

22 वीं पुण्यतिथि पर स्मरण :
(शलिनी माथुर : 04 जनवरी 1959- 16 जून 1994 )

कुल साढ़े बारह वर्ष का ही साथ रहा और 25 मार्च 1981 को एंगेजमेंट के तुरंत बाद जब उन लोगों ने शालिनी के हाथ का अध्यन करने को कहा था और आयु रेखा 35 वर्ष पर ही समाप्त दीखी थी तब माथा तो ठनका था कि क्या महज़ 13 वर्ष का ही साथ होगा। उस वक्त कुछ किसी को बताया नहीं जा सका , बताना उचित भी नहीं था फिर दिमाग से बात ऐसे गायब हो गई जैसे गधे के सिर से सींग। फिर जब मथुरा में शालिनी के ममेरे भाई राम अवध नारायण माथुर साहब की पुत्री लवलीन ने उनका हाथ देख कर कहा था  कि " भुआ आपकी आयु तो 36 वर्ष ही है। " तो उनका जवाब था कि अब हम मरने वाले हैं। उनके बड़े भाई कुक्कू के दोस्त वीर बहादुर सिंह टामटा ने टूंडला से इटावा पहुँच कर हाथ देख कर पहले ही बता दिया था कि कुल आयु 36 तक है अतः उन सबको पहले से ही मालुम था। 16 जून 1994 को मृत्यु के समय 36 वां वर्ष ही चल रहा था। 

चूंकि अजय को शीघ्र ही वापिस फरीदाबाद लौटना था अतः बाबूजी ने परंपरागत तेरहवीं के चक्कर में न पड़ कर 'आर्यसमाज' के पुरोहित से पाँच दिन पर 'हवन' करवा लिया था। दकियानूस पोंगापंडितों के चक्कर में फंसे रिशतेदारों व अन्य लोगों ने इसकी आलोचना की कि तेरहवीं क्यों नहीं की। गोविंद बिहारी मौसाजी सबसे ज़्यादा बाबूजी के विरुद्ध मुखर थे। तब माँ ने बताया कि उन मौसाजी के श्वसुर अर्थात माँ के फूफाजी ने तो उनकी भुआ के निधन पर सिर्फ तीन दिन बाद ही हवन करवा लिया था। मैंने इस प्रश्न को उनके समक्ष रखा और पूछा कि वह अपने  साढ़ू अर्थात हमारे बाबूजी की तो निंदा कर रहे हैं अपने श्वसुर साहब के बारे में उनकी क्या राय है। तब से मुझको सद्दाम हुसैन कहने व प्रचारित करने लगे थे। 

बहरहाल शालिनी के बाद से जो आर्यसमाज से संपर्क हुआ वह अगले वर्ष जून 1995 में बाबूजी व माँ के निधन के बाद से और गहरा हो गया व बाद में कमलानगर-बल्केशवर  आर्यसमाज, आगरा की कार्यकारिणी में भी मैं शामिल रहा किन्तु आर्यसमाज के आर एस एस प्रभुत्व के लोगों के नियंत्रण के बाद संगठन छोड़ दिया। जबकि नीति और सिद्धांतों का अनुसरण अब भी करता हूँ। आर्यसमाज 'हिंदूवाद' के विरुद्ध है अतः मौलिक आर्यसमाजी सदैव आर एस एस का विरोधी होता है जिसका गठन ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा के लिए हुआ था जबकि आर्यसमाज का गठन ब्रिटिश साम्राज्य को उखाड़ने हेतु किया गया था।


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