रविवार, 24 मई 2015

एक श्रंधाजली : प्रेरणादाता को --- विजय राजबली माथुर


Thursday, May 24, 2012

प्रेरणादाता को आत्मीय श्रंधाजली ---

http://krantiswar.blogspot.in/2012/05/blog-post_24.html 


24 मई पुण्य तिथि पर एक स्मरण -बी पी सहाय साहब


स्व.बिलासपति सहाय एवं स्व.मांडवी देवी

 स्व. बिलासपति सहाय साहब( पूनम के पिताजी ) को यह संसार छोड़े अब 12 वर्ष हो गए हैं और 12 वर्षों का एक युग माना जाता है। मुझे ज्योतिष को व्यवसाय के रूप मे अपनाने का परामर्श उन्होने ही दिया था और उनकी मृत्यु के लगभग 07 माह बाद उनके मत के क्षेत्र दयाल बाग(आगरा) मे मैंने उन्ही की पुत्री के नाम पर अपना ज्योतिष कार्यालय खोला भी था जिसे बाद मे वहाँ घर पर स्थानांतरित कर दिया था। अब यहाँ लखनऊ मे पूनम की राय पर ही कार्यालय का नाम बदल दिया गया है। सहाय साहब के बारे मे ज्योतिषयात्मक विश्लेषण आगरा के अखबार मे छ्पा था जिसकी स्कैन कापी ऊपर के चित्र मे देख सकते हैं।

बी पी सहाय साहब सरकारी सेवा से अवकाश ग्रहण करने के उपरांत मृत्यु पर्यंत 'पटना हाई स्कूल ओल्ड ब्वायज एसोसिएशन'मे सक्रिय रहे। उनके सभी सहपाठी उच्च पदो पर रहे जिनमे बिहार के पूर्व मुख्य सचिव के के श्रीवास्तव साहब का नाम प्रमुख है। 11 अगस्त 1942 के छात्र आंदोलन मे शहीद हुये एक क्रांतिकारी के भाई भी उनके सहपाठी थे। पटना सचिवालय के पास जो सप्तमूर्ती हैं उनमे से एक मूर्ति उनके सहपाठी के अग्रज की भी है। सरकारी सेवा के सम्पूर्ण काल मे उन्होने पूरी ईमानदारी से कार्य किया और न खुद कभी रिश्वत ली न अधीन्स्थों को लेने दी जबकि सिंचाई विभाग मे सर्किल आफिसर थे । नतीजतन उनके अनेक शत्रु रहे और आर्थिक स्थिति सदैव डांवा-डॉल रही। यही कारण है कि जन्म से अपने पिताजी  की ईमानदारी देखने के कारण पूनम को मेरे ईमानदारी पर चलने और परेशानी उठाने पर कोई एतराज़ नहीं है। यही वजह थी कि उन्होने मेरे बाबूजी द्वारा भेजे एक पोस्ट कार्ड को वरीयता दी और पूनम का विवाह मुझ से कर दिया।


जैसा कि अक्सर होता है और मेरे साथ पूरे तौर पर चरितार्थ है कि ईमानदार व्यक्ति को अपने घर-परिवार से भी सहयोग नहीं मिलता है बल्कि खींच-तान का सामना करना पड़ता है। मेरे बाबूजी भी इसी परिस्थिति से अपनी ईमानदारी की वजह से गुजरे और पूनम के बाबू जी भी इसी राह के राही रहे जिनको  पूनम के विवाह के समय उनके भाइयों ने ही **++**उन्हें गुमराह करने का प्रयास किया  किन्तु अंततः वह भटके नहीं। यदि मैंने उनके परामर्श को न माना होता तो आज भी मुनीमगिरी ही कर रहा होता। वह आजीविका का कार्य विरोधाभासी था क्योंकि मै मजदूर आंदोलन मे सक्रिय था और व्यापारी वर्ग मजदूरों का शोषक होता है।उन्होने मेरी मानसिकता और क्षमता का पूर्वाङ्क्लन करते हुये मुझसे ज्योतिष को शौक के स्थान पर व्यवसाय के रूप मे अपनाने को कहा। वह मेरे कम्युनिस्ट आंदोलन मे शामिल रहने को बुरा नहीं समझते थे क्योंकि उनके छोटे बहनोई स्व.शशीभूषण प्रसाद जी मधुबनी के उसी डिग्री कालेज मे एकोनामिक्स पढ़ाते थे जिसमे पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री कामरेड चतुरानन मिश्रा जी भी एकोनामिक्स पढ़ाते थे। कामरेड चतुरानन मिश्र फूफाजी साहब के घर भी आते रहते थे और इनकी बातों का ज़िक्र वह बाबूजी साहब से करते रहते थे।


 समाज मे ज्योतिषी के रूप मे एक पहचान सम्मानजनक तो है ही इसमे भी छल-छढ्म से दूर रहने के कारण मुझे संतोष रहता है कि मैंने किसी का कुछ भला तो किया । हालांकि कुछ लोग ईमानदारी और सच्चाई पर चलने के कारण मुझे बेवकूफ और कमजोर सिद्ध करने का प्रयास करते रहते हैं। पूना मे प्रवास कर रहे और पटना से संबन्धित एक ब्लागर का कृत्य ऐसा ही रहा। व्यक्तिगत रूप से ज्योतिषयात्मक राय लेने के बाद उक्त ब्लागर ने मेरे विश्लेषण को गलत सिद्ध कराने का असफल प्रयास भी किया जिस कारण मुझे श्रीमती शबाना आज़मी,सुश्री रेखा और X-Y संबन्धित  ज्योतिषयात्मक विश्लेषण देने पड़े। एक सप्ताह के भीतर सुश्री रेखा के राज्यसभा मे मनोनीत हो जाने पर जहां मेरे विश्लेषण की सटीकता सिद्ध होती थी उक्त ब्लागर ने एक अन्य ब्लाग पर उसकी खिल्ली उड़ाई। वस्तुतः पटना से संबन्धित उक्त ब्लागर ने मेरे ज्योतिषीय ज्ञान की खिल्ली नहीं उड़ाई है बल्कि पटना के होनहार भविष्यदृष्टा स्व .बिलासपति सहाय साहब की खिल्ली उड़ाई है क्योंकि ज्योतिष को व्यवसाय बनाने का सुझाव उन्होने ही मुझे दिया था।


यद्यपि उन्होने कभी किसी को कुछ बताया नहीं किन्तु उनकी गणना काफी सटीक थी। 23 मई 2000 को उन्हें देखने आए अपनी बड़ी पुत्र वधू के पिताजी डॉ नरेंद्र कुमार सिन्हा (जो सरकारी सेवा से अवकाश ग्रहण करने के बाद निशुल्क होम्योपैथी इलाज करते थे)से उन्होने कहा था-"my death is sure tomorrow"। यह बात उन्होने मुझसे 25 मई को घाट पर बताई थी  ( जो उस वक्त अपने दूसरे दामाद मुकेश सिन्हा साहब के साथ थे)किन्तु उनके परिवार के किसी सदस्य को यहाँ तक कि अपनी पुत्री को भी पूर्व सूचित नहीं किया था। डॉ एन के सिन्हा साहब मुझे आर्यसमाजी भाई कहते थे सिर्फ इसलिए ही मुझसे कहा था। । यदि बाबूजी साहब ने मुझे अकौण्ट्स छोड़ कर 'ज्योतिष' का कार्य करने को कहा तो  कुछ सोच-समझ कर ही कहा होगा क्योंकि शौकिया तो मै लोगों को ज्योतिषीय परामर्श एक काफी लंबे समय से देता आ रहा ही था।

 1984 मे होटल मुगल शेरटन मे अकौण्ट्स सुपरवाइज़र के रूप मे कार्य करते हुये एक डच नर्स को हाथ देख कर जो कुछ बताया था वह उसकी पूर्ण संतुष्टि का रहा था । न तो ठीक से इंगलिश बोलना  उस डच नर्स को आता था और न मुझे किन्तु वार्ता समझ आ गई थी। होटल के ज्योतिषी महोदय ने उस लेडी को इसलिए हाथ देखने से मना कर दिया था कि उनका उस दिन का कोटा पूरा हो चुका था और उस लेडी की वापिसी फ्लाईट उसी दिन की थी तथा उसे भारत मे ही हाथ दिखाना और हाल जानना था। अतः फ्लोर स्टाफ ने मुझसे उस लेडी के रूम मे हाथ देखने का आग्रह किया था। ज्योतिषी साहब की फीस का 50 प्रतिशत उस लेडी ने रु 100/- मुझे परामर्श शुल्क के रूप मे दिया था। नियमानुसार मै वहाँ ज्योतिषीय परामर्श नहीं दे सकता था अपने सर्विस रूल के मुताबिक भी और उन ज्योतिषी साहब से होटल के काण्टरेक्ट के मुताबिक भी। ज्योतिषी साहब से मेरे संबंध मधुर थे अतः मैंने वह रु 100/- जाकर उनको देना चाहा तो उन्होने मुझसे खुद ही रखने को कह दिया। उन्होने मेरे द्वारा ज्योतिषीय परामर्श देने पर भी एतराज़ नहीं किया  था।


धन-पिपासु लोगों से किसी सच्ची बात को स्वीकारने की उम्मीद मैंने कभी नहीं की इसलिए मुझे इस प्रकार की बेजा हरकतों से कभी कोई फर्क भी नहीं पड़ता है जैसी कि पूना प्रवास कर रहे पटना के ब्लागर ने की । मुझे नहीं लगता कि कभी मेरे किसी कार्य से स्व .बिलासपति सहाय जी का मुझे ज्योतिष अपनाने का सुझाव देने का आंकलन गलत सिद्ध होगा। आज हमारे अपने कम्युनिस्ट नेतागण भी मुझसे ज्योतिषीय परामर्श ले रहे हैं तो यह एक उपलब्धि ही है। इसका पूरा का पूरा श्रेय बाबूजी साहब (स्व .बिलासपति सहाय जी) को है। 
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**++**:
तीन वर्ष पूर्व यह स्मरण लिखने के बाद इस संदर्भ में आज उनकी 16 वीं पुण्यतिथि पर कुछ विवरण और जोड़ने की आवश्यकता प्रतीत हो रही है :
उनके जो भाई उनको तो गुमराह करने में सफल न हो सके वे उन लोगों के बाद उनके पुत्र व पुत्र-वधू (डॉ एन के सिन्हा साहब की पुत्री )को गुमराह  करके उनका आर्थिक,शारीरिक,मानसिक क्षति पहुंचाने के लक्ष्य में सफल रहे हैं और मेरे द्वारा आगाह किए जाने के बावजूद उनको अपनी घेराबंदी में उलझाए रहे हैं। डॉ एन के सिन्हा साहब की एक भतीजी  बी पी सहाय साहब के निधन के बाद जब शोक प्रकट करने आईं थीं तो उनका  बाकायदा परिचय मुझसे करवाया गया था जिस आधार पर उनसे निवेदन किया था कि वह अपनी बहन-बहनोई,भाँजियों के हित में उनको समझा कर अपनी चाचियों के बुने जाल से निकालने में मदद करें। किन्तु वह शायद उन षड्यंत्रकारियों से मिल चुकीं थीं जो उन्होने यह जवाब दिया :
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निश्चय ही इस प्रकार अपनी धनाढ्यता के अहंकार का ही प्रदर्शन किया गया है और अपनी क्रूरता व अमानवीयता का भी तथा जिससे बी पी सहाय साहब एवं डॉ एन के सिन्हा साहब की आत्माओं को भी ठेस पहुंची होगी ।  

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