बुधवार, 20 मई 2015

अरुण कुमार भल्ला : कुछ भूली बिसरी यादें (भाग-3 ) --- विजय राजबली माथुर

मई 1972 में जब प्रथम जाब मिला तो एकाउंट्स विभाग में जबकि सिलीगुड़ी में  हाईस्कूल में मजबूरीवश कामर्स पढ़ कर आगे आर्ट्स के विषय ले चुका था। सरु स्मेल्टिंग, मेरठ के चेयरमैन सुल्तान सिंह जैन साहब ने पर्सोनेल आफ़ीसर डॉ मिश्री लाल झा साहब से मुझे जाब पर लेने को कह दिया था जो मुझे मेनेजिंग डाइरेक्टर धन पाल सिंह जैन, इंजीनियर साहब के पास ले गए। एम डी साहब ने कह दिया हमारे पास एकाउंट्स में ही जगह है कर सकते हो तो ज्वाइन कर लो। चूंकि नौकरी करना था हामी भर ली थी । एम डी साहब के टेनिस के मित्र व पंजाब नेशनल बैंक के रिटायर्ड ब्रांच मेनेजर वहाँ मेनेजर एकाउंट्स थे जो कमर्शियल एकाउंट्स से अनभिज्ञ थे तथा एकमात्र एकाउंट्स क्लर्क हंस कुमार जैन साहब कुछ भी बताने को तैयार न थे। मैंने पुरानी फाइलों का अध्यन दो-तीन रोज़ करने के बाद मेनेजर लेखराज प्रूथी साहब से वाउचर  मुझसे भी बनवाने का अनुरोध किया जिसे स्वीकार कर कुछ वाउचर बनाने को उन्होने मुझे भी दिये और ठीक पाने पर संख्या बढ़ाते गए। हंस जी ने मेरे बने वाउचर देखे तो मेनेजर साहब से बोले कि वह केवल वाउचर पास करने के लिए मेनेजर हैं चेकिंग हंस जी करेंगे जिसे मेनेजर साहब ने स्वीकार कर लिया। जो हंस जी मुझे काम सिखाने को तैयार न थे उन्होने सारा काम मुझ पर लाद दिया और  खुद चेकिंग सुपरवाइज़र बन बैठे। काम मुझ पर ज़्यादा होने के कारण अन्य लोग आए किन्तु कामर्स बैक ग्राउन्ड होने से उनका वेतन मुझसे ज़्यादा था और ज़िम्मेदारी कम। 

मेनेजर प्रूथी साहब जसवंत शुगर मिल में चीफ एक्ज़ीक्यूटिव आफ़ीसर बन कर चले गए उनके स्थान पर नन्द किशोर गौड़ साहब सीनियर एकाउंटैंट के रूप में आए और हंस जी भी एकाउंटैंट हो गए। इन सब के ऊपर एक चार्टर्ड एकाउंटैंट अरुण कुमार भल्ला साहब को चीफ एकाउंटैंट के रूप में रखा गया। भल्ला साहब BSc के बाद CA किए थे फिर भी अफ़सरी की हेकड़ी उनमें नहीं थी। सबसे ही किन्तु मुझसे अधिक ही मित्रवत व्यवहार करते थे। मेरा प्रमोशन और वेतन वृद्धि उनके सिफ़ारिश के आधार पर ही हुये। उनका स्पष्ट कहना था सिर्फ सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक दफ्तर का समय है और तभी तक अफ़सरी-मातहती है जबकि शाम 5 बजे से अगली सुबह 9 बजे तक हम सब दोस्त हैं। अधिक से अधिक भाई साहब सम्बोधन उन्होने स्वीकार किया। उन्होने मुझसे जूनियर्स के काम की चेकिंग भी मुझे सौंप दी थी। 

भल्ला साहब नियमों के बड़े पक्के थे और ज़रा सी भी ढील बर्दाश्त नहीं करते थे। एक बार एम डी साहब कुछ जानकारी लेने एकाउंट्स विभाग में आए थे और भल्ला साहब की कुर्सी पर बैठ गए थे। उनके जाने के बाद से भल्ला साहब ने कुर्सी छोड़ दी व मेज़ के दूसरे छोर पर स्टूल डाल कर बैठने लगे । उसी रोज़ उन्होने स्तीफ़े का नोटिस दे दिया था। एम डी, चेयरमैन किसी का अनुरोध उन्होने स्वीकार नहीं किया तथा स्तीफ़ा वापिस नहीं लिया। दिल्ली के कनाट प्लेस स्थित एक जापानी फर्म में वह डिप्टी जेनरल मेनेजर (फाइनेंस ) के ओहदे पर चले गए। मेरठ से जब-जब हम कुछ लोग उनसे मिलने गए उन्होने कभी भी अपने आफिस में नहीं बुलाया क्योंकि वहाँ हम लोगों को सामने बैठाना पड़ता। इसलिए गेस्ट रूम के सोफ़े पर खुद ही हम लोगों के बराबर आकर बैठते थे। बड़ी आत्मीयता से निजी व काम की बातें करते थे। एकाउंट्स में जटिल से जटिल समस्याओं का यदि मैं सफलता पूर्वक मुक़ाबला कर सका तो उसका श्रेय भल्ला साहब को ही दे सकता हूँ उनके कार्य-व्यवहार ने मुझमें 'दृढ़ता' व 'आत्मविश्वास' का संचार किया था जिस पर एकाउंट्स कार्य 2000 ई . तक करते हुये मैं अडिग रूप से डटा रहा।  

2000 ई . से एकाउंट्स के स्थान पर 'ज्योतिष' को अपनाने के बावजूद सिद्धांतों व नीतियों से समझौता न करने की आदत CA अरुण कुमार भल्ला साहब से ही प्रेरित है। ऐसे कर्तव्यनिष्ठ व व्यावहारिक अफसर दूसरा कोई मुझे देखने को भी न मिला । नीति-न्याय का पालन करने वाला कोई नेता अपनी CPI में भी मुझे नज़र नहीं आया जिस प्रकार के अधिकारी-मित्र भल्ला साहब के साथ कार्य करने का अवसर मेरठ में मिला था।

Link to this post-



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

ढोंग-पाखंड को बढ़ावा देने वाली और अवैज्ञानिक तथा बेनामी टिप्पणियों के प्राप्त होने के कारण इस ब्लॉग पर मोडरेशन सक्षम कर दिया गया है.असुविधा के लिए खेद है.

+Get Now!