गुरुवार, 20 नवंबर 2014

सादगी से रहने वाले,काम करने वाले,'राजनीति ' में किसे पसंद आते हैं? ---विजय राजबली माथुर

शाह नवाज़ साहब का यह कथन  व्यावहारिक धरातल पर  'अकाट्य सत्य-वचन' है। काफी पहले लखनऊ भाकपा के जिलामंत्री के दाहिना हाथ के रूप में प्रचारित एक साहब ने मुझको घर पर आ कर चेताया था कि प्रदीप तिवारी अब यू पी AIBEA के अध्यक्ष भी बन गए हैं इसलिए उनके विरुद्ध कोई कारवाई नहीं की जा सकती है जिस कारण मुझको ही हटा दिया जाएगा। फिर 16 सितंबर को मतगणना स्थल पर उनके बायाँ हाथ माने जाने वाले दूसरे साहब ने भी कहा था कि प्रदीप तिवारी और आपके बीच 36 का रिश्ता है उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा अतः मुझे हटा दिया जाएगा। 14 नवंबर को उनके जासूस के तौर पर कार्यरत एक साहब ने मुझको घर पर आकर बताया कि ज़िला सम्मेलन में मुझको प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा । मैंने पहले भी कई- कई बार स्पष्ट कर दिया था कि न तो आगरा में और न ही लखनऊ में मैंने पार्टी सदस्यता या पद के जरिये कोई भी जायज/नायज लाभ उठाया है न उठाना है जो मैं प्रदीप तिवारी के आगे झुकूँ जिसने 13 जूलाई 2013 को काउंसिल मीटिंग में मुझ पर अपने पैरों से प्रहार किया था। 
दीवार के उस पार का दीदार :
1992 में आगरा के तत्कालीन जिलमंत्री कामरेड रमेश मिश्रा जी से सबसे पहले इस बात का ज़िक्र किया था कि आप लोग केवल दीवार पर लिखा या दीवार तक का दृश्य देखते हैं जबकि मैं दीवार के उस पार क्या है देख कर ही कोई विचार, निर्णय या कार्य करता हूँ। यह विवाद  भाकपा प्रदेश कंट्रोल कमीशन के सदस्य रमेश कटारा से संबन्धित था। उस वक्त मिश्रा जी कटारा को ठीक समझ रहे थे लेकिन बाद में उनके द्वारा ही कटारा को पार्टी से निकलवाया गया था तब मन में ज़रूर उनको मेरे द्वारा कही बात याद आई होगी  तभी तो 2006 मे तत्कालीन प्रदेश सह-सचिव डॉ गिरीश जी  की उपस्थिती में मुझे वापिस पार्टी में शामिल किया था।

लेकिन आज डॉ गिरीश जी कटारा के एक नए अवतार से वशीभूत चल रहे हैं और दीवार के उस पार लिखा हुआ अनदेखा कर रहे हैं बावजूद इस तथ्य के कि एक तो भाकपा में नया कौन आ ही रहा है? ऊपर से दिसंबर 2014 तक की राहत के बाद पार्टी की 'मान्यता' एक राष्ट्रीय दल के रूप में समाप्त होने की कगार पर है तो भी कटारा के नए अवतार की रक्षा व बचाव के लिए राष्ट्रीय नेताओं तक से गलत बात लिखवा ले रहे हैं। 



यहाँ लखनऊ में तो न ही ज्योति बसु जी की और न ही अभी तक भूपेश गुप्ता जी की शताब्दी का कोई कार्यक्रम ही हुआ है। बल्कि ज़िला काउंसिल में तय होने के बावजूद सी राजेश्वर राव साहब की शताब्दी का भी कोई कार्यक्रम सम्पन्न नहीं हुआ था।


जस्टिस वी आर कृष्ण अय्यर साहब देश की प्रथम निर्वाचित कम्युनिस्ट सरकार में केरल के शिक्षा मंत्री रहे थे। बाद में नेहरू सरकार द्वारा वह सरकार बर्खास्त किए जाने के बाद अय्यर साहब फिर से  वकालत करने लगे तथा सर्वोच न्यायालय के न्यायाधीश पद तक पहुंचे। उनके कार्यकाल में मजदूरों के हक में कई फैसले हुये।* इन्दिरा जी के कार्यकाल में विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने हेतु उन्होने पद-त्याग कर दिया था। 

ISCUS-इंडो सोवियत कल्चरल सोसाइटी के भी आप काफी समय अध्यक्ष रहे । इसी हैसियत से आगरा में एक कार्यक्रम में अय्यर साहब पधारे भी थे तब उनको देखने व सुनने का अवसर प्राप्त  हुआ था। अपने इस जीवित महान नेता के जन्म दिवस पर भी लखनऊ में अलग से कोई कार्यक्रम होना तो दूर बल्कि 15 नवंबर को ही सम्पन्न ज़िला काउंसिल की बैठक में उनका कोई उल्लेख तक नहीं किया गया जबकि प्रदेश नेतृत्व की भी उपस्थिती थी। 

'कथनी और करनी' का अंतर तथा 'सत्य'  को स्वीकार न करने की प्रवृति ही भाकपा को जनता से दूर किए हुये है। यदि पार्टी को जन-प्रिय बनाने हेतु सुझाव दिये जाते हैं तो उनको 'जानकारी का आभाव' और 'गलत फैसले' कह कर ठुकरा दिया जाता है। इस प्रकार कटारा के अवतार जैसों को तो निजी लाभ पहुँच जाता है और पार्टी को क्षति होती रहती है। सही को गलत और गलत को सही कह कर जनता का विश्वास नहीं अर्जित किया जा सकता भले ही कार्यकर्ताओं को 'अनुशासन' के 'डंडे ' से चुप करा दिया जाये। 
******************************************************
* 04-12-2014 
 04 Dec.2014

Link to this post-



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

ढोंग-पाखंड को बढ़ावा देने वाली और अवैज्ञानिक तथा बेनामी टिप्पणियों के प्राप्त होने के कारण इस ब्लॉग पर मोडरेशन सक्षम कर दिया गया है.असुविधा के लिए खेद है.

+Get Now!