गुरुवार, 16 अक्तूबर 2014

उत्तर-प्रदेश में क्या कम है आपसी लड़ाई और खींचातानी ? ---विजय राजबली माथुर



बेगूसराय के कामरेड्स की खींचतान से वहाँ हुये भाकपा के पतन से चिंतित कामरेड ने  कल जो टिप्पणी की है वह ध्यान देने लायक है। उससे पूर्व उत्तर-प्रदेश की जागरूक किसान/ महिला नेत्री कामरेड ने भी इसी प्रकार की टिप्पणी द्वारा वरिष्ठ नेताओं का ध्यानाकर्षण किया था। पता चला है कि प्रदेश के नीति-निर्धारक नेतृत्व ने इस प्रकार के ध्यानाकर्षणों को नज़रअंदाज़ करने का निर्णय लिया है। 

राष्ट्रीय नेतृत्व को जब-तब निशाने पर लेते रहने वाले वरिष्ठ पदाधिकारी महोदय ने ऐसे राष्ट्रीय नेतृत्व को सही मानने वाले कामरेड्स को प्रताड़ित करने का क्रम तीव्र कर दिया है। ज़िला-स्तर पर कार्यकर्ताओं में विभ्रम उत्पन्न करना और परस्पर मन-मुटाव पैदा करना उनके बाएँ हाथ का खेल है। इसके लिए सारे नियम और पार्टी -परम्पराएँ तोड़ने में उनको आनंद आता है। उनकी हकीकत को उजागर करने वाले कामरेड को संघी घोषित करके निकलवा देने की अफवाह एक जन-संगठन के संयोजक से उड़वाते हैं तो दूसरे जन-संगठन के जिलाध्यक्ष से खुद के संबंध में कहलवाते हैं कि उनका विरोध करने वाला पार्टी में टिक नहीं सकता। ज़िला कार्यकारिणी के एक सदस्य से 16 सितंबर को  कहलवाया कि उनसे 36 का आंकड़ा रखने वाला बाहर का रास्ता देखने को तैयार रहे तो 2 अक्तूबर की एक गोष्ठी में अपने खास हिमायती के जरिये मुझे विचार व्यक्त करने में व्यवधान प्रस्तुत करवाया। 

किसी भी संगठन के विस्तार व विकास के लिए आवश्यक है कि 'लोकतान्त्रिक प्रक्रियाओं ' को सम्मान दिया जाये किन्तु राजधानी के प्रदेश से नियुक्त ज़िला इंचार्ज होने के नाते (जबकि लखनऊ ज़िले में ही उनकी खुद की भी पार्टी सदस्यता है जिससे वह अघोषित सुपर जिलामंत्री हुये ) उक्त पदाधिकारी नियमों को तोड़ कर परम्पराओं की अवहेलना करवाते हैं। बैठकों की कार्यवाही मान्य नियमों/परम्पराओं के अंतर्गत सम्पन्न नहीं होने देते हैं। अप्रत्यक्ष रूप से उनका उद्देश्य  और कृत्य केंद्र की फासिस्ट सरकार को मजबूत करने वाला ही प्रतीत होता है। उनके रहते प्रदेश में पार्टी को न तो मजबूत किया जा सकता है न ही पार्टी का विस्तार हो सकता है और यही उनका लक्ष्य भी है। 

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