गुरुवार, 25 सितंबर 2014

जिसकी जैसी सोच थी उसने उतना ही पहचाना मुझे ---विजय राजबली माथुर

डॉ गिरीश से लखनऊ में भेंट की पाँचवीं वर्षगांठ पर विशेष :


आगरा से लखनऊ आने के बाद मैंने भाकपा कार्यालय,क़ैसर बाग जाकर डॉ गिरीश साहब  से मिलने के प्रयत्न कई बार किए किन्तु वह अक्सर टूर पर होते थे और कामरेड अशोक मिश्रा जी भी नहीं मिल पाये थे। मैं आगरा से ही इन दोनों नेताओं से ही परिचित था तथा लखनऊ के और कामरेड्स से अनभिज्ञ था।किन्तु 25 सितंबर 2010 को मुझे लखनऊ में डॉ गिरीश साहब से भेंट करने का सुअवसर मिल ही गया और उन्होने पहचान भी लिया तथा लगभग तीन घंटे का समय मुझसे बात-चीत करने में व्यय  भी किया। इसी दौरान महिला फेडरेशन की वरिष्ठ नेत्री कामरेड आशा मिश्रा जी का भी आगमन हुआ और डॉ साहब ने उनसे भी मेरा परिचय करवाया जबकि वरिष्ठ नेता कामरेड अशोक मिश्रा जी से पूर्व परिचित था ही।

नितांत व्यक्तिगत आधार पर हुई इस भेंट में डॉ साहब ने यह भी बताया था कि यहाँ लखनऊ में उनकी बीमारी के चलते साथी कामरेड्स उनसे घृणा करते हैं तथा उनको सहयोग नहीं करते हैं। मेरा यहाँ निवास नौ किलो मीटर दूर होने के बावजूद कभी-कभी उनसे मिलते रहने को उन्होने मुझसे  कहा जिसका पालन मैंने अक्सर ही किया क्योंकि  पूर्व परिचय रहने तथा उनकी व्यथा सुनने के बाद उनसे व्यतिगत रूप से सहानुभूति भी मुझे हो गई थी।

डॉ साहब ने 'पार्टी जीवन' अखबार के लिए प्रधान संपादक की हैसियत से उनको  सहयोग करने को मुझसे 2011 में कहा मैं तो उनके आदेश का पालन करने को तत्पर था किन्तु कार्यकारी संपादक को ठीक न लगा। AISF की 75 वीं वर्षगांठ के अवसर पर भी डॉ साहब के निर्देश पर मैं लगातार पार्टी कार्यालय जाता रहा और इस बात का ज़िक्र उन्होने समापन गोष्ठी में मेरे नाम का भी उल्लेख उनको सहयोग देने वालों की सूची में जोड़ कर किया। 

मई 2013 में एक बार फिर डॉ साहब ने 'पार्टी जीवन' हेतु मेरी सेवाएँ लेने की बात कही और इस बार उन्होने पुराने कंप्यूटर की मरम्मत करवाकर मुझे कार्य करने हेतु उपलब्ध करा दिया। तमाम दूसरे लोगों को भी बुरा लगा हो सकता है किन्तु कार्यकारी संपादक को  मैं उनका प्रतिद्वंदी नज़र आने लगा कि कहीं उनसे कार्य छीनने की डॉ साहब की चाल तो नहीं है जबकि ऐसा था नहीं क्योंकि एक बार खुद डॉ साहब ने उनको कहा था कि तुमको 'हैंड ' की ज़रूरत थी तुमको 'हैंड' दे दिये हैं।लेकिन उस शख्स को किसी ईमानदार आदमी की ज़रूरत नहीं थी जो डॉ साहब ने मेरे रूप में उनको सुपुर्द किया था। उस शख्स का मुझसे शुरू -शुरू में ही यह  कहना था  कि यहाँ (पार्टी कार्यालय ) में हर एक का कमीशन तय है और हर काम में लोग अपना कमीशन लेते हैं जबकि मैं तो जिस प्रकार आगरा में पार्टी हित में अपनी सेवाएँ देता था उसी अनुरूप प्रदेश कार्यालय के लिए भी कर रहा था। अतः  कार्यकारी संपादक के लिए बाधक व अनफ़िट था। बीच में कार्यकारी संपादक ने एक और पाँसा फेंकते हुये डॉ साहब से मुझे पार्टी की ओर से 'वेज' लेने का प्रस्ताव दिलाया परंतु मैंने डॉ साहब को स्पष्ट कह दिया कि आपके आदेश का अनुपालन करने हेतु एक कार्यकर्ता की हैसियत से योगदान कर रहा हू और निशुल्क सेवाएँ देता रहूँगा। परंतु का .स . को ऐसा व्यक्ति चाहिए था जो पैसा लेकर दब कर गलत कार्य कर सके अतः मुझे परेशान करने  हेतु  13 जूलाई 2013 की पार्टी ज़िला काउंसिल की बैठक में उसने  अपने एक निष्क्रिय मित्र के सहायक के रूप में मुझसे कार्य कराने का प्रस्ताव डॉ साहब से रखवाया और उसे स्वीकार करने हेतु व्यक्तिगत रूप से मेरे पैरों पर अपने पैरों से प्रहार किया । 

बैठक के तुरंत बाद डॉ साहब से कामरेड अतुल अंजान साहब की उपस्थिति में मैंने उसके मित्र का सहायक बनने से स्पष्ट इंकार कर दिया व उसके बाद से 'पार्टी जीवन' के लिए भी कार्य करना छोड़ दिया। तब से वह शख्स मुझे अपना निजी दुश्मन  मान कर लगातार विभिन्न तरीकों से परेशान करता आ रहा है। एक तो खुद को 'एथीस्ट ' घोषित करता है दूसरी ओर कंट्रोल कमीशन के पूर्व सदस्य रमेश कटारा की भांति 'तांत्रिक' प्रक्रियाँओं से भी उत्पीड़न करता आ रहा है।



जैसा कि प्रस्तुत फोटो से स्पष्ट है वह शख्स निजी रूप से मुझे प्रताड़ित  करने हेतु कपोल-कल्पित बातें गढ़ता रहता है। मैंने गत वर्ष 30 सितंबर 2013 की सफल रैली के बाद डॉ साहब को आगाह करने का प्रयास किया था।
"जहां तक रैली की भौतिक सफलता का प्रश्न है रैली पूर्ण रूप से सफल रही है और कार्यकर्ताओं में जोश का नव संचार करते हुये जनता के मध्य आशा की किरण बिखेर सकी है। लेकिन क्या वास्तव में इस सफलता का कोई लाभ प्रदेश पार्टी को या राष्ट्रीय स्तर पर मिल सकेगा?यह संदेहास्पद है क्योंकि प्रदेश में एक जाति विशेष के लोग आपस में ही 'टांग-खिचाई' के खेल में व्यस्त रहते हैं। यही वजह है कि प्रदेश में पार्टी का जो रुतबा हुआ करता था वह अब नहीं बन पा रहा है। ईमानदार और कर्मठ कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न एक पदाधिकारी विशेष द्वारा निर्लज्ज तौर पर किया जाता है और उसको सार्वजनिक रूप से वाह-वाही प्रदान की जाती है। एक तरफ ईमानदार IAS अधिकारी 'दुर्गा शक्ती नागपाल'के अवैध निलंबन के विरुद्ध पार्टी सार्वजनिक प्रदर्शन करती है और दूसरी तरफ उत्पीड़क पदाधिकारी का महिमामंडन भी। यह द्वंदात्मक स्थिति पार्टी को अनुकूल परिस्थितियों का भी लाभ मिलने से वंचित ही रखेगी। तब इस प्रदर्शन और इसकी कामयाबी का मतलब ही क्या होगा?  "
http://vidrohiswar.blogspot.in/2013/09/3-30.html

मेरे इस आंकलन  का कारण  प्रदीप तेवारी  द्वारा  डॉ साहब पर रैली के संबंध में किया गया यह व्यंग्य है कि वह ग्लैमर में लगे रहते हैं : रैली निकालना उनके बूते की बात नहीं है। जबकि रैली के मंच से राष्ट्रीय सचिव अतुल अंजान साहब ने इस रैली को 'राजनीतिक सन्नाटा तोड़ने वाली रैली' की संज्ञा दी थी। किन्तु तेवारी साहब अपने दबदबे से 'अंजान' साहब के विरुद्ध घृणित प्रचार अभियान चलाते रहते हैं उनकी एक पोस्ट  लगाने के कारण ही मुझे पार्टी ब्लाग के एडमिन व आथरशिप से उन्होने मुझे हटा दिया था जिस कारण मुझे 'साम्यवाद (COMMUNISM)' ब्लाग निकालना पड़ा।

 कल दिनांक 24 सितंबर 2014 की ज़िला काउंसिल द्वारा 'चुनाव समीक्षा' बैठक में ज़िला इंचार्ज के नाते तेवारी साहब ने जिला मंत्री द्वारा एक प्रस्ताव के जरिये 60 वर्ष की आयु से अधिक के कामरेड्स के पदाधिकारी बनने पर रोक लगवा दी है। यदि इस प्रस्ताव को प्रदेश में भी लागू करवाया जा सका तो प्रदेश सचिव डॉ साहब व प्रदेश के सहायक सचिव अरविंद जी भी दौड़ से बाहर हो जाएँगे और तेवारी साहब का रास्ता 'निष्कंटक ' हो जाएगा।

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