सोमवार, 2 जून 2014

एकला चलो रे :क्रांतिस्वर के चार वर्ष---विजय राजबली माथुर



अखबार पढ़ने का शौक तो बचपन ही से था तभी तो बाबूजी लखनऊ में  रविवार  को   'स्वतंत्र भारत'का साप्ताहिक अंक 1959-60 में  6-7 वर्ष की उम्र से ही मुझे खरीद देते थे । फिर लखनऊ से बरेली जाने पर आफिस की क्लब से  क्रांतिकारियों के उपन्यास,धर्मयुग,साप्ताहिक हिंदुस्तान भी मेरे पढ़ने के  लिए ही ले आते थे। 1962 में उनके सिलीगुड़ी ट्रांसफर के बाद हम लोग शाहजहाँपुर में नानाजी के पास थे वहाँ नानाजी के एक भाई 'नेशनल हेराल्ड' लेते थे जब खाली मिलता था उसे पढ़ लेता था और हिन्दी में अर्थ नानाजी से पूछ कर समझ लेता था। 1968से 1974 तक मेरठ में फिर बाबूजी आफिस क्लब से धर्मयुग,साप्ताहिक हिंदुस्तान के अलावा सारिका,सरिता, तथा एक दिन पुराने हिंदुस्तान व नवभारत टाईम्स ले आते थे । पढ़ने के साथ-साथ अपने विचार लिखता चलता था और 1973 में 'पी सी टाईम्स' साप्ताहिक में मेरे कुछ लेख छपे भी।इससे पूर्व इसी वर्ष आगरा के 'पेडलर टाईम्स' में एक कविता तथा 'युग का चमत्कार' साप्ताहिक में एक लेख स्वामी दयानन्द'सरस्वती'पर 'अंधेरे उजाले' शीर्षक से छप चुका था। 1980 से 'सप्तदिवा साप्ताहिक',आगरा में अक्सर मेरे लेख छपते रहे इस पत्रिका से सहायक संपादक व फिर उप सम्पादक के रूप में सम्बद्ध भी रहा। बाद मे 2003 में साप्ताहिक 'ब्रह्मपुत्र समाचार' ,आगरा  में  भी मेरे लेख छपे वहीं  त्रैमासिक पत्रिका 'अग्रमंत्र ' में भी मेरे लेख स्थान पा सके बल्कि मुझे उप सम्पादक के रूप में सम्बद्ध भी किया गया जबकि वह पत्रिका वैश्य समुदाय की थी और कायस्थ होने के बावजूद मुझे अपवाद रूप से जोड़ा गया था। लखनऊ आने पर भी शुरू-शुरू में एक साप्ताहिक पत्र में मेरे लेख छपे। 

02 जून 2010 से ब्लाग 'क्रांतिस्वर' प्रारम्भ करने के बाद से समस्त  लेखन ब्लाग द्वारा ही हो रहा है फिर भी एक-दो पत्र-पत्रिकाओं ने कुछ ब्लाग-पोस्ट्स को प्रकाशित भी किया है। अगस्त 2010 से ही दूसरा ब्लाग 'विद्रोही स्व स्वर में' भी  प्रारम्भ हो गया था।इस ब्लाग में लखनऊ  से 1961 में  चल कर वापिस 2009 में लखनऊ लौटने तक का वर्णन करने का लक्ष्य था किन्तु कुछ वजहों से 1996 के बाद के घटनाक्रम लिख नहीं सके हैं।
'क्रांतिस्वर' 

इस ब्लाग  में राजनीति,ज्योतिष,सामाजिक,धार्मिक विषयों पर लेख दिये हैं और 'ढोंग-पाखंड-आडंबर'पर ज़बरदस्त प्रहार किया है। परिणामतः कुछ लोगों ने लामबंदी करके मेरे व मेरे परिवार को तबाह करने का अभियान चलाया हुआ है जिनमें निकटतम रिश्तेदार व अपनी पार्टी के लोग भी शामिल हैं। 

जन-कल्याण हेतु स्तुतियेँ देने हेतु 'जनहित में' नामक ब्लाग शुरू किया था जिसे 2011 के हज़ारे/केजरीवाल आंदोलन के विरोध में दो बार स्थगित किया था अब मोदी/केजरीवाल/हज़ारे/RSS के प्रति विरोध प्रकट करने हेतु प्राइवेट ब्लाग में तब्दील करके सार्वजनिक रूप से हटा लिया है। 

सर्वे भवन्तु सुखिनःसर्वे सन्तु निरामयः
इसके माध्यम से फेसबुक पर उपलब्ध स्वास्थ्य संबन्धित जानकारी को सार्वजनिक रूप से एक स्थान पर संग्रहित करके देना शुरू किया है। अपने पास उपलब्ध पूर्व जानकारी को भी इस ब्लाग के माध्यम से प्रकाशित किया है। 

कलम और कुदाल
इस ब्लाग के माध्यम से अपने विभिन पत्र-पत्रिकाओं में पूर्व-प्रकाशित लेख तथा खुद को पसंद औरों के लेख स्कैन कापी के रूप में लगाए हैं। कुछ विद्वानों के फेसबुक-नोट्स को भी इसके माध्यम से प्रकाशित किया है।

साम्यवाद (COMMUNISM)

इस ब्लाग का प्रारम्भ CPI के वरिष्ठ नेताओं संबंधी मेरे ब्लाग-पोस्ट्स एक पोंगापंथी किन्तु प्रभावशाली कामरेड द्वारा डिलीट करने व मुझे उस ब्लाग के एडमिन के रूप में हटाये जाने के बाद हुआ है। वस्तुतः वह बैंक कर्मी 'क्रांतिस्वर' में प्रकाशित मेरी कुछ ब्लाग पोस्ट्स को छल द्वारा डिलीट करना चाहता था इसीलिए उसने तिकड़म द्वारा पार्टी के ब्लाग में मुझे एडमिन बनाया था जिससे वह मेरा ID पासवर्ड हासिल कर सके। उसका यह मंसूबा पूरा न हो पाने के कारण उसने अपनी नापसंद के बर्द्धन जी व अंजान साहब से संबन्धित मेरे ब्लाग पोस्ट्स हटा कर मुझे एडमिनशिप से हटा दिया था। 
http://communistvijai.blogspot.in/2013/09/blog-post_11.html 
इस ब्लाग में अन्य कम्युनिस्ट विद्वानों के लेखों को भी स्थान दिया है जिस कारण खिन्न होकर  सीतापुर से संबन्धित उक्त बैंक कर्मी कामरेड ने छल द्वारा फेसबुक लिंक हेतु इस ब्लाग में झंझट खड़ा करवा दिया है। क्योंकि हमारे इस ब्लाग के कारण उनके द्वारा संचालित ब्लाग पर विजिट्स कम हो गए थे। बजाए अपनी गुणवत्ता सुधारने के उक्त विद्वेषी साहब ने इस ब्लाग पर झंझट  खड़ा करना उचित समझा है।

जन-साम्यवाद
साम्यवाद (COMMUNISM) ब्लाग पर झंझट लगने पर इस ब्लाग को शुरू किया था अतः इस पर भी उन लोगों द्वारा झंझट लगवा दिया गया है। 'सत्य' का सामना करने की हिम्मत न होने के कारण सत्य को उद्घाटित होने देने से रोकना ही उनको ठीक लगा है। 

जनहित में
साम्यवाद और जन-साम्यवाद दोनों नए ब्लाग्स में झंझट खड़ा करा दिये जाने से मुझे इस  एक और नए ब्लाग को शुरू करना पड़ा है। लेकिन उन टेढ़ी चाल वाले कामरेड ब्लागर साहब ने इस ब्लाग में भी झंझट खड़ा करा दिया है। 

ढोंग-पाखंड-आडंबर के विरुद्ध लड़ाई में साथ देने के बजाए 'एथीस्टवादी' उसमें अड़ंगा लगा कर अप्रत्यक्ष रूप से पोंगापंथियों की ही मदद कर रहे हैं। ऐसी मानसिकता की बहुलता के कारण ही जनता से साम्यवादी पार्टियां कटी-कटी रहती हैं। 

मुख्य रूप से 'क्रांतिस्वर' ब्लाग के माध्यम से तमाम झंझावातों के बावजूद हमारा अभियान जारी है और आजीवन जारी रहेगा। हालांकि मुझे यह भी मालुम  है की इस छल-छद्यम की दुनिया में मेरी आवाज़ 'नक्कारखाने में तूती की आवाज़' ही बनी रहेगी। सच्चाई किसी को कभी भी स्वीकार नहीं होगी और मैं सच्चाई का रास्ता कभी भी  छोडूंगा नहीं।
 ~विजय राजबली माथुर ©
 इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।

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