शनिवार, 11 जनवरी 2014

भद्र-योग क़े कारण ही शास्त्री जी -प्रधान मंत्री पद जितना ऊंचा उठ सके ---विजय राजबली माथुर

लाल बहादुर शास्त्री जी

पुण्य तिथि (११ जनवरी) पर स्मरण: 




एक उच्च कोटि क़े विद्वान् का कथन है कि,मनुष्य और पशु क़े बीच विभाजन रेखा उसका विवेक है। जहाँ यह विवेक छूता है ,वहां मनुष्य और पशु में कोई भेद नहीं रह जाता है। १९६५ क़े भारत-पाक संघर्ष क़े दौरान जब लिंडन जॉन्सन ने शास्त्री जी को पाकिस्तानी क्षेत्र में न बढ़ने की चेतावनी दी तो शास्त्री जी ने अमेरिकी पी.एल.४८० को ठुकरा दिया था और जनता से सप्ताह में एक दिन सोमवार को सायंकाल क़े समय उपवास रखने का आह्वान  किया था ;जनता ने सहर्ष शास्त्री जी की बात को शिरोधार्य कर क़े उस पर अमल किया था। यह दृष्टांत शास्त्री जी की लोकप्रियता को ही दर्शाता है और यह शास्त्री जी क़े स्वाभिमान का भी प्रतीक है। 
सब की सुनने वाले -शास्त्री जी जितने दबंग थे और गलत बात को कभी भी किसी भी हालत में स्वीकार नहीं करते थे ,उतने ही विनम्र और सब की सुनने वाले भी थे.जब शास्त्री जी उ.प्र.क़े गृह मंत्री थे तो क्रिकेट मैच क़े दौरान पुलिस ने स्टेडियम में छात्रों पर लाठी चार्ज कर दिया था। उस समय पुलिस की टोपी लाल रंग की हुआ करती थी। लखनऊ विश्वविद्यालय क़े छात्र संघ क़े अध्यक्ष क़े नेतृत्व में छात्रों का एक प्रतिनिधिमंडल शास्त्री जी से मिला और पुलिस  को हटाने क़े सम्बन्ध में आग्रह किया और कहा -मंत्री जी कल से लाल टोपी खेल क़े मैदान में नहीं दिखाई देनी चाहिए.शास्त्री जी ने नम्र भाव से उत्तर दिया ठीक है ऐसा ही होगा। शास्त्री जी ने लखनऊ क़े सारे दर्जियों को लगा कर रात भर में खाकी टोपियाँ सिलवा  दीं और जब अगले दिन छात्र पुनः शिकवा लेकर शास्त्री जी से मिले तो शास्त्री जी ने सहज भाव से कहा -तुम लोगों ने लाल टोपी न दिखने की बात कही थी,हमने उन्हें हटा कर खाकी टोपियाँ सिलवा दीं हैं।   
नितांत गरीबी व अभावों में पल-बढ़ कर शास्त्री जी इतने बुलंद कैसे हुए और ऊपर कैसे उठते गये ,आईए जाने उनके ग्रह  -नक्षत्रों से. शास्त्री जी की हथेली में मणिबंध से प्रारम्भ और शनि तथा बृहस्पति पर द्विविभाजित भाग्य रेखा ने लाल बहादुर शास्त्री जी को उच्च पद पर पहुँचाया और निर्भीक, साहसी,लोकप्रिय व देशभक्त बनाया,जिसकी पुष्टि उनके जन्मांग से स्पष्टतःहो जाती है।

कुंडली -------


 शास्त्री जी की कुंडली में बुध अपनी राशि में राज्य-भाव में बैठा है और भद्र-योग निर्मित कर रहा है। इस योग का फल यह होता है कि,इसमें उत्त्पन्न मनुष्य सिंह क़े समान पराक्रमी और शत्रुओं का विनाश करने वाला होता है । शास्त्री जी ने सन१९६५ ई.क़े युद्ध में पहली बार शत्रु की धरती पर धावा बोला और पाकिस्तान से सरगोधा व सियालकोट छीन लिये थे तथा लाहौर में प्रवेश करने ही वाले थे जब रूस क़े अनुरोध पर युद्ध -विराम करना पड़ा। भद्र-योग रखने वाला व्यक्ति पेचीदा से पेचीदा कार्य भी सहजता से कर डालता है। यह शास्त्री जी की ही सूझ-बूझ का परिणाम था कि,विश्व-व्यापी विरोध क़े बावजूद भारत शत्रु क़े पांव बांध सका। बुध क़े द्वारा निर्मित भद्र-योग क़े कारण ही शास्त्री जी -प्रधान मंत्री  पद जितना ऊंचा उठ सके तभी तो कन्हैय्या  लाल मंत को गाना पड़ा :-



दहल उठे इस छोटे कद से बड़े-बड़े कद्दावर भी,
ठहर उठे रण-हुंकारों से बड़े-बड़े हमलावर भी.
दुश्मन ने समझा,भारत की मिट्टी में गर्मायी है,
सत्य,अहिंसा क़े हामी ने भी तलवार उठाई है..


(२८ सितम्बर,१९६९ ई. ,दैनिक हिंदुस्तान में छपी कविता से ये पंक्तियाँ उद्धृत हैं.)



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