सोमवार, 23 दिसंबर 2013

शबाना आज़मी को सम्मान क्यों? ---विजय राजबली माथुर


हिंदुस्तान,लखनऊ,05 अप्रैल 2012 को प्रकाशित चित्र जो राष्ट्रपति महोदया  से  'पद्म भूषण'  लेते समय का है।

हिंदुस्तान,आगरा,03 जून,2007 को प्रकाशित कुंडली 




 शीर्षक देख कर चौंके नहीं। मै शबाना आज़मी जी को पुरस्कार प्राप्त होने का न कोई विरोध कर रहा हू और न यह कोई विषय है। मै यहाँ आपको प्रस्तुत शबाना जी की जन्म कुंडली के आधार पर उन ग्रह-नक्षत्रो से परिचय करा रहा हूँ जो उनको सार्वजनिक रूप से सम्मान दिलाते रहते हैं।

शुक्र की महा दशा मे राहू की अंतर्दशा 06 मार्च 1985 से 05 मार्च 1988 तक फिर ब्रहस्पत की अंतर्दशा 05 नवंबर 1990 तक थी। इस दौरान शबाना आज़मी को 'पद्म श्री' पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनकी कुंडली मे पंचम भाव मे चंद्रमा,सप्तम भाव मे बुध,अष्टम भाव मे शुक्र और दशम भाव मे ब्रहस्पत स्व-ग्रही हैं। इन अनुकूल ग्रहो ने शबाना जी को कई फिल्मी तथा दूसरे पुरस्कार भी दिलवाए हैं। वह कई बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री भी इनही ग्रहो के कारण चुनी गई हैं। सूर्य और ब्रहस्पत की स्थिति ने उन्हे राजनीति मे भी सक्रिय रखा है। वह भाकपा की कार्ड होल्डर मेम्बर भी रही हैं। 06 नवंबर 1996 से 05 जनवरी 1998 तक वह शुक्र महादशा मे केतू की अंतर्दशा मे थीं तभी उन्हे राज्य सभा के लिए नामित किया गया था।

वर्तमान 'पद्म भूषण'पुरस्कार ग्रहण करते समय चंद्रमा की महादशा के अनर्गत शुक्र की अंतर्दशा चल रही है  जो 06 नवंबर 2011 से लगी है और 05 जूलाई 2013 तक रहेगी।* यह समय स्वास्थ्य के लिहाज से कुछ नरम भी हो सकता है। हानि,दुर्घटना अथवा आतंकवादी हमले का भी सामना करना पड़ सकता है। अतः खुद भी उन्हे सतर्क रहना चाहिए और सरकार को भी उनकी सुरक्षा का चाक-चौबन्द बंदोबस्त करना चाहिए। इसके बाद 29 नवंबर 2018 तक समय उनके अनुकूल रहेगा।

शबाना जी की जन्म लग्न मे राहू और पति भाव मे केतू बैठे हैं जिसके कारण उनका विवाह विलंब से हुआ। पंचम-संतान भाव मे नीच राशि का मंगल उनके संतान -हींन रहने का हेतु है। यदि समय पर 'मंगल' ग्रह की शांति कारवाई गई होती तो वह कन्या-संतान प्राप्त भी कर सकती थी। इसी प्रकार वर्तमान अनिष्टकारक समय मे 'बचाव व राहत प्राप्ति' हेतु उन्हें शुक्र मंत्र-"ॐ शु शुकराय नमः " का जाप प्रतिदिन 108 बार पश्चिम की ओर मुंह करके और धरती व खुद के बीच इंसुलेशन बना कर अर्थात किसी ऊनी आसन पर बैठ कर करना चाहिए।

कुछ तथाकथित प्रगतिशील और तथाकथित विज्ञानी ज्योतिष की कटु आलोचना करते हैं और इसके लिए जिम्मेदार हैं ढ़ोंगी लोग जो जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ़ते हैं। ऐसे ही लोगो के कारण 'मानव जीवन को सुंदर,सुखद व समृद्ध'बनाने वाला ज्योतिष विज्ञान हिकारत की नजरों से देखा जाता है। ये ग्रह-नक्षत्र क्या हैं और इंनका मानव जीवन पर प्रभाव किस प्रकार पड़ता है यदि यह समझ आ जाये तो व्यक्ति दुखो व कष्टो से बच सकता है यह पूरी तरह उस व्यक्ति पर ही निर्भर है जो खुद ही अपने भाग्य का निर्माता है। जो भाग्य को कोसते हैं उनको विशेषकर नीचे लिखी बातों को ध्यान से समझना चाहिए की भाग्य क्या है और कैसे बंनता या बिगड़ता है-

सदकर्म,दुष्कर्म,अकर्म -का फल जो व्यक्ति अपने वर्तमान जीवन मे प्राप्त नहीं कर पाता है आगामी जीवन हेतु संचित रह जाता है। ये कर्मफल भौतिक शरीर नष्ट होने के बाद आत्मा के साथ-साथ चलने वाले कारण शरीर और सूक्ष्म शरीर के साथ गुप्त रूप से चलते रहते हैं। आत्मा के चित्त पर गुप्त रूप से अंकित रहने के कारण ही इन्हे 'चित्रगुप्त' संज्ञा दी गई है। चित्रगुप्त ढोंगियों द्वारा बताया गया कोई देवता या कायस्थों का सृजक नहीं है।

कर्मानुसार आत्मा 360 डिग्री मे बंटे ब्रह्मांड मे (भौतिक शरीर छोडने के बाद ) प्रतिदिन एक-एक राशि मे भ्रमण करती है और सदकर्म,दुष्कर्म,अकर्म जो अवशिष्ट रहे थे उनके अनुसार आगामी जीवन हेतु निर्देश प्राप्त करती है। 30-30 अंश मे फैली एक-एक राशि के अंतर्गत सवा दो-सवा दो नक्षत्र आते हैं। प्रत्येक नक्षत्र मे चार-चार चरण होते हैं। इस प्रकार 12 राशि X 9 ग्रह =108 या 27 नक्षत्र X4 चरण =108 होता है। इसी लिए 108 को एक माला का क्रम माना गया है जितना एक बार मे जाप करना निश्चित किया गया है। इस जाप के द्वारा अनिष्ट ग्रह की शांति उच्चारण की तरंगों (VIBRATIONS) द्वारा उस ग्रह तक संदेश पहुंचाने से हो जाती है।

जन्मपत्री के बारह भाव 12 राशियों को दर्शाते हैं और जन्म समय ,स्थान और तिथि के आधार पर ज्ञात 'लग्न' के अनुसार अंकित किए जाते हैं। नवो ग्रह उस समय की आकाशीय स्थिति के अनुसार अंकित किए जाते हैं। इनही की गणना से आगामी भविष्य का ज्ञान होता है जो उस व्यक्ति के पूर्व जन्म मे किए गए सदकर्म,दुष्कर्म एवं अकर्म पर आधारित होते हैं। अतः व्यक्ति खुद ही अपने भाग्य का निर्माता है वह बुद्धि,ज्ञान व विवेक का प्रयोग कर दुष्प्रभावो को दूर कर सकता है या फिर लापरवाही करके अच्छे को बुरे मे बदल डालता है।

उपरोक्त कुंडली का विश्लेषण वैज्ञानिक आधार पर है। कुंडली जैसी अखबार मे छ्पी उसे सही मान कर विश्लेषण किया गया है।

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शनिवार 07 अप्रैल 2012 को यह लेख पूर्व प्रकाशित है-
http://krantiswar.blogspot.in/2012/04/blog-post_07.html

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3 टिप्‍पणियां:

  1. yah lekh apne blog divyanarmada aur facebook page par prastut kar rahahoon. aap theek kahate hain jyotish vigyan kalpol kalpana naheen hai kintu ise jannanewalon aur vidhivat sikhakar pramanik ankadejutanewalon ka akal hai. 'kayasthitah sah kayasthah' arthat vah (nerakar parbramh) jab kisi kaya men sthit (anshroop aatama) sthit hota hai to kayasth kaha jata hai. is arth men srishti ka kan-akn, sakal jeev-jantu, vanaspati, kayasth hain jinka lakshya apne mool ko jankar nishkam krm kar karm-fl bandhan se mukt ho prabhu men mila jana hai. varn to shram adharit vibhajan hai 'chaturvanya maya shrishtam gun karm vibhagshah' ke anusar charon varn arthat har pesha eeshvar ka banaya hai, saman hai. jati janmana hotee hai varn karmana. jati ka arth jatak (janm lenewale) kee yogyata ke anusar uska karm nerdharan... koee bhadr purush nemn harkat kare kaha jata hai 'jaat dikha gya' arthat apnee asaliyat bata gaya. jatak katha men vividh yoniyon men janmen buddh kee asaliyat udghatit kee gayee. jaat karm arthat janm dena.

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  2. कर्मानुसार आत्मा 360 डिग्री मे बंटे ब्रह्मांड मे (भौतिक शरीर छोडने के बाद ) प्रतिदिन एक-एक राशि मे भ्रमण करती है और सदकर्म,दुष्कर्म,अकर्म जो अवशिष्ट रहे थे उनके अनुसार आगामी जीवन हेतु निर्देश प्राप्त करती है।
    dilli sthit vishnu stambh (kutub minar) men 15-15 ansh men kml pattiyon tatha tribhjon ka adhar hai. 360 ansh ko 30-30 ansh men vibhajit kiya gaya hai.
    dekhen blog divya narmada men prakashit lekh dinank 5-9-2014

    विष्णु स्तम्भ (क़ुतुब मीनार) दिल्ली :
    युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित, ​दक्षिण दिल्ली के विष्णुपद गिरि में राजा विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक प्रख्यात ज्योतिर्विद आचार्य मिहिर की शोध तथा निवासस्थली मिहिरा अवली (महरौली) में ​दिन-रात के प्रतीक 12 त्रिभुजाका​रों - 12 कमल पत्रों ​और 27
    नक्षत्रों​ के प्रतीक 27 पैवेलियनों सहित निर्मित 7 मंज़िली ​विश्व की सबसे ऊँची मीनार ​(72.7 मीटर ​, आधार व्यास 14.3 मीटर, शिखर व्यास 2.75 मीटर ,​379 सीढियाँ, निर्माण काल सन 1193 पूर्व) विष्णु ध्वज/स्तंभ (क़ुतुब मीनार) भारतीय अभियांत्रिकी संरचनाओं के श्रेष्ठता का उदाहरण है। इस पर सनातन धर्म के देवों, मांगलिक प्रतीकों तथा संस्कृत उद्धरणों का अंकन है।


    ​​इन पर मुग़लकाल में समीपस्थ जैन मंदिर तोड़कर उस सामग्री से पत्थर लगाकर आयतें लिखाकर मुग़ल इमारत का रूप देने का प्रयास कुतुबुद्दीन ऐबक व् इलततमिश द्वारा 1199-1368 में किया गया । निकट ही ​चन्द्रगुप्त द्वितीय द्वारा विष्णुपद गिरि पर स्थापित और विष्णु भगवान को समर्पित

    गिरि पर स्थापित और विष्णु भगवान को समर्पित 7 मीटर ऊंचा 6 टन वज़न का ध्रुव/गरुड़स्तंभ (लौह स्तंभ) स्तम्भ ​चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने बाल्हिक युद्ध में विजय पश्चात बनवाया। इस पर अंकित लेख में सन 1052 के राजा अंनगपाल द्वितीय का उल्लेख है।तोमर नरेश विग्रह ने इसे खड़ा करवाया जिस पर सैकड़ों वर्षों बाद भी जंग नहीं लगी। फॉस्फोरस मिश्रित लोहे से निर्मित यह स्तंभ भारतीय धात्विक यांत्रिकी की श्रेष्ठता का अनुपम उदाहरण है।आई. आई. टी. कानपूर के प्रो. बालासुब्रमण्यम के अनुसार हाइड्रोजन फॉस्फेट हाइड्रेट (FePO4-H3PO4-4H2O) जंगनिरोधी ​सतह है का निर्माण करता है।

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