रविवार, 24 नवंबर 2013

बोनस की ज़िंदगी---विजय राजबली माथुर

12 घंटे जीवित रही संतान को श्रद्धांजली स्वरूप :

दिसंबर 1981 का यह चित्र होटल मुग़ल शेरटन,आगरा में 'सुपरवाईजर अकाउंट्स'के रूप में कार्यरत रहने के दौरान साथ खड़े असिस्टेंट मेनेजर द्वारा फोटोग्राफर से खिंचवाया गया था। इस पर यूनिट फ़ाईनेंशियल कंट्रोलर रत्नम पंचाक्क्षरम साहब ने कहा था-'he looks like Chandrashekhar' जिस पर साथ खड़े कपूर साहब ने कह दिया 'tomorrow we will salute him'तिस पर पंचाक्क्षरम साहब ने कहा-'why not yesterday'। फिक्ज़्ड एसेट्स इनवेंटरी में पौने छह लाख का घपला पकड़ने पर बजाए मुझे पुरस्कृत करने के पंचाकक्षरम साहब द्वारा 1984 में मुझे सस्पेंड और 1985 में बर्खास्त करा दिया गया।
मैं कभी चंद्रशेखर को ठीक समझता था;परंतु मोरारजी के बाद बाबू जगजीवन राम के विरुद्ध खड़े होने तथा वी पी सिंह सरकार को गिराने के बाद आडवाणी से गले मिलने के चंद्रशेखर के कृत्यों के कारण वह मेरी पसंद से बाहर हो चुके हैं।

https://www.facebook.com/photo.php?fbid=601652216563425&set=a.154096721318979.33270.100001559562380&type=1&theater
(मेरे दाईं ओर खड़े हुये राम प्रकाश चतुर्वेदी उनके दाईं बाबू मेथ्यू बैठे हुये सुभाष कपूर,उनके दाईं खड़े ठाकुर दास,उनके दाईं बैठे एडवर्ड गोरडेन तथा सामने की ओर टेलीफोन लिए बैठे अरुण चतुर्वेदी (राज बब्बर के मित्र समीर चतुर्वेदी के छोटे भाई)


32 वर्ष पूर्व के इन चित्रों को शेयर करने का कारण मात्र उपरोक्त फेसबुक स्टेटस ही नहीं है। उसमें वर्णित होटल मुगल जाब से हटने का कारण तो तात्कालिक परिस्थितियों पर आधारित था किन्तु उसके अनंतर 'आंतरिक' और 'बाह्य' शक्तियों की ईर्ष्या भी एक सबल आधार थी जिसने परिस्थितियों को यों करवट दिलवाई। जून 1975 में आपात काल लागू होने के बाद मेरा मेरठ वाला जाब बर्खात्सगी के कारण छूट गया तो मैं आगरा आ गया और सितंबर में होटल मुगल में जाब पा गया था। 20 नवंबर 1975 को बहन शोभा का विवाह हो गया  था जिनको दिसंबर में बाबूजी ने अलीगढ़ से बुलवाया था और उनको वापिस ले जाने कमलेश बाबू जनवरी 1976 में आगरा आए थे। तब माँ ने उनसे शिकायती लहजे में कहा था कि यह (अर्थात मैं) मकान नहीं बना रहा हूँ । उस पर कमलेश बाबू का जवाब था कि 'हाँ' अब तो यही मकान बना सकते हैं बाबूजी नहीं क्योंकि चाहे एक-एक कमरे के लें उनको तो तीन मकान लेने पड़ेंगे। मतलब साफ था कि यदि बाबूजी बनाएँगे तो उसमें शोभा को भी हिस्सा देना पड़ेगा। उससे पूर्व शोभा से उन्होने अलीगढ़ में ही कहा था कि बाबूजी दरियाबाद में अपना हिस्सा ले लें तो वह BHEL,हरिद्वार से नौकरी छोड़ कर उनके बिहाफ पर देखने दरियाबाद चले जाएँगे। अर्थात उनकी निगाह तो बाबूजी की पैतृक संपत्ति तक पर थी।

इसलिए जब 1978 में मैंने कमलानगर,आगरा में आवास-विकास परिषद से एक एल आई जी मकान किश्तों पर ले लिया तो कमलेश बाबू को लगा होगा कि बाबू जी ने बेटी को हिस्सा न देने के कारण मेरे नाम कर दिया है। यदि ऐसा होता तो क्या छोटे भाई अजय ने चुप-चाप बख्श दिया होता? रु 275/-प्रतिमाह की किश्तों पर वह मकान एलाट हुआ था। अपने वेतन से किश्त अदा करने के बाद बिजली आदि के खर्च मैं ही देता था और जब रहने पहुंचे थे तो बाबूजी रिटायर हो चुके थे। लेकिन तमाम रिशतेदारों (जिनमें बहन-बहनोई भी थे उनका खुलासा तो 2011 में ही हो पाया है) समेत होटल के सहकर्मियों को भी अखरा था कि मात्र 26 वर्ष की आयु में कैसे इसका अपना मकान बन गया। असिस्टेंट मेनेजर  ईर्ष्यालु होटल कर्मियों का नायक था और चंद्रशेखर संबंधी उसका उद्धरण इसी संदर्भ में था। किश्तें 1993 तक चलनी थीं और 1985 में जाबलेस होने के कारण मैं विफल होकर मकान से वंचित हो जाऊंगा ऐसी उन सब की सोच थी। किन्तु मैंने चने-परमल भी खा कर दुकान-दुकान की नौकरी करके किश्तें पूरी चुका दी और रेजिस्टरी भी बिना रिश्वत दिये करा ली। टर्मिनेशन के बाद पिटीशन देने के कारण AITUC के और उसके जरिये CPI के संपर्क में आ गया था। 1992  में भाकपा,आगरा में दोबारा ज़िला कोषाध्यक्ष नियुक्त हुआ था।तत्कालीन जिलामंत्री कामरेड के माध्यम से गवर्नर मोती लाल बोरा जी को आवास-विकास विभाग द्वारा परेशान किए जाने की शिकायत भिजवाई थी जिस पर उन्होने राष्ट्रपति शासन के दौरान त्वरित कारवाई करवाई और मेरा कार्य बगैर रिश्वत दिये सम्पन्न हो सका था। 
1994 में शालिनी की मृत्यु के बाद शोभा ने माँ से साढ़े दस वर्षीय यशवन्त को अपने साथ ले जाने का प्रस्ताव किया और अजय की पत्नी ने उस प्रस्ताव को रद्द करा दिया (मुझे ये सब बातें बहुत बाद में तब पता चलीं जब माँ व बाबूजी ने पूनम से विवाह कर लेने की बात की)। शालिनी के सबसे बड़े भाई कुक्कू जो कमलेश बाबू के भतीज दामाद थे (2011 में ही  लखनऊ में इस बात का खुलासा हो सका) के माध्यम से 1982 में मुझे दो बार मार डालने का प्रयास हुआ था। परंतु 24 नवंबर 1982 को यशवन्त का बड़ा भाई सुबह चार बजे जन्म लेकर शाम चार बजे यह संसार छोड़ गया था जबकि मुझे मार डालने के उनके प्रयास विफल हो गए थे।
जिस प्रकार हमारी भुआ कैलाश किशोरी साहिबा ने रामेश्वरम में बिजली के DC करेंट की चपेट मे आ कर एक हाथ तुड़वाने के बावजूद अपने एक भाई से मुकदमे बाज़ी मे छल के जरिये जीत हासिल की और मेरे विरुद्ध भी सुनियोजित अभियान चलाया उसी प्रकार खुद को उनकी सगी भतीजी साबित करते हुये डॉ शोभा (पत्नी कमलेश बिहारी माथुर S/O सरदारी बिहारी माथुर,विजिलेन्स आफिसर,रेलवे,अलीगढ़)ने मेरे व यशवन्त के विरुद्ध अभियान चला रखा है। अजय व उनकी पुत्री के भी विरुद्ध हैं। माईंजी के तथा भुआ के बेटों के माध्यम से शोभा/कमलेश बाबू ने अजय का मुझसे भी संपर्क तुड़वा रखा है।  शालिनी के घर वाले तो कमलेश बाबू के रिश्तेदार पहले से ही थे जिनको मेरे विरुद्ध उनका गुप्त-आंतरिक समर्थन था।
पूना में बस गई शोभा की छोटी पुत्री चंद्रप्रभा उर्फ मुकतामणि ने पूना प्रवासी(और पटना की मूल निवासी)रश्मिप्रभा के माध्यम से न केवल ब्लाग जगत में मेरे व यशवन्त के विरुद्ध लामबंदी करके अभियान चलाया बल्कि रश्मिप्रभा की एक रिश्तेदार के माध्यम से उनके रिश्तेदार भाकपा पदाधिकारी (यूनियन बैंक आफ इंडिया का कारिंदा)के माध्यम से पार्टी में भी मेरे विरुद्ध अभियान चलवाया था जिसके अंतर्गत 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी'ब्लाग में लेखन की आड़ में मेरा आई डी/पासवर्ड उस भ्रष्ट पदाधिकारी ने हासिल कर लिया जिसका उद्देश्य रश्मिप्रभा आदि ब्लागर्स संबंधी मेरे पोस्ट्स को ब्लाग से उड़ा देना था। इसमें विफल रहने पर नौ अक्तूबर 2013 को उस पदाधिकारी ने मुझे उस ब्लाग के लेखन/एडमिन कार्य से हटा दिया था। 10 अक्तूबर को ही 'साम्यवाद (COMMUNISM)'नामक एक नया ब्लाग मैंने प्रारम्भ कर दिया है और 23 नवंबर 2013 से 'UNITED COMMUNIST FRONT' नामक एक नया फेसबुक ग्रुप प्रारम्भ कर दिया है। इस प्रकार (चाहे रिशतेदारों का जितना भी विरोध हो) हमें अनेक लोगों का समर्थन और प्रोत्साहन मिल ही जाता है और वही हमारा संबल व पूंजी है।
 सच में हमारे लिए यह'आत्म बल का पुरस्कार ' 'कठिनाइयों व दुखों' की तुलना में हज़ार गुना अधिक मूल्यवान है। ज्योतिष में पूर्ण आयु 60 वर्ष को मान लिया जाता है। इस प्रकार मैं अपनी पूर्ण आयु प्राप्त कर चुका हूँ और बोनस की इस ज़िंदगी में जितना भी सार्वजनिक सेवा कार्य सम्पन्न कर सकूँगा उतना ही अधिक दूसरे लोग लाभ उठा सकेंगे। जो भी लोग मुझे रास्ते से हटाने में सफल होंगे वे सार्वजनिक सेवा के मार्ग को बाधित करके जन-द्रोही कार्य ही सम्पन्न करेंगे। इसलिए मैं पूर्ण रूप से निश्चिंत हूँ।

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