शनिवार, 24 अगस्त 2013

वस्तुतः रक्षाबंधन है क्या?---विजय राजबली माथुर


 Danda Lakhnavi जी की फेसबुक वाल पर एक कमेन्ट पर उनकी प्रतिक्रिया देख कर मैंने एक पोस्ट दी थी जिसे नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है परंतु उससे पूर्व एक और पुरानी पोस्ट उद्धृत है जिसमें ब्रह्मसूत्रेण अर्थात जनेऊ की उपयोगिता लक्षित है। 
वैदिक काल में श्रावणी पूर्णिमा अर्थात रक्षाबंधन के दिन उपनयन=जनेऊ संस्कार करके विद्याध्यन करने की व्यवस्था की गई थी जो कि लड़का/लड़की और वर्ण भेद के बगैर प्रत्येक विद्यार्थी के लिए थी। जनेऊ के धागे ही 'रक्षा-सूत्र'कहे जाते थे और इसी कारण इस पर्व का नामकरण 'रक्षाबंधन' हुआ था। किन्तु जैसा कि अन्य पर्वों के साथ छेड़-छाड़ पोंगापंथी पुरोहितों/ब्राह्मणवादियों ने की है उसी प्रकार इस रक्षाबंधन पर्व को भी विकृत कर दिया गया है।  आज यह बहन-भाई का त्यौहार बना दिया गया है लेकिन उसका भी तथाकथित राष्ट्र वादी( जो अपनी फेसबुक वाल पर 'वंदे मातरम'लिखते और भारत माता का चित्र और भारत का मानचित्र लगाते हैं )घृणित प्रयोग करते हैं जिस पर डॉ डंडा लखनवी जी ने वेदना व्यक्त की थी। 
जिन आधारों पर त्यौहार बने हैं .... उनमें यदि प्रेरक तत्व न रहे तो पुर्न समीक्षा की आवश्यकता है|)
केवल और केवल महिला वर्ग ही अपने पुरातन सिद्धांतों को बहाल कर सकता है क्योंकि वही पोंगापंथियों की जकड़न में ज़्यादा है और उसे ही उनके प्रति विद्रोह करने की आवश्यक्ता है। 
बुधवार, 13 अक्तूबर 2010
"ब्रह्मसूत्रेण पवित्रीकृतकायाम''
सातवीं शताब्दी में बाण भट्ट ने कादम्बरी में लिखा है कि लड़कियों का भी उपनयन होता था .वर्णन है कि महाश्वेता ने जनेऊ पहन रक्खा है.जनेऊ या उपनयन संस्कार शिक्षा प्रारम्भ करने के समय  किया जाता है तब तक लड़के -लड़कियों का भेद हमारे देश में नहीं था .यह तो विदेशी शासकों ने भारतीय समाज की रीढ़ -परिवारों को कमज़ोर करने के लिए लड़कियों की उपेक्षा की कहानियें चाटुकार और लालची विद्वानों से धार्मिक -ग्रंथों में उस समय लिखवाई हैं जिनका दुष्परिणाम आज तक सामजिक विद्वेष व विघटन में परिलक्षित हो रहा है .
जनेऊ के तीन धागे :-१.आध्यात्मिक ,२ .आधिदैविक ,३ .आधिभौतिक तीनो दुखों को दूर करने की प्रेरणा देते हैं .
(अ)-माता ,पिता और गुरु का ऋण उतरने की  प्रेरणा .
(ब )-अविद्या,अन्याय और आभाव दूर करने की जीवन में प्रेरणा .
(स )-हार्ट (ह्रदय ),हार्निया (आंत्र स्खलन ),हाईड्रोसिल /युरेटस  सम्बंधी बीमारयों का शमन ये जनेऊ के तीन धागे ही करते हैं -इसीलिए शौच /लघु शंका करते समय इन्हें कान पर लपेटने की व्यवस्था थी .
 जब ,तब लड़का -लड़की का समान रूप से जनेऊ होता था तो स्वाभाविक रूप से पुत्री -पुत्र सभी के कल्याण की कामना की  जाती थी .गुलाम भारत में पोंगापंथ  के विकास के साथ -२(जो आज निकृष्टत्तम  स्तर पर सर्वव्याप्त है )लड़का -लड़की में भेद किया जाने लगा .लड़कियों /स्त्रियों को दबाया -कुचला जाने लगा जिसे आज आजादी के 66 वर्ष बाद भी दूर नहीं किया जा सका है .इन नवरात्रों में स्त्री -शक्ति आगे बढ़ कर व्रत (संकल्प )करें कि अन्यायपूर्ण पोंगापंथ का शीघ्र नाश करेंगी तभी नारी -मुक्ति संभव है .
 
Friday, 23 August 2013
आखिर यूँ त्यौहारों की लकीर पीटने से क्या हासिल होता है ?
ढोंग को धर्म मानने का दुष्परिणाम:तथाकथित राष्ट्र वादी का भद्दा कमेन्ट ---



एक तू ही धनवान हैं गोरी बाकी सब कंगाल —
— with Vikash Goyal.
Danda Lakhnaviआज रक्षा-बंधन का दूसरा दिन है| अभी रक्षा -बंधन पर बंधा धागा खुला नहीं होगा ... एक भाई को एक बहन गोरी दिख रही है. आखिर यूँ त्यौहारों की लकीर पीटने से क्या हासिल होता है ?

आदरणीय डॉ डंडा लखनवी जी ने यह वाजिब सवाल उठाया है -"आखिर यूँ त्यौहारों की लकीर पीटने से क्या हासिल होता है ?" 
एक तरफ तो हर त्यौहार को धर्म के साथ जोड़ा जाता है दूसरी ओर धर्म विरुद्ध आचरण किया जाता है तो उससे स्पष्ट है कि धर्म को 'धर्म' के रूप में नहीं बल्कि 'ढोंग-पाखंड-आडंबर'के रूप में केवल 'मौज -मस्ती' के लिए प्रयोग किया जा रहा है। तभी तो कुत्सित विचारों का प्रदर्शन किया जाता है जिन पर डॉ साहब ने समयोचित-सटीक टिप्पणी की है। ऐसे कुत्सित लोगों को रामदेव-आशा राम सरीखे ढोंगियों से बल मिलता है और समाज में अराजकता की स्थिति उत्पन्न होती है। प्रतिक्रिया स्वरूप लोग धर्म को ही कटघरे में खड़ा कर देते हैं क्योंकि ढ़ोंगी जो धर्म के ध्वजा वाहक बन जाते हैं। आवश्यकता है ढोंगियों का पर्दाफाश करने एवं 'धर्म' की वास्तविक मीमांसा जन -जन को समझाने की।

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1 टिप्पणी:

ढोंग-पाखंड को बढ़ावा देने वाली और अवैज्ञानिक तथा बेनामी टिप्पणियों के प्राप्त होने के कारण इस ब्लॉग पर मोडरेशन सक्षम कर दिया गया है.असुविधा के लिए खेद है.

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