सोमवार, 12 अगस्त 2013

13 जूलाई कांड -दान देना घातक हुआ

हालांकि 12 जूलाई 2013 को पाक्षिक पत्रिका के संपादक महोदय और उनके साथी के बांदा के लिए प्रस्थान करते ही लखनऊ क्षेत्र के भीतर ही उनकी जीप के साथ गंभीर हादसा हुआ था जिसमे आगे का 'विंड मिरर' पूरी तरह नष्ट हो गया था और उन लोगों को वैसे ही गंतव्य तक जाना पड़ा था। 13 जूलाई को संपादक जी ने मीटिंग की समाप्ती के बाद कार्यकारी संपादक से इस घटना का ज़िक्र कई लोगों के सामने ही  किया था। किन्तु संपादक महोदय फिर भी कार्यकारी संपादक पर शक करने को तैयार नहीं हैं। परंतु 13 जूलाई को मीटिंग के दौरान कार्यकारी संपादक का जैसा व्यवहार था और उसके बाद मुझे सपरिवार जितने कष्टों को झेलना पड़ा मुझे पूरा यकीन है कि यह सब उन घोटालू साहब का ही किया धरा हुआ है।

13 जूलाई 2013 की मीटिंग के दौरान मीटिंग अध्यक्ष की अनुमति के बगैर ही एजेंडा से हट कर एक प्रस्ताव घोटालू साहब ने संपादक जी से रखवाया जिसके अनुसार घोटालू साहब के निष्क्रिय मित्र जो डेढ़ वर्ष के दौरान एक भी मीटिंग में उपस्थित नहीं हुये थे उनके आधीन मुझे उनको सहयोग करना था जिससे निष्क्रिय साहब की सक्रियता दिखाई जा सके। मैंने एजेंडा से बाहर के उस प्रस्ताव को जो अध्यक्ष की अनुमति के बिना ही रखा गया था मीटिंग -मिनिट्स में दर्ज ही नहीं किया था। अतः घोटालू साहब की योजना ध्वस्त हो रही थी जिस कारण वह बौखला गए थे और मेरी कुर्सी में लातें ठेलते-ठेलते मेरे पैरों पर भी ठोकर मारने लगे और दबाव डालने लगे कि मैं उस अवैध प्रस्ताव को मिनिट्स में दर्ज करूँ जबकि मीटिंग संचालक एवं अध्यक्ष ने और संपादक महोदय ने भी मुझसे न लिखने पर कोई आपत्ति न की थी। घोटालू साहब की अभद्रता की इंतिहा तब हो गई जब वह मेरे पेट में उंगली भोंक कर लिखने का दबाव बनाने लगे। मैंने पूरी तरह घोटालू साहब और उनके दुष्कृत्यों की उपेक्षा कर दी। 

लेकिन यह उपेक्षा मुझे व मेरे परिवार को इतनी मंहगी पड़ेगी इसका कोई पूर्वानुमान नहीं था। घोटालू साहब मेरे प्रत्येक ब्लाग-पोस्ट की निंदा करते और अपने पिट्ठूओ से कराते रहते हैं। मेरा एक लेख था-

शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

दान देना कितना घातक हो सकता है --जानिए अपने ग्रहों से http://krantiswar.blogspot.in/2012/04/blog-post_13.html

इस लेख के माध्यम से मैंने सर्व-साधारण को आगाह किया था कि प्रत्येक को प्रत्येक 'दान' देना घातक हो सकता है।  अतः जब घोटालू अपने मिशन में विफल हो गया था तो उसने पुनः अध्यक्ष की अनुमति के बगैर और एजेंडा से बाहर हट कर झोली फैला कर 'दान-संग्रह' प्रारम्भ कर दिया। बिना किसी पूर्व सूचना के इस प्रकार दान उगाहना कितना 'नैतिक' हो सकता है ?जब सभी लोग रु 500/-,100/-देने लगे तो मुझे भी मजबूरन रु 50/- का योगदान देना पड़ा जबकि मुझे इस प्रकार के दान नहीं देने चाहिए थे। नतीजतन अगले दिन ही मेरे पुत्र की तबीयत इतनी ज़्यादा गड़बड़ हो गई कि उसे दो दिन बाद बाहर के डाक्टर को दिखाना पड़ा (18 वर्ष बाद हमें उसे किसी बाहरी डाक्टर के पास ले जाना पड़ा),अभी वह पूरी तरह ठीक भी नहीं हो पाया कि मेरी पत्नी की तबीयत भी खराब हो गई और उनके साथ-साथ मेरी भी तबीयत गड़बड़ हो गई अर्थात सम्पूर्ण परिवार रुग्ण हो गया और एक माह उपरांत अभी तक किसी की भी तबीयत बिलकुल ठीक नहीं हो पाई है। रु 50/- का दान देकर लगभग रु 1500/- की चोट और शारीरिक/मानसिक आघात हम सबको सहना पड़ गया है।

आखिर क्यों घोटालू मुझे परेशान करता है?

वस्तुतः पूना प्रवासी भृष्ट-धृष्ट -निकृष्ट-ठग ब्लागर की एक साथी घोटालू साहब की भाभी होती हैं जिनका ताल्लुक हमारे गृह ज़िले से है और वही घोटालू साहब के परम मित्र एक राजनीतिक दल के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष की भी रिश्तेदार हैं जिनको घोटालू साहब ने एक पूर्व विधायक के अतिरिक्त हमें परेशान करने हेतु लगाया था।  इन सबके सम्मिलित प्रयासों के बावजूद मैंने घुटने नहीं टेके तो घोटालू साहब अब निकृष्टत्तम धूर्तता पर उतर आए हैं वह यह नहीं सोच/समझ रहे हैं कि उनको यह तात्कालिक लाभ तो मिल गया किन्तु कालांतर में जब इसके दुष्परिणाम उनके सामने आएंगे तब वह क्या करेंगे?



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1 टिप्पणी:

  1. फेसबुक के Janhit-जनहित ग्रुप में प्राप्त टिप्पणी---
    Danda Lakhnavi दोहों के आगे दोहे.......
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    चलना भ्रष्टाचार का, जिसमें लाखों छेद।
    काले धन से हो रहा, काला काम सफ़ेद॥
    ====================
    © सद्भावी- डॉ० लखनवी
    7 hours ago · Unlike · 1

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