गुरुवार, 25 जुलाई 2013

जिसकी लाठी उसकी भैंस वाला सिद्धान्त ही चल रहा है ---विजय राजबली माथुर

सुप्रसिद्ध आलोचक/साहित्यकार वीरेंद्र यादव जी को किसी के द्वारा एस एम एस से धमकी दिये जाने पर धमकीदाता के विरुद्ध FIR कराने का सुझाव जिन राजनेता द्वारा दिया गया है और इसे 'जुर्म' की संज्ञा दी गई है उनके भी संग्यान में यह बात है कि पी टी सीतापुरिया किस प्रकार मुझे न केवल धमकाता रहता है वरन उसने हमारे सम्पूर्ण परिवार को त्रस्त कर रखा है। बड़े लोगों की बड़ी बातें मुझे सीतापुरिया के प्रति शक न रखने की सलाह उनके द्वारा दी गई है। ये दो प्रकार की भूमिकाएँ सिद्ध करती हैं कि आज भी बलशाली का ही प्रभुत्व है एवं न्याय व समानता की बातें केवल कागजी हैं और बेमानी हैं। 

कारपोरेट मेनेजमेंट एवं कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में निर्णय लेने के सूत्र एक ही हैं अपने सदृश्य का बचाव करना। 1984 और 2013 में कोई फर्क नहीं है मानसिकता वही है। 

जब मुझे कार्यकारी संपादक को सहयोग करने को कहा गया था तो पार्टी-हित में काम करने की बात कही गई थी जिसे ही मैंने स्वीकारा था। किन्तु 30 मई को पहले दिन ही कार्यकारी संपादक ने यह कह कर कि,उनके साथ अनेकों लोग आए और उखड़ गए देखना है कि मैं कब तक टिक पाता हूँ यह संकेत दे दिया था कि वह मुझे उखाड़ने का हर संभव प्रयास करेंगे जिसका ज़िक्र मैं पूर्व में ही कर चुका हूँhttp://vidrohiswar.blogspot.in/2013/07/blog-post.html
"एक पी टी सीतापुरिया हैं जो बड़े कम्युनिस्ट के रूप में स्थापित होने के बाद भी क्षुद्र ब्लागर्स के हितों के संरक्षणार्थ तांत्रिक प्रक्रियाओं का सहारा लेकर खुद को सहायता देने वाले को ही तहस-नहस कर देना चाहते हैं। यह खुद भी एक जन्मपत्री का वैवाहिक विश्लेषण मुझसे प्राप्त कर चुके हैं"

13 जूलाई 2013 को पी टी सीतापुरिया ने अपने निष्क्रिय मित्र के बचाव में मुझे उसका सहायक बनाने का प्रस्ताव रखा जिसे मैंने अस्वीकार कर दिया। अतः पी टी सीतापुरिया ने अपने तांत्रिक प्रयोगों से मेरे पुत्र को अस्वस्थ कर दिया। लगभग 18 वर्ष बाद किसी बाहरी चिकित्सक का हमें परामर्श लेने पर बाध्य होना पड़ा और अपार धन भी व्यय करना पड़ा। उसके बाद मुझे व पत्नी को भी बुखार का सामना करना पड़ा। क्योंकि पी टी सीतापुरिया नहीं चाहता था कि मैं कार्यालय तक पहुंचूँ अतः उसने हमें घर में अस्वस्थता की जकड़ में डाल दिया। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि उसकी जकड़ में वरिष्ठ नेतृत्व होने के कारण उसके विरुद्ध कोई भी बात सुने जाने की कहीं भी कोई भी संभावना नहीं है। अतएव मैं भी वीरेंद्र यादव जी की भांति ही उसका असली नाम,पद,पता उजागर कर देने पर बाध्य हौंउगा।   

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