बुधवार, 3 जुलाई 2013

निस्वार्थ,निशुल्क सेवा देना - है मुसीबतों को दावत देना!---विजय राजबली माथुर

एक समय की बात है कि मुसीबत के मारे की मदद करना एक परोपकार माना जाता था और मदद लेने वाला इसका एहसान मानता था। एहसान न भी माने तो कम से कम मदद करने वाले का नुकसान करने की तो बात भी नहीं सोच सकता था। लेकिन आज उदारीकृत अर्थव्यवस्था सामाजिक सरोकारों को नए तरीके से परिभाषित कर चुकी है। आज मदद करने वाले को बेवकूफ  समझा और कहा जाता है। 'नेकी कर और दरिया में बहा' सूत्र के अनुसार हमने किसी से किसी भी मदद के विनिमय में किसी  भी प्रकार की अपेक्षा कभी भी रखी ही नहीं। किन्तु आश्चर्य तो तब हुआ जब मदद लेने वालों ने हमारे ज्ञान और प्रोफेशन पर हमले-दर-हमले करने शुरू किए। 

सर्वप्रथम पटना के मूल निवासी और पूना प्रवासी ब्लागर ने हमसे चार जन्मपत्रियों का विश्लेषण निशुल्क प्राप्त किया फिर उसकी पटना प्रवासी और कानपुर की मूल निवासी शिष्या  ब्लागर ने भी चार जन्मपत्रियों का निशुल्क विश्लेषण प्राप्त किया।इसके अतिरिक्त  कानपुर के मूल निवासी और विदेश प्रवासी एक फेसबुकिए स्वयंभू मार्क्स वादी विद्वान ने भी निशुल्क जन्मपत्री विश्लेषण प्राप्त किया और क्रांति नगर मेरठ के एक सी पी एम/जलेस नेता ने दो जन्मपत्रियों का निशुल्क विश्लेषण प्राप्त किया। और इन सब लोगों ने क्या किया?

मेरठ के सी पी एम/जलेस नेता ने भ्रष्ट हज़ारे-आंदोलन का मेरे द्वारा समर्थन न करने पर मुझे अज्ञानी और अदूरदर्शी की उपाधि प्रदान की। 

विदेश प्रवासी स्वयंभू मार्क्स वादी विद्वान ने  'स्टालिन' व 'नेताजी सुभाष चंद्र बोस' की तारीफ करने पर  अनेकों फेसबुक नोट्स मेरे विरुद्ध लिखने के बाद फेसबुक ग्रुप 'लाल झण्डा' से मुझे ब्लाक किया । 

पटना प्रवासी ब्लागर ने अपने पति के कार्यालय में मेरे पुत्र को नौकरी का आफ़र दिया था जिसे ठुकराने पर मेरे विरुद्ध ब्लाग जगत में निराधार-अनर्गल लेखन किया। 

पूना प्रवासी भृष्ट-धृष्ट-निकृष्ट ब्लागर ने IBN7 के कारिंदा अपने रिश्तेदार ब्लागर से 'ज्योतिष एक मीठा जहर' लेख लिखवाया और साथ ही साथ मेरे विरुद्ध घृणित प्रचार अभियान चलाया। अपने संपर्कों के आधार पर हमारी पार्टी के दो नेताओं एवं सहयोगी वामपंथी पार्टी के एक नेता को मेरे विरुद्ध सक्रिय किया। इनमें से एक पी टी सीतापुरिया तो मेरे विरुद्ध तांत्रिक प्रक्रियाओं का भी सहारा ले रहे हैं जो कि वस्तुतः पूर्व में आर के नामक सो काल्ड कम्युनिस्ट नेता के कदमों का ही अनुसरण कर रहे हैं। 

पी टी एस के मुझसे खफा होने का कारण मात्र इतना सा है कि उनके बड़े नेता जी  ने मुझे उनकी सहायता करने को कहा है जिसे मैंने सहर्ष निस्वार्थ भाव से स्वीकार कर लिया है। पहले उन्होने इर-रिलीवेंट कहानियाँ सुना -सुना कर मुझे भयभीत करने का प्रयास किया जिसमें असफल रहने पर  फिर तांत्रिक  प्रक्रियाओं के सहारे से मुझे ही नहीं परिवारी जनों को भी त्रस्त करने लगे। एक रोज़ मार्ग में साईकिल में पीछे से 'उ.प्र.सचिवालय' की तख्ती लगाए कार ने  टक्कर मारी तो अगले दिन एक स्कूटर ने सामने से हैंडिल में टक्कर मारी।फिर उन्होने सार्वजनिक ब्लाग में लेखन अधिकार देने के साथ-साथ एडमिन राईट्स भी दे दिये जिसके आधार पर उनके सामने मुझे अपनी आई डी से ब्लाग पोस्ट निकालने को कहा। स्व्भाविक रूप से उन्होने आई डी पासवर्ड हासिल किया होगा जिसे मैंने घर पहुँचने से पूर्व ही पुत्र के माध्यम से बदलवा लिया और वह अपने मिशन में असफल रह गए। लेकिन अब मैंने सार्वजनिक लेखन हेतु एक नई आई डी ही बना ली अतः पुनः अपने सामने उनके द्वारा पोस्ट डलवाने पर मुझे कोई दिक्कत नहीं रही किन्तु उन्होने इसके पासवर्ड से खिलवाड़ करने का प्रयास किया जिससे यह आभास हुआ कि वह मूलतः मेरी निजी आई डी का पासवर्ड हस्तगत करके मेरे ब्लाग में पूना प्रवासी ब्लागर और उसके समर्थकों के संबंध में लिखे विषय में हेरा-फेरी करके उन लोगों को साफ-साफ बचाना चाहते थे। डायचेवेले के पूर्व कारिंदे समेत कुछ लोगों की मदद से फेसबुक पर भी मेरे विरुद्ध उन्होने अभियान चलवा रखा है।  उनकी हरकतों के मद्दे नज़र मैंने घर से बाहर चाय पीना बंद कर दिया था फिर भी गत बुधवार -26 जून 2013 को उन्होने चाय पीने को मजबूर किया जिसके बाद से वहाँ अभी तक नहीं पहुँच पाया हूँ और यही तो वह चाहते भी थे।

सो काल्ड कम्युनिस्ट आर के : 

आर के साहब एक प्राइमरी शिक्षक यूनियन के नेता की हैसियत से कम्युनिस्ट पार्टी में कार्यरत थे। एक ज़िले के पार्टी जिलमंत्री के निजी कारखाने पर उनकी निगाह गड़ गई थी और इसके लिए उन्होने अपने बेटे को मोहरा बना कर उनकी एक लड़की से विवाह करने का प्रस्ताव रखा। वह जिलामंत्री महोदय कई पार्टी कामरेड्स की निजी तौर पर भारी सहायता कर चुके थे। सभी कामरेड्स उन जिलामंत्री महोदय को आर के से दूर हटा कर उनके परिवार को बचाना चाहते थे। लेकिन आर के ने तांत्रिक प्रक्रियाओं के जरिये उनके बड़े बेटे को रुग्ण एवं उनके मस्तिष्क को जाम कर दिया था। उनकी शाखा के मंत्री कामरेड जो उनके छोटे भाई के रूप में विख्यात थे खिन्न होकर पार्टी छोड़ गए और जाते-जाते मुझसे घर पर कह गए थे कि जैसे भी हो जिलामंत्री महोदय के परिवार को बचाने के लिए कोई उपाय ज़रूर करना। उनके व्यापार में कुछ समय पार्टनर रहे एक एवं दूसरे व्यवसाय के साथी दूसरे कामरेड ने भी मुझसे कहा कि पार्टी टूटेगी तो फिरसे खड़ी हो जाएगी लेकिन उनका परिवार एक बार टूट गया तो बुरी तरह से बिखर जाएगा। कुछ न कुछ उपाय करके उनके परिवार को बचाना है। आर के मय जिलमंत्री महोदय को समझाने के बावजूद उनके टस से मस  न होने के कारण पार्टी मे उनके विरोध का निश्चय किया गया। 1992 के ज़िला सम्मेलन में जो राज्य सम्मेलन के बाद हुआ था आर के के समर्थन के कारण जिलमंत्री महोदय को पुनः निर्वाचित न होने देने का पूरा बंदोबस्त कर लिया गया था लेकिन कोई भी उनके मुक़ाबले में उतरने का साहस नहीं जुटा पा रहा था। आदतन उन्होने कहा कि इस बार दूसरा जिलमंत्री चुन लिया जाये और उनको मुक्त कर दिया जाये। हर बार सब लोग पुनः उनको सर्व-सम्मति से निर्वाचित कर देते थे। इस बार उनके फ़ार्मेलिटी के लिए कहे गए शब्दों को स्वीकार करके उनके ही विश्वस्त और निकटस्थ कामरेड का नाम उनके विकल्प में ले दिया गया जिसका विरोध भी वह न कर सके। प्रस्तावक को उन्होने नए जिलामंत्री का  सहायक सचिव बनाने का प्रस्ताव कर दिया उसे  भी सर्व-सम्मति से स्वीकार कर लिया गया।

सम्मेलन स्थल के लिए रवाना होने से  एक दिन पूर्व उन जिलामंत्री महोदय ने मुझे अपने घर बुलवाया था और मुझसे आर के का विरोध न करने को कहा था। मैंने उनको साफ कह दिया था कि आप लोग दीवार तक देख रहे हैं लेकिन मैं तो दीवार के उस पार भी देखता हूँ और मुझे दीख रहा है कि आर के आपका सबसे बड़ा शत्रु है अतः आर के का विरोध करना परमावश्यक है जिससे आपकी भावी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। वह ठठा कर हंस दिये थे और बोले थे कल सम्मेलन में आपकी हार होने जा रही है। मैंने कहा निश्चय ही मुझे अपने हारने की बेहद खुशी होगी। बोले वह क्यों?मैंने साफ कहा आपकी एक प्रतिष्ठा है जो आपके हारने से धूमिल होगी लेकिन मुझे जानता ही कौन है ?जो हारने पर मुझे अपमानित होना पड़े। वह बोले 'तो आप हमारे खैरख्वाह हैं' मैंने स्पष्ट कहा कि निश्चय ही। 

सम्मेलन के बाद उन्होने खीझ उतारने के लिए मुझे निकालने का असंवैधानिक प्रयास किया था जिस कारण मैं बाद में निष्क्रिय हो गया था। 9 वर्ष पदारूढ़ रह कर 9 वर्ष उनको अपदस्थ रहना पड़ा था लेकिन आर के का पर्दाफाश हो चुका था अतः उन्होने खुद ही आर के को पार्टी से निकलवा दिया। पुनः पदारूढ़ होने पर वह मेरे घर आकर मुझे कार्यक्रमों में शामिल करने लगे और जिन नेता जी ने मुझे पी टी सीतापुरिया की सहायता  करने के लिए कहा है उनकी ही उपस्थिती में पुनः पार्टी में शामिल कर लिया था। 

एक आर के थे जो निहित स्वार्थ के कारण कम्युनिस्ट बन कर तांत्रिक प्रक्रियाओं से अपना कद बढ़ाना चाहते थे। एक पी टी सीतापुरिया हैं जो बड़े कम्युनिस्ट के रूप में स्थापित होने के बाद भी क्षुद्र ब्लागर्स के हितों के संरक्षणार्थ तांत्रिक प्रक्रियाओं का सहारा लेकर खुद को सहायता देने वाले को ही तहस-नहस कर देना चाहते हैं। यह खुद भी एक जन्मपत्री का वैवाहिक विश्लेषण मुझसे प्राप्त कर चुके हैं। लेकिन जैसा कि प्रारम्भ में लिखा है 'उदारीकृत अर्थ व्यवस्था वाले समाज' में निस्वार्थ,निशुल्क सेवा प्रदाता को बेवकूफ समझा जाता है। पी टी सीतापुरिया आदि-आदि मुझे बेवकूफ समझते व कहते हैं। मैं भी खुद को बेवकूफ ही समझता हूँ वरना क्यों कर  मुसीबतों को दावत देता!


Link to this post-



1 टिप्पणी:

ढोंग-पाखंड को बढ़ावा देने वाली और अवैज्ञानिक तथा बेनामी टिप्पणियों के प्राप्त होने के कारण इस ब्लॉग पर मोडरेशन सक्षम कर दिया गया है.असुविधा के लिए खेद है.

+Get Now!