शनिवार, 25 मई 2013

मान न मान ऊंची दुकान फीका पकवान ---विजय राजबली माथुर

'मान न मान मैं तेरा मेहमान' एवं 'ऊंची दुकान -फीका पकवान' दो अलग-अलग कहावतों  को एक में मिला कर शीर्षक देने का आशय एक ऐसे चरित्र वाले व्यक्ति की खटकने वाली बातों पर प्रकाश डालना है। 

एक उम्र दराज राजनेता साहब हमारे पार्टी कार्यालय में अक्सर पधारते और हमारे वरिष्ठ नेताओं से सम्मान प्राप्त करते रहते हैं। अतः मिलने पर मेरे द्वारा भी उनको सम्मान दिया जाना उसी क्रम की एक औपचारिकता है। गत वर्ष 31 मई के संयुक्त प्रदर्शन के बाद धरना-स्थल पर अपना भाषण देने के बाद वह मेरे पास आकर खड़े हो गए और अपनी वार्ता छेड़ दिये,हालांकि उनको खुद भी वक्ता को सुनना चाहिए था और मुझे भी सुनने देना चाहिए था विशेषकर तब जबकि वक्ता डॉ श्री  प्रकाश कश्यप साहब आगरा से ही हमारे पूर्व परिचित रहे हैं। औपचारिकता और शिष्टाचार को दरकिनार करते हुये यह साहब अपनी ही गाथा कहते रहे। मुझको यह बताने का प्रयास करते रहे कि वह हमारे खानदान से व्यक्तिगत रूप से परिचित हैं और उनकी  अपनी कोई रिश्तेदारी भी हमारे खानदान में है। वह आगरा के हमारे परिचितों को जानते हैं आदि-आदि बातें उनके द्वारा वर्णित करने के उपरांत इच्छा ज़ाहिर की गई कि वह हमारे घर आना चाहते हैं। कई-कई बार उन्होने आने का समय दिया परंतु नहीं आए। मुझे अपने घर बुलाते रहे मैं नहीं गया। दो अक्तूबर को हम लोग जब कहीं जाने के लिए सिटी बस में थे फोन करके कहते हैं कि वह हमारे घर आ रहे हैं। मजबूरन कहना पड़ा कि हम कहीं रास्ते में हैं घर पर नही।अंततः 18 अक्तूबर 2012 को वह हमारे घर पहली बार पहुंचे। पहले भी जब-जब उनके फोन काल्स आए  या वह खुद घर आए हमें किसी न किसी प्रकार का नुकसान ज़रूर हुआ। 

वह यशवन्त से भी अपने कागजात आदि कन्सेशनल रेट पर या मुफ्त टाईप करवाने लगे। इतना तक तो ठीक था झेला जा सकता था। किन्तु मेरे साथ-साथ  मेरी पत्नी एवं पुत्र पर अनावश्यक तोहमत थोपना मुझे बराबर अखरता रहा है तब भी यह सोच कर कि हमारे वरिष्ठ नेताओं के बीच उनका उठना-बैठना है उनको प्रत्यक्ष रूप से कुछ नहीं कहा है परंतु अप्रत्यक्ष रूप से उनको कई बार इंगित कर दिया है कि उनका व्यवहार न काबिले बर्दाश्त है। हमारी पार्टी के दो नेता गण भी उनको हमें क्षति पहुंचाने हेतु उकसाते रहते हैं उनका भी संकेत इसी ब्लाग में पूर्व में किया जा चुका है। 17 अप्रैल 2013 को उनके आने के बाद हमें जिस प्रकार वेदना हुई थी उस कारण उसके बाद दो बार उनके आने पर मैं उनसे मिला ही नहीं था ।   जब कल मैं पार्टी कार्यालय में था शाम 5 बजे उनका फोन आया कि वह मेरे घर आ रहे हैं मैंने सूचित कर दिया था कि मैं 7 बजे तक ही पहुँच सकूँगा किन्तु फिर भी वह 6-15 पर पहुँच गए और यशवन्त से अपने कागजात टाईप कराने के बाद मेरा इंतज़ार करते रहे जबकि मैं उनसे मिलने व बात करने का कतई इच्छुक नहीं था। 

उनकी अनर्गल बातें तो मैंने चुप-चाप सुन लीं किन्तु अपनी ओर से कुछ नहीं कहा तब एक पूर्व विधायक के लहजे में उनकी बात को दोहराते हुये उनका कथन था कि चुप क्यों हो?बोलते क्यों नहीं?मजबूरन मुझे यह कहना ही पड़ा कि आपसे क्या बोलें जब आप राजनाथ सिंह व RSS की भाषा बोल रहे हैं। उनका प्रश्न था कि RSS क्या है?मैंने उनको स्पष्ट किया कि 'रियूमर स्पीच्युटिंग सोसाईटी'=RSS होता है। एक वामपंथी दल का प्रदेशाध्यक्ष होते हुये भी उनका दृष्टिकोण घनघोर सांप्रदायिक है। पता नहीं कैसे हमारे वरिष्ठ नेता गण उनको झेलते है ?और कैसे उनके साथ संयुक्त कार्यक्रमों में भाग लेते हैं?वह अपने दल के प्रति निष्ठावान भी नहीं हैं ,पता नहीं क्यों उनके दल का राष्ट्रीय नेतृत्व उनको निष्कासित नहीं कर देता?

बड़े लोगों की बड़ी बातें वे ही जानें किन्तु न चाहते हुये भी मुझे उनको अपने घर आने से मना करना ही पड़ेगा यदि वह कल की ही तरह दोबारा मुझ पर हावी होने की कोशिश करेंगे। उनको आपत्ति थी कि मैं पार्टी कार्यालय क्यों गया?क्या कोई मीटिंग थी?या कोई विशेष काम था?क्या था या क्या नहीं किसी भी हैसियत से उनको कुछ भी मुझसे जानने का हक नहीं था। फेसबुक पर आज उनके जन्मदिन की सूचना के आधार पर उनकी वाल पर यह संदेश जो हर-एक को उसके जन्मदिन पर देता हूँ उनको भी दे दिया है-"जन्मदिन मुबारक हो। हम आपके सुंदर,स्वस्थ,सुखद,समृद्ध उज्ज्वल भविष्य की मंगलकामना करते हैं। " लेकिन सोचता हूँ कि क्या वह इसके हकदार हैं?

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