इस अंक के शीर्षक और इस उद्धरण मे सीधा -सीधा कोई साम्य तो नहीं है परंतु दोनों का चयन जान-बूझ कर ही किया है। पिछले तीन अंकों में 'उदारता और पात्र की अनुकूलता' का जो विवरण दिया है उस पर उनमे उल्लिखित (नाम नहीं दिया था केवल चरित्र वर्णन था )एक नेता ने अपने से वरिष्ठ नेता से शिकायत की कि उन पर अनावश्यक प्रहार किया जा रहा है। जब मेरी ओर से किसी नाम का उल्लेख न होने पर मात्र चरित्र-वर्णन के आधार पर उन्होने उसे अपने लिए मान लिया तो स्पष्ट है कि वह खुद कबूल कर रहे हैं कि वह वैसे ही हैं। इसी के प्रतीक के रूप में 'शीर्षक' का चयन किया गया है और यह उद्धरण भी उन्हीं महात्मा जी पर चस्पा होता है। क्योंकि वह महात्मा जी दूसरों को गिराने (down करने) का कोई भी अवसर चूकते ही नहीं हैं। वह तो अपने से काफी वरिष्ठ-राष्ट्रीय नेताओं को भी 'लांछन' लगाने से बाज़ नहीं आते हैं फिर मैं तो उनके आगे 'किसी भी खेत की मूली ' नहीं हूँ।
उन्होने शिकायत मे यह भी जोड़ा है कि मेरे विरुद्ध उनको 'फोन' पर टिप्पणियाँ मिल रही हैं। ब्लाग पर माडरेशन होने के बावजूद मैंने आश्वासन दिया है कि उनके पक्ष में अपने विरुद्ध टिप्पणियों को मैं ब्लाग मे स्थान दे दूंगा। उनका यह कथन भी इस बात को ही सिद्ध करता है कि जिन लोगों के साथ उनके संपर्कों/सम्बन्धों का उल्लेख किया था वे ही लोग उनको फोन के माध्यम से पार्टी मे अपने 'पद' व 'रुतबे' का इस्तेमाल करके मेरे विरुद्ध कारवाई की मांग कर रहे होंगे। इन लोगों की यह कारवाई 'मारेंगे भी और रोने भी नहीं देंगे' जैसी है।
अतः पिछले तीनों अंकों का मेरा लेखन सटीक व सार्थक रहा और तीर निशाने पर ही लगा;चूका नहीं। यह इस बात से भी पुष्ट होता है कि जिन बड़े नेता से उन्होने शिकायत की थी उन्होने मुझे कुछ कार्य सौंपा था जिसका निष्पादन मैं समय पर और ठीक से न कर सकूँ इसके लिए उन्होने 'तांत्रिक प्रक्रिया' से मेरा स्वास्थ्य चौपट करने का यत्न किया। लगातार नाक बहना,छींक आना और सिर मे भारी दर्द होना वे कारण थे जो कंप्यूटर पर बैठने और लिखने से रोक रहे थे। अंततः स्वास्थ्य की परवाह किए बगैर तौलिया लेकर बहती नाक पोंछते हुये वह कार्य करके ई-मेल द्वारा भेज दिया और sms से सूचित कर दिया। परंतु इस घटनाक्रम से उनकी 'strong people' होने की बात का भी खुलासा हो गया।
मैंने वरिष्ठ नेता कामरेड साहब को यह भी स्पष्ट कर दिया था कि उनके सहयोगी जो प्रादेशिक राजनेता अपनी पार्टी से बगावत करके नई पार्टी बनाना चाहते हैं वह मुझसे सहयोग चाहते हैं और मैंने उनको दो-टूक कह दिया है कि मैं तो पार्टी से भाग नहीं रहा हूँ यदि मुझे अलग भी किया जाता है तो भी 'लेखन' तो करता ही रहूँगा। रांची स्थित अपने रिश्तेदार की ब्लागर पत्नी जो उनके दूसरी पार्टी के प्रादेशिक नेता की भी रिश्तेदार हैं की लामबंदी के कारण वह शिकायतकर्ता नेता मेरे विरुद्ध षड्यंत्र मे अनावश्यक रूप से शामिल होकर अपनी ही ऊर्जा नष्ट कर रहे हैं। शिकायतों का पुलिंदा सजा कर वह यही सिद्ध कर रहे हैं कि,'जहां गड्ढा होता है पानी तो वहीं भरता है '।
उन्होने शिकायत मे यह भी जोड़ा है कि मेरे विरुद्ध उनको 'फोन' पर टिप्पणियाँ मिल रही हैं। ब्लाग पर माडरेशन होने के बावजूद मैंने आश्वासन दिया है कि उनके पक्ष में अपने विरुद्ध टिप्पणियों को मैं ब्लाग मे स्थान दे दूंगा। उनका यह कथन भी इस बात को ही सिद्ध करता है कि जिन लोगों के साथ उनके संपर्कों/सम्बन्धों का उल्लेख किया था वे ही लोग उनको फोन के माध्यम से पार्टी मे अपने 'पद' व 'रुतबे' का इस्तेमाल करके मेरे विरुद्ध कारवाई की मांग कर रहे होंगे। इन लोगों की यह कारवाई 'मारेंगे भी और रोने भी नहीं देंगे' जैसी है।
अतः पिछले तीनों अंकों का मेरा लेखन सटीक व सार्थक रहा और तीर निशाने पर ही लगा;चूका नहीं। यह इस बात से भी पुष्ट होता है कि जिन बड़े नेता से उन्होने शिकायत की थी उन्होने मुझे कुछ कार्य सौंपा था जिसका निष्पादन मैं समय पर और ठीक से न कर सकूँ इसके लिए उन्होने 'तांत्रिक प्रक्रिया' से मेरा स्वास्थ्य चौपट करने का यत्न किया। लगातार नाक बहना,छींक आना और सिर मे भारी दर्द होना वे कारण थे जो कंप्यूटर पर बैठने और लिखने से रोक रहे थे। अंततः स्वास्थ्य की परवाह किए बगैर तौलिया लेकर बहती नाक पोंछते हुये वह कार्य करके ई-मेल द्वारा भेज दिया और sms से सूचित कर दिया। परंतु इस घटनाक्रम से उनकी 'strong people' होने की बात का भी खुलासा हो गया।
मैंने वरिष्ठ नेता कामरेड साहब को यह भी स्पष्ट कर दिया था कि उनके सहयोगी जो प्रादेशिक राजनेता अपनी पार्टी से बगावत करके नई पार्टी बनाना चाहते हैं वह मुझसे सहयोग चाहते हैं और मैंने उनको दो-टूक कह दिया है कि मैं तो पार्टी से भाग नहीं रहा हूँ यदि मुझे अलग भी किया जाता है तो भी 'लेखन' तो करता ही रहूँगा। रांची स्थित अपने रिश्तेदार की ब्लागर पत्नी जो उनके दूसरी पार्टी के प्रादेशिक नेता की भी रिश्तेदार हैं की लामबंदी के कारण वह शिकायतकर्ता नेता मेरे विरुद्ध षड्यंत्र मे अनावश्यक रूप से शामिल होकर अपनी ही ऊर्जा नष्ट कर रहे हैं। शिकायतों का पुलिंदा सजा कर वह यही सिद्ध कर रहे हैं कि,'जहां गड्ढा होता है पानी तो वहीं भरता है '।
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