गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

मिलना जुलना कमजोरी नहीं (भाग-3)---विजय राजबली माथुर


 पिछले अंक से जारी .............

जब मैंने भोपाल या पटना के रिशतेदारों के साथ नहीं लखनऊ मे( यशवन्त की इच्छानुरूप आगरा के मकान को बेच कर)मकान ले लिया तो डॉ शोभा को जो पीड़ा हुई उसे उन्होने उजागर भी कर दिया था।मैं नहीं समझता कि मुझे अपने निर्णय छोटी बहन की इच्छानुरूप क्यों लेने चाहिए थे और पुत्र की इच्छा को क्यों ठुकराना चाहिए था?पूनावासी छोटी भांजी ने इस दरार को खाई मे बदलने मे कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। 06-10-2010 को प्रवासी ब्लागर  डॉ दिव्या श्रीवास्तव जी  ने एक पोस्ट यशवन्त के संबंध मे अपने ब्लाग मे दी थी तब मुक्ता(चंद्र प्रभा)ने पूना से फोन पर बताया था कि उसने डॉ दिव्या  का पूरा प्रोफाईल चेक किया है उसने तत्काल झांसी फोन करके शोभा को बताया था और कमलेश बाबू ने घबराहट भरे शब्दों मे विस्मय व्यक्त किया था।  ब्लागर्स प्रोफाईल  चेक करने मे उन लोगों द्वारा दी टिप्पणियों का मुक्ता ने सहारा लिया था और उसी क्रम मे पटना की मूल निवासी और विमान नगर मे उसकी पड़ौसन रही ब्लागर का भरपूर सहारा लिया। उक्त ब्लागर ने 'क्रांतिस्वर' मे प्रकाशित पूनम की एक कविता को 'वटवृक्ष' मे 19 नवंबर 2011 को प्रकाशित किया लेकिन धूर्ततापूर्वक ऊपर एक तमंचा का फोटो लगा दिया । पूनम को यह बात काफी अखरी थी लेकिन हमने तब विशेष रण-नीति के तहत विरोध नहीं जतलाया था। फिर उसके बाद 27 अप्रैल 2012 को उसी ब्लागर ने एक तीसरे ब्लाग पर मेरे ज्योतिषीय ज्ञान की खिल्ली उड़ाई और उस टिप्पणी को पिछले कई  पोस्ट मे भी  उद्धृत किया है।

 (रश्मि प्रभा...Apr 27, 2012 07:21 AM





कब मैं हिट होउंगी ... और राज्य सभा की सदस्य बनूँगी - आईला

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आप जल्दी राज्यसभा में पहुंचें,
मेरी भी शुभकामना है)


मई 2012 के 'वटवृक्ष' के पृष्ठ 28 पर (जिसकी स्कैन कापी नीचे देखें) एक परिचर्चा उक्त ब्लागर ने बतौर संपादक दी थी।


पहली चर्चा जिस सौरभ प्रसून की है उससे उक्त ब्लागर को अपनी पुत्री का विवाह करना है।इसकी भी जन्मपत्री बनाने को ईमेल आया था और एक वर्ष के अंतर के दो डिटेल भेजे गए थे।  दूसरी चर्चा जिस छात्रा शिखा श्रीवास्तव की है उसकी जन्मपत्री द्वारा  अपने पुत्र मृगाङ्क से विवाह हेतु गुण मिलाने को मुझे  ईमेल पर कहा था। यह अलग बात है कि बाद मे फेक आई डी द्वारा उक्त ब्लागर ने शिखा के विरुद्ध इन्टरनेट जगत मे भारी अनर्गल दुष्प्रचार किया था।उक्त ब्लागर ने चार जन्मपत्रियों का निशुल्क परामर्श प्राप्त करने के बाद मेरे विरुद्ध घृणित अभियान अपने IBN7 वाले चमचे तथा और एक-दो लोगों द्वारा चलवा रखा है। 


इस क्रम मे तीसरी चर्चा मे यशवन्त का नाम क्यों और किस षड्यंत्र के तहत शामिल किया गया ?इस पर मुझे भारी आपत्ति है। जहां दो चर्चाए संपादक महोदया ने अपने परिवार से सम्बद्ध होने वालों की शामिल की थीं वहीं उनके साथ मेरे पुत्र यशवन्त की चर्चा क्यों और किस हैसियत से शामिल की गई?एक ओर तो मेरे तथा मेरी पत्नी के प्रति खौफनाक दृष्टिकोण और दूसरी ओर मेरे पुत्र को अपने खेमे मे दिखाना सरासर षड्यंत्र नहीं तो और क्या है?

इस षड्यंत्र मे वटवृक्ष के प्रधान संपादक और प्रबंध संपादक भी शामिल हैं अथवा केवल संपादिका की अपनी भूमिका है ?यह प्रश्न अभी अनुत्तरित है किन्तु रहस्य छिपा हुआ नहीं है। उक्त संपादिका ने अपने IBN7 वाले चमचा ब्लागर से (जिससे 27 अप्रैल को लेख लिखवाया तथा बाद मे 'ज्योतिष एक मीठा जहर')27 अगस्त 2012 के ब्लागर सम्मेलन के बाद 'वटवृछ' के प्रधान संपादक के विरुद्ध विष-वमन करवाया था लेकिन आज भी उनके साथ बतौर 'संपादक' डटी हुई हैं। हाल ही मे उस सम्मेलन के सहयोगी आयोजक ने अपने ब्लाग पर ज्योतिष के विरुद्ध एक लेख लिखा है और उस पर मेरे द्वारा की गई टिप्पणी का अभद्र जवाब दिया है। जबकि वही महाशय पहले मेरे 'क्रांतिस्वर' की समीक्षा 'जन संदेश टाईम्स' मे  मार्च 2011 मे निकाल चुके थे और उसे उन्होने अपने ब्लाग पर भी प्रकाशित किया था।किसी दूसरे ब्लागर से रचना चोरी के इल्जाम लगने  पर तब मुझसे अपने पक्ष मे टिप्पणी लिखने का अनुरोध किया था ,27 अगस्त के ब्लागर सम्मेलन मे भाग लेने हेतु 26 को उन्होने मुझसे फोन पर अनुरोध भी किया था ('वटवृक्ष'के प्रबंध संपादक ने भी 23 तारीख को फोन करके मुझसे उस सम्मेलन मे भाग लेने का अनुरोध किया था और आश्वस्त किया था की,"रश्मि प्रभा जी लखनऊ नहीं आ रही हैं")और अब  वह सह-संयोजक उस संपादिका के जाल मे उलझ कर मेरे ज्ञान को चुनौती दे रहे हैं। उनके प्रमाण पत्र की कोई आवश्यकता या अहमियत नहीं है।

एक सोची-समझी रण -नीति के तहत उक्त 'वटवृक्ष' की संपादक ब्लागर द्वारा मेरे ज्योतिषीय ज्ञान पर प्रहार लगातार किया जा रहा है। लेकिन क्या इससे मेरे ज्ञान को कुंद किया जा सकेगा?और इस धृष्ट अभियान का लाभ किसको मिलेगा?



Saturday, November 19, 2011


कुछ तो लगता है 

http://urvija.parikalpnaa.com/2011/11/blog-post_19.html








ख़ुशी में भय
और झूठ में ख़ुशी ...
इस बदली हवा ने सारे मायने बदल दिए हैं
सब उल्टा पुल्टा ही अच्छा लगता है !!!

रश्मि प्रभा

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कुछ तो लगता है

त्योहारों से मुझे अब डर लगता है
बचपन बीता
सब कुछ सपना सा लगता है
रिश्ता एक छलावा लगता है..
छल-बल दुनिया के नियम
कौन किसका
सबको अब अपना अहम् अच्छा लगता है
ऊपर उठाना-गिराना अब यही सच्चा धर्म लगता है
खून-खराबा - अब यही धर्म सब को अच्छा लगता है
त्योहारों का मौसम है
सब को 'नमस्ते' कहना अच्छा लगता है
दुबारा न मिलने का यह संदेश अच्छा लगता है
राम-रहीम का ज़माना पुराना लगता है
बुजुर्गों का कुछ भी कहना बुरा लगता है
मारा-मारी करना अच्छा लगता है
खुदगरजी का जमाना अच्छा लगता है
नैनो से तीर चलाने का ज़माना अब पुराना लगता है
गोली-बारी चलाना अच्छा लगता है
भ्रष्टाचार और घूस कमाना अच्छा लगता है
बदलते दुनिया का नियम अच्छा लगता है
शोर-शराबा करना अच्छा लगता है
हिटलर और मुसोलिनी कहलाना अच्छा लगता है
हिरोशिमा की तरह बम बरसाना अच्छा लगता है
अब गांधी-सुभाष बनना किसी को अच्छा नही लगता है
शहीदों की कुर्बानी बेमानी लगती है
मैं ' आज़ाद हूँ
दुनिया मेरी मुट्ठी में है - कहना अच्छा लगता है
अपने को श्रेष्ठ ,दूसरे को निकृष्ट कहना अच्छा लगता है
चिल्लाना और धमकाना अच्छा लगता है
बेकसूर को कसूरवार बनाना अच्छा लगता है
न्यायालय में झूठा बयान देना अच्छा लगता है
औरों को सता कर 'ताज' पहनना अब अच्छा लगता है
झूठ को सच कहना अच्छा लगता है
दिलों को ठेस पहुंचाना अच्छा लगता है
किसी ने कहा-क्या शर्म नहीं आती
शर्म को ख़ाक करना अच्छा लगता है
अब यह सब करना ही अच्छा लगता है....





(पूनम माथुर)

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