गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

मिलना जुलना कमजोरी नहीं (भाग-3)---विजय राजबली माथुर


 पिछले अंक से जारी .............

जब मैंने भोपाल या पटना के रिशतेदारों के साथ नहीं लखनऊ मे( यशवन्त की इच्छानुरूप आगरा के मकान को बेच कर)मकान ले लिया तो डॉ शोभा को जो पीड़ा हुई उसे उन्होने उजागर भी कर दिया था।मैं नहीं समझता कि मुझे अपने निर्णय छोटी बहन की इच्छानुरूप क्यों लेने चाहिए थे और पुत्र की इच्छा को क्यों ठुकराना चाहिए था?पूनावासी छोटी भांजी ने इस दरार को खाई मे बदलने मे कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। 06-10-2010 को प्रवासी ब्लागर  डॉ दिव्या श्रीवास्तव जी  ने एक पोस्ट यशवन्त के संबंध मे अपने ब्लाग मे दी थी तब मुक्ता(चंद्र प्रभा)ने पूना से फोन पर बताया था कि उसने डॉ दिव्या  का पूरा प्रोफाईल चेक किया है उसने तत्काल झांसी फोन करके शोभा को बताया था और कमलेश बाबू ने घबराहट भरे शब्दों मे विस्मय व्यक्त किया था।  ब्लागर्स प्रोफाईल  चेक करने मे उन लोगों द्वारा दी टिप्पणियों का मुक्ता ने सहारा लिया था और उसी क्रम मे पटना की मूल निवासी और विमान नगर मे उसकी पड़ौसन रही ब्लागर का भरपूर सहारा लिया। उक्त ब्लागर ने 'क्रांतिस्वर' मे प्रकाशित पूनम की एक कविता को 'वटवृक्ष' मे 19 नवंबर 2011 को प्रकाशित किया लेकिन धूर्ततापूर्वक ऊपर एक तमंचा का फोटो लगा दिया । पूनम को यह बात काफी अखरी थी लेकिन हमने तब विशेष रण-नीति के तहत विरोध नहीं जतलाया था। फिर उसके बाद 27 अप्रैल 2012 को उसी ब्लागर ने एक तीसरे ब्लाग पर मेरे ज्योतिषीय ज्ञान की खिल्ली उड़ाई और उस टिप्पणी को पिछले कई  पोस्ट मे भी  उद्धृत किया है।

 (रश्मि प्रभा...Apr 27, 2012 07:21 AM





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आप जल्दी राज्यसभा में पहुंचें,
मेरी भी शुभकामना है)


मई 2012 के 'वटवृक्ष' के पृष्ठ 28 पर (जिसकी स्कैन कापी नीचे देखें) एक परिचर्चा उक्त ब्लागर ने बतौर संपादक दी थी।


पहली चर्चा जिस सौरभ प्रसून की है उससे उक्त ब्लागर को अपनी पुत्री का विवाह करना है।इसकी भी जन्मपत्री बनाने को ईमेल आया था और एक वर्ष के अंतर के दो डिटेल भेजे गए थे।  दूसरी चर्चा जिस छात्रा शिखा श्रीवास्तव की है उसकी जन्मपत्री द्वारा  अपने पुत्र मृगाङ्क से विवाह हेतु गुण मिलाने को मुझे  ईमेल पर कहा था। यह अलग बात है कि बाद मे फेक आई डी द्वारा उक्त ब्लागर ने शिखा के विरुद्ध इन्टरनेट जगत मे भारी अनर्गल दुष्प्रचार किया था।उक्त ब्लागर ने चार जन्मपत्रियों का निशुल्क परामर्श प्राप्त करने के बाद मेरे विरुद्ध घृणित अभियान अपने IBN7 वाले चमचे तथा और एक-दो लोगों द्वारा चलवा रखा है। 


इस क्रम मे तीसरी चर्चा मे यशवन्त का नाम क्यों और किस षड्यंत्र के तहत शामिल किया गया ?इस पर मुझे भारी आपत्ति है। जहां दो चर्चाए संपादक महोदया ने अपने परिवार से सम्बद्ध होने वालों की शामिल की थीं वहीं उनके साथ मेरे पुत्र यशवन्त की चर्चा क्यों और किस हैसियत से शामिल की गई?एक ओर तो मेरे तथा मेरी पत्नी के प्रति खौफनाक दृष्टिकोण और दूसरी ओर मेरे पुत्र को अपने खेमे मे दिखाना सरासर षड्यंत्र नहीं तो और क्या है?

इस षड्यंत्र मे वटवृक्ष के प्रधान संपादक और प्रबंध संपादक भी शामिल हैं अथवा केवल संपादिका की अपनी भूमिका है ?यह प्रश्न अभी अनुत्तरित है किन्तु रहस्य छिपा हुआ नहीं है। उक्त संपादिका ने अपने IBN7 वाले चमचा ब्लागर से (जिससे 27 अप्रैल को लेख लिखवाया तथा बाद मे 'ज्योतिष एक मीठा जहर')27 अगस्त 2012 के ब्लागर सम्मेलन के बाद 'वटवृछ' के प्रधान संपादक के विरुद्ध विष-वमन करवाया था लेकिन आज भी उनके साथ बतौर 'संपादक' डटी हुई हैं। हाल ही मे उस सम्मेलन के सहयोगी आयोजक ने अपने ब्लाग पर ज्योतिष के विरुद्ध एक लेख लिखा है और उस पर मेरे द्वारा की गई टिप्पणी का अभद्र जवाब दिया है। जबकि वही महाशय पहले मेरे 'क्रांतिस्वर' की समीक्षा 'जन संदेश टाईम्स' मे  मार्च 2011 मे निकाल चुके थे और उसे उन्होने अपने ब्लाग पर भी प्रकाशित किया था।किसी दूसरे ब्लागर से रचना चोरी के इल्जाम लगने  पर तब मुझसे अपने पक्ष मे टिप्पणी लिखने का अनुरोध किया था ,27 अगस्त के ब्लागर सम्मेलन मे भाग लेने हेतु 26 को उन्होने मुझसे फोन पर अनुरोध भी किया था ('वटवृक्ष'के प्रबंध संपादक ने भी 23 तारीख को फोन करके मुझसे उस सम्मेलन मे भाग लेने का अनुरोध किया था और आश्वस्त किया था की,"रश्मि प्रभा जी लखनऊ नहीं आ रही हैं")और अब  वह सह-संयोजक उस संपादिका के जाल मे उलझ कर मेरे ज्ञान को चुनौती दे रहे हैं। उनके प्रमाण पत्र की कोई आवश्यकता या अहमियत नहीं है।

एक सोची-समझी रण -नीति के तहत उक्त 'वटवृक्ष' की संपादक ब्लागर द्वारा मेरे ज्योतिषीय ज्ञान पर प्रहार लगातार किया जा रहा है। लेकिन क्या इससे मेरे ज्ञान को कुंद किया जा सकेगा?और इस धृष्ट अभियान का लाभ किसको मिलेगा?



Saturday, November 19, 2011


कुछ तो लगता है 

http://urvija.parikalpnaa.com/2011/11/blog-post_19.html








ख़ुशी में भय
और झूठ में ख़ुशी ...
इस बदली हवा ने सारे मायने बदल दिए हैं
सब उल्टा पुल्टा ही अच्छा लगता है !!!

रश्मि प्रभा

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कुछ तो लगता है

त्योहारों से मुझे अब डर लगता है
बचपन बीता
सब कुछ सपना सा लगता है
रिश्ता एक छलावा लगता है..
छल-बल दुनिया के नियम
कौन किसका
सबको अब अपना अहम् अच्छा लगता है
ऊपर उठाना-गिराना अब यही सच्चा धर्म लगता है
खून-खराबा - अब यही धर्म सब को अच्छा लगता है
त्योहारों का मौसम है
सब को 'नमस्ते' कहना अच्छा लगता है
दुबारा न मिलने का यह संदेश अच्छा लगता है
राम-रहीम का ज़माना पुराना लगता है
बुजुर्गों का कुछ भी कहना बुरा लगता है
मारा-मारी करना अच्छा लगता है
खुदगरजी का जमाना अच्छा लगता है
नैनो से तीर चलाने का ज़माना अब पुराना लगता है
गोली-बारी चलाना अच्छा लगता है
भ्रष्टाचार और घूस कमाना अच्छा लगता है
बदलते दुनिया का नियम अच्छा लगता है
शोर-शराबा करना अच्छा लगता है
हिटलर और मुसोलिनी कहलाना अच्छा लगता है
हिरोशिमा की तरह बम बरसाना अच्छा लगता है
अब गांधी-सुभाष बनना किसी को अच्छा नही लगता है
शहीदों की कुर्बानी बेमानी लगती है
मैं ' आज़ाद हूँ
दुनिया मेरी मुट्ठी में है - कहना अच्छा लगता है
अपने को श्रेष्ठ ,दूसरे को निकृष्ट कहना अच्छा लगता है
चिल्लाना और धमकाना अच्छा लगता है
बेकसूर को कसूरवार बनाना अच्छा लगता है
न्यायालय में झूठा बयान देना अच्छा लगता है
औरों को सता कर 'ताज' पहनना अब अच्छा लगता है
झूठ को सच कहना अच्छा लगता है
दिलों को ठेस पहुंचाना अच्छा लगता है
किसी ने कहा-क्या शर्म नहीं आती
शर्म को ख़ाक करना अच्छा लगता है
अब यह सब करना ही अच्छा लगता है....





(पूनम माथुर)

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मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

मिलना जुलना कमजोरी नहीं है(भाग-2)---विजय राजबली माथुर

जारी---

बारह बरस पाईप मे सीधा रखने के बाद भी जो सीधा न रह सके कुछ उस तरह के लोग हैं ये पूना प्रवासी ब्लागर और उसके चमचे। 'जेवरी जले पर उसके बल न जले' भी एक पुरानी -प्रसिद्ध कहावत है जो इन लोगों पर हू-ब -हू लागू होती है। अपने तोड़-फोड़ अभियान के तहत उस पूना प्रवासी ने अपनी पटना स्थित शिष्य को 25 अप्रैल 2012 को हमारे घर मिलने-जुलने के नाम पर भेजा था लेकिन अब पता चला है कि उसका उद्देश्य हमारे मकान का वेल्यूएशन करना था । पू प्र का उद्देश्य यशवन्त को गुमराह कर आर्थिक क्षति पहुंचाना था जिससे कि हमे अपना यह मकान भी बेच कर उसे बचाना पड़े। इन लोगों का उद्देश्य हमे सड़क पर पहुंचाना था। यदि यह पहले आभास हो जाता तो 13-05-2012 को पटना मे सोनिया बहुखंडी गौड़ के घर न जाते और न ही 12 को उसके पति प्रदीप गौड़ से उनके आफिस मे मिलते। इस संबंध मे मेरे फोन पर जो sms आए थे उनका विवरण यह है-

"Aap kal jarur aayen.Kal aapki kitne b je ki train h?"12-05-2012 ,09-00-11 am--- प्रदीप गौड़ ने अपने आफिस मे 12 मई की साँय 05 बजे मिलने बुलाया था। ---

"Pls come around 5 pm ".12-05-2012 ,11-00-32 am ---
"Kab tak aayenge aap dono?"13-05-2012 ,08-15-08 am ---

पहले सोनिया बहुखंडी ने यशवन्त को पूना मे कोई सर्विस ज्वाइन करने को कहा था जिसे मेरे कहने पर उसने मना कर दिया था। फिर प्रदीप उसे अपने आफिस मे  रु 10000/-पर नियुक्ति दिलवा रहे थे। जिसके लिए भी मैंने टलवा दिया था। अगले दिन उनके निवास पर भी मैंने स्पष्ट कर दिया था कि यशवन्त की ख़्वाहिश पर ही हम आगरा से लखनऊ घाटे पर शिफ्ट हुये हैं अतः लखनऊ के बाहर जाब नहीं करने देंगे।

जब यशवन्त मेरठ से कानपुर 'बिग बाज़ार' मे ट्रांसफर लेकर आ गया था और हमे जल्द से जल्द लखनऊ आने को कह रहा था तब डॉ शोभा ने हमे फोन पर कहा था कि उससे कानपुर मे जाब छुड़वा दो और वह कमलेश बाबू के मित्र लिटोरिया बिल्डर के यहाँ लखनऊ मे जाब कर ले। मैंने उनके सुझाव को न मानते हुये जाब छुड़वाने के बाद घर पर ही उसे साईबर खुलवा दिया था जिसके सहारे ही हम लोग ब्लाग जगत से संपर्क स्थापित कर सके। तब डॉ शोभा की पूनावासी छोटी बिटिया( जो विमान नगर मे प्रवासी ब्लागर की पड़ौसन रही है)ने ब्लाग्स मे यशवन्त व मुझे प्राप्त टिप्पणियों के माध्यम से ढुलमुल-ढुलमुल ब्लागर्स को टटोल कर उन्हे हम लोगों के विरुद्ध उकसाया/भड़काया।
 
(रश्मि प्रभा...Apr 27, 2012 07:21 AM



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मेरी भी शुभकामना है)

 27-04-2012 से मेरे ज्योतिषीय आंकलन के सही सिद्ध  होने   से बौखला कर (19 को मैंने 'रेखा राजनीति मे आने की संभावना'लेख ब्लाग मे दिया और राष्ट्रपति महोदया ने उन्हे 26 को राज्यसभा मे मनोनीत कर दिया था  ) मेरे विरुद्ध पूना प्रवासी ब्लागर द्वारा एक मुहिम चलाई गई। तब पटना मे उसकी शिष्या सोनिया बहुखंडी ने हमसे उसकी आलोचना की थी और हमे मेसेज मे भी उसके विरुद्ध लिखा था जो सब धोखा देने हेतु था।


सोनिया बहुखंडी गौड़
  • मैं अभी भी नहीं समझ पा रही की रश्मि प्रभा जी ने खिल्ली उढ़ाई होगी आपकी किन्तु मैं आपके ज्ञान की पूरी पूरी इज्जत करती हूँ। आप लोग बात करें ना करें हमेशा करती रहूँगी। सादर

    सोनिया बहुखंडी गौड़
    • नहीं चाचा जी मैं उस समय वहाँ नहीं थी प्रदीप थे और ये मुझे कोई बात शेर नहीं करते मुझे सुंनकर बहुत बुरा लग रहा है। ये सच बात है मुझे मोटी मोटी बात पता थी अगर वो इतना गलत काम आपके संग कर रही हैं तो मैं उनके साथ मित्रता कैसे रख सकती हूँ। विश्वास करिए की मैं आपको वास्तव मे दिल से अच्छे संबंध की तरह देखती हूँ। हाँ यशवंत को ठगा ये बात मुझे पता थी। आपके मैसेज से मुझे बहुत ही अच्छे रिश्ते की पहचान हूइ। मुझे आभाष हो गया था की आपने ही यश को माना किया होगा। दिल से किसी को नहीं निकाला जा सकता ये भी मैं जानती हूँ। रश्मि जी ने जब मेरे से कविता मांगी थी तो मैंने यश से पूछा था अगर आप मन से मुझे बेटी मानते तो बोलते की कोई जरूरत नहीं। देने की.... बिना पिता की बेटी हूँ आपसे स्नेह मिला तो लगा पापा फिर से मिल गए। आप यश को रोक सकते हैं आपका बेटा है। मैं तो बस दो दिन की ही बहन बन पाई दुख हुआ दिल से। अगर लगे की मैं सच कह रही हूँ तो यश से कहना की मेरे से बात करे। frown आप लोगों की मुझे जादा जरूरत है नाकी रश्मि जी की

      सोनिया बहुखंडी गौड़
      • Mujhe unse koi profit nahi. Hindi yugm k publisher ne mujhe niji msg de kar gujarish ki thi review likhne k liye. Wo review apne aap me ek kataksh tha dronacharya wala ex. Jiska uttar aap ne apne cmnt me de diya tha. Eklavya ka. Aur adhikar aapka bhi kuch bhi kahne ka ek baar phn to karte aap daante mujhe. Aap logon ne to mera phn bhi nahi pick kiya


       पूना प्रवासी ब्लागर ने पूनम के भाइयों को भी क्षेत्रवाद और जातिवाद के आधार पर हमारे विरुद्ध कर दिया था इसका कुछ-कुछ आभास प्रदीप जी के अपने आफिस मे की गई  चर्चा से हो गया था। बालाघाट वाले उनके छोटे भाई जिनको डॉ शोभा बहुत  अच्छा बताती हैं उन्हें हवाई जहाज मे बैठा कर जल्दी से जल्दी  लखनऊ रवाना करने का दबाव अपने भाई-भाभी पर बना रहे थे। अतः एक बार फिर घर मे ताला लगा कर उन्हे लेने यशवन्त और मैं पटना गए किन्तु उनके घर नहीं गए। गोलघर(पैसे वालों को जूते की ठोकर और पटना का गोलघर)आदि मे समय व्यतीत कर दिया और उनके घर के बिलकुल निकट से पूनम को साथ ले लिया। चूंकि कमलेश बाबू के भतीज दामाद कुक्कू-शरद पार्सल बाबू के कारनामों के कारण उनसे संपर्क नहीं रखा था और खुद डॉ शोभा के द्वारा  अप्रैल 2011 मे यशवन्त  को 'पूत-कपूत' कहने के बाद  से उन लोगों से भी संपर्क नहीं था अतः उन लोगों ने पूना प्रवासी ब्लागर के माध्यम से पूनम के भाइयों को भी तोड़ लिया।हालांकि आगरा मे जब विकट आर्थिक स्थिति आ गई थी और मेरे पास कुल रु 2000/- मात्र ही शेष रह गया था( और हमारी छोटी बहन  डॉ शोभा हेल्प मांग लेने का आश्वासन आगरा फोर्ट स्टेशन पर जयपुर जाते समय देकर भी फोन पर मदद मांगने पर चुप्पी साध गईं थीं तब)पूनम द्वारा अपनी भाभी जी  से ज़िक्र करने पर उन्होने तत्काल रु 5000/- का ड्राफ्टभेज दिया था। यह अलग बात है कि हमे वे रुपए खर्च नहीं करने पड़े और हमे अपने मकान के सौदे का एडवांस मिल गया था फिर भी त्वरित सहायता हेतु उनके एहसान को भुलाया नहीं जा सकता।

आगरा छोडने से पूर्व 2009 मे पूनम के आग्रह पर हम लोग पटना गए थे तब उनकी आरा वाली चाची का व्यवहार खटकने वाला था जिनकी बेटी भी पूना मे ही रहती है और पूना प्रवासी ब्लागर से संबन्धित है। उसी के माध्यम से पूनम के बड़े भाई-भाभी के दिमाग मे क्षेत्रीयता और जातीय संकीर्ता का प्रवेश करवाया गया। लखनऊ आने के बाद से पूनम का लगातार आग्रह पटना मिलने जाने  को था अतः मई 2012 मे हम लोग उनको वहाँ छोडने गए थे जब बहुखंडी ने sms भेजकर बुलाया था।



लखनऊ आकर मिलने के क्रम मे बड़े ताऊजी की बेटियों मे सबसे छोटी जो मुझसे छह माह ही छोटी हैं के घर न जा सके थे तो पूनम के पटना से लौटने के बाद 02 अक्तूबर 2012 को उनके घर भी गए थे। हाई कोर्ट मे एडवोकेट उनके पति जिनहोने 1992 मे ऋषिराज की शादी के वक्त अपने घर आने को बहुत ज़ोर दिया था अब 20 वर्ष बाद बहुत बदले हुये थे या डॉ शोभा और उमेश की लामबंदी का यह असर रहा हो सकता है। 

'' न गरज है न मजबूरी है;मेल रखना क्या ज़रूरी है?" मेरा एक सिद्धान्त है जिस पर तब अमल करता हूँ जब कोई झुकाने-दबाने का प्रयास करता है अन्यथा निस्वार्थ भाव से मैं सबकी मदद करने को सदैव तत्पर रहता हूँ। पहले तो डॉ शोभा ने मुझको कहा था कि मैं या तो उनके भोपाल मे शिफ्ट करूँ या पूनम के पटना मे । स्वतंत्र रूप से लखनऊ मेरा आना उनको नागवार लगा और क्योंकि यशवन्त की ऐसी इच्छा थी इसलिए सारा हमला उसे ही फोकस करके किया गया और पूना प्रवासी ब्लागर के माध्यम से भी उसे क्षति पहुंचाने का प्रयास हुआ। चूंकि लखनऊ आने पर कमलेश बाबू के तमाम पोल-पट्टे खुल गए अतः वह शोभा से मेरे यहाँ आने का विरोध कराते रहे। कमल दादा और शैल जीजी ने शोभा के बारे मे जांनकारीया  दी थीं उन दोनों का निधन 2011 मे हो गया  और माधुरी जीजी ने कमलेश बाबू के बारे मे  जिंनका निधन जनवरी 2012 मे हो गया। इन लोगों की सोच है यदि मेरा भी  निधन हो जाये तो वे यशवन्त को आसानी से दबोच सकते हैं। पूना प्रवासी ब्लागर के IBN7 मे कार्यरत चमचा ब्लागर ने तो पूरे परिवार को उड़ा देने की धमकी सितंबर मे दी थी।

हमे मिलना जुलना और मेल रखना तो पसंद है परंतु झुक-दब कर नहीं। इस सन्दर्भ मे पहले भी बिजौली के क्रांतिकारी जन कवि 'विजय सिंह,पथिक' जी का यह प्रेरक वचन  प्रस्तुत कर चुका हूँ फिर से दोहरा रहा हूँ---

"यश -वैभव-सुख की चाह नहीं,परवाह नहीं जीवन न रहे। ।
इच्छा है यह है-जग मे स्वेच्छाचार  औ'    दमन न 
 रहे । । "

क्रमशः ..................... 


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मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

मिलना-जुलना कमजोरी नहीं है ---विजय राज बली माथुर

मौलिक रूप से मुझे मेल-जोल और आना-जाना पसंद है। परंतु साथ-साथ मैं यह भी ध्यान रखता हूँ कि,यदि किसी को मेरा आना-जाना या मेल-जोल रखना पसंद नहीं है या इसे वह मेरी कोई कमजोरी समझ रहा है तो मैं फिर उसके यहाँ आना-जाना और उससे मेल-मुलाक़ात बंद कर देता हूँ।तीन वर्ष पूर्व  लखनऊ आने के बाद छोटों-बड़ों सभी के यहाँ मैं अपनी पहल पर गया था। सबसे पहले एक भांजी जो खानदान की सबसे बड़ी बहन की पुत्री हैं और जिंनका निवास मेरे निवास से कोई डेढ़ किलोमीटर दूर ही होगा ,गया था। फिर उनकी माता अर्थात माधुरी जीजी के यहाँ 18 km दूर गया परंतु भांजी को और जीजी के घर भांजे को शायद हमारा आर्थिक स्तर अपने अनुकूल न लगा। भांजी के घर दोबारा भांजा दामाद साहब की जन्मपत्री का विश्लेषण देने दो दिन बाद ही  गया था  और जीजी के निधन पर उनके शांति हवन मे भाग लेने इस वर्ष जनवरी मे। 

जीजी के घर से जनवरी 2011 मे उनके सबसे छोटे भाई उमेश के घर अशरफाबाद भी गया था। मैंने पाया कि उमेश को शायद अच्छा नहीं लगा था। वह अपनी भांजी के पास हमारी कालोनी मे आते रहते हैं परंतु हमारे घर आना उनको तौहीन लगता है । उनसे दोबारा मुलाक़ात अप्रैल 2011 मे इंदिरानगर मे छोटी बहन के देवर की बेटी की शादी मे हुई थी। उनको कमलेश बाबू ने मुझे चौराहे से विवाह स्थल तक ले आने को भेजा था। डॉ शोभा और कमलेश बाबू से उमेश,उनसे बड़े नरेश और उनसे बड़े ऋषिराज सभी मधुर संबंध रखे हैं। एक तो वह BHEL से फोरमेन के रूप मे रिटायर्ड  हैं दूसरे अब प्राईवेट कंपनी मे इंजीनियर। जो सबसे बड़ी बात है वह यह कि पूनावासी शोभा की छोटी बिटिया की सुसराल से उमेश और ऋषिराज के भी सुसराली रिश्ते हैं। इन तीनों की सुसराल का रिश्ता सीधा-सीधा कुक्कू (कमलेश बाबू के भतीज दामाद जो दिवंगत शालिनी के भाई भी हैं) से है। कुक्कू के पार्सल बाबू भाई हमारे आगरा के मकान पर आँखें गड़ाए हुये थे और आर्थिक व सामाजिक रूप से हमे वहाँ क्षती पहुंचाते रहे थे। 

उमेश के अशरफाबाद से संबन्धित एक विकलांग बैक अधिकारी ने उनके इशारे पर यहाँ कालोनी मे हमारे विरुद्ध लामबंदी करके मेरे तथा यशवन्त के आर्थिक लाभ को अवरुद्ध कर रखा है। कमलेश बाबू ने अपने एक  मित्र  बिल्डर/ ठेकेदार  लिटोरिया के माध्यम से भी हमारे विरुद्ध वातावरण बना रखा है। चूंकि हम लोग अपने निजी आर्थिक हितों की परवाह किए बगैर सार्वजनिक हितों को सम्पन्न कराते रहते हैं इसलिए विपरीत परिस्थितियों मे भी स्वाभिमान से टिके रहते हैं। ब्लाग जगत मे भी यशवन्त लोगों को निशुल्क सहायता करता रहता है और मैं ब्लाग तथा फेसबुक के साथियों को निशुल्क ज्योतिषीय परामर्श देता रहता हूँ। डॉ शोभा/कमलेश बाबू की छोटी बेटी चंद्रप्रभा उर्फ मुकतामणि ने विमान नगर ,पूना मे अपनी पड़ौसन रही मूल रूप से पटनावासी श्रीवास्तव ब्लागर को उकसा/गुमराह करके ब्लाग जगत मे भी  यशवन्त और मेरे विरुद्ध  वातावरण तैयार किया है। इस पूना प्रवासी ब्लागर के दिल्ली वास कर रहे दो  सहयोगियों ने तो निम्नत्तम  स्तर पर जाकर मेरे ज्योतिषीय आंकलनों को गलत करार देने का असफल कुप्रयास भी किया है। जब कि  पूना प्र्वासी ब्लागर खुद मुझसे चार-चार जन्म्पत्रियों के निशुल्क विश्लेषण प्राप्त कर चुका है। खुद को ज़रूरत से ज़्यादा काबिल समझने वाले ये श्रीवास्तव ब्लागर्स यह नहीं समझ रहे हैं कि डॉ शोभा और उनकी बेटी जो श्रीवास्तव लोगों के घोर विरोधी और आलोचक हैं ने किस तिकड़म से उनको उलझाया है। क्योंकि मेरी यह पत्नी पूनम जो पटना के श्रीवास्तव परिवार से हैं उनको नागवार लगती हैं और कांटे से कांटा उखाड़ने के प्रयोग मे  मेरी उन बहन व भांजी ने पटना से ही संबन्धित श्रीवास्तव ब्लागर को मेरे विरुद्ध भिड़ाया है। 

शत्रु सिर्फ शत्रु होता है और उससे कोई रिश्ता-नाता नहीं होता है। जिनकी बुद्धि पैर के तलवे मे होती है उन्हे कोई समझा भी नहीं सकता है। ब्लाग जगत के इस झगड़े ने फेसबुक तथा ब्लाग जगत मे मेरे ज्योतिषीय विश्लेषणों को अच्छी मान्यता प्रदान कर दी है। अब तक ज्योतिष की आलोचना करने वाले साम्यवादी ब्लागर्स और नेता गण भी मुझसे ज्योतिषीय विश्लेषण इस झगड़े के बाद ले चुके हैं जो संख्या मे 11 हैं। इससे पूर्व एक तथाकथित साम्यवादी फेसबुकिया जो कानपुर से हैं झगड़ालू गुट मे मिल गए थे और मेरे विरुद्ध खूब लामबंदी कर चुके थे जो निष्प्रभावी रही। पूना प्रवासी श्रीवास्तव ब्लागर चाहे जितनी एहसान फरामोशी दिखाये और लामबंदी कर ले दूसरे लोगों को लाभ उठाने से तो वंचित कर सकता है परंतु मेरे ज्ञान को नष्ट नहीं कर सकता। कनाडा प्रवासी एक ब्लागर जो मुझसे ज्योतिषीय विश्लेषण निशुल्क प्राप्त कर चुका था इस पूना प्रवासी के भंवर जाल मे फंस गया तो वही प्रवास कर रहे एक दूसरे ब्लागर ने उसकी परवाह न करते हुये  मेरी सलाह पर चलते हुये भारत मे रोजगार प्राप्त करने मे सफलता प्राप्त कर ली। एहसान फरामोशों की इस दुनिया मे वह ब्लागर एहसानमंद निकला है। अपने विवाह का आमंत्रण जब उस ब्लागर ने दिया और आकांक्षा प्रकट की कि उनके वैवाहिक जीवन की सफलता हेतु मैं आशीर्वाद दूँ तो लगा कि धरा अभी अच्छे लोगों से विहीन नहीं हो गई है। IBN7 वाला चमचा हो या दूसरे ब्लागरों को मेरे विरुद्ध धमकाने वाला दूसरा चमचा पूना प्रवासी ब्लागर को उन लोगों की सहायता से मेरे परिवार को नष्ट करने मे सफलता नहीं मिल सकेगी।

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