गुरुवार, 6 सितंबर 2012

कलम और कुदाल मे-"अतीत के झरोखे से"

Monday, 3 September 2012

अतीत के झरोखे से

12 वर्ष का एक 'युग' माना जाता है। यदि हम वर्ष 2000 की बात करें जब सरला बाग,दयाल बाग ,आगरा मे हमारा ज्योतिष कार्यालय था। चारों तरफ समृद्ध लोगों की आबादी थी। राधास्वामी ज़्यादा थे। घोषित रूप से उनके मत मे ज्योतिष का विरोध किया जाता है। लेकिन सभी एक दूसरे से छिपाते हुये हमारे पास अपनी -अपनी समस्याओं के समाधान के लिए आते थे। उन सबमे एक समानता थी कि वे सभी निर्धारित शुल्क से कम देते थे। एक दिन शाम को एक साधारण व्यक्ति पहले कार्यालय से आगे निकल गया था फिर लौट कर पीछे आया और अपने बीमार बेटे के बारे मे ज्योतिषीय जानकारी ली। उसके पास जन्मपत्री न थी अतः प्रश्न कुंडली से काम चलाना पड़ा। उपाय जो बताए उसने सहर्ष अपनाना कुबूला और शुल्क की बाबत पूछा जो बताया उसने चुप-चाप दे दिया। वह आगे बढ़ गया था मुझे लगा शायद इसकी हैसियत न हो फिर भी पूरा शुल्क दे गया और समृद्ध लोग कन्सेशन मांगते हैं,इसका बच्चा बीमार है और यह आगरा अस्पताल से दवा लेने जा रहा है । मैंने उसे आवाज़ देकर बुलाया और वापिस रुपए देकर कहा आप इनको रखें आपको अभी ज़रूरत है। वह व्यक्ति पूछने पर मजदूर हूँ -बोला। लेकिन स्वाभिमानी था वापिस रुपए लेने को राज़ी न था। मैंने समझाया आप पूरी फीस दे चुके और मैं ले चुका हूँ। अब अपनी तरफ से उस बच्चे के लिए दे रहा हूँ आपको नहीं। तब भी उसने मुझे पाँच रुपए सौंपते हुये कहा कि शुगन के रख लीजिये। उसकी बात रखनी पड़ी। आज जब धनाढ्य इन्टरनेट साथियों को ज्योतिषीय समाधान  निशुल्क जान लेने के बाद मुझको अनाड़ी ,अपरिपक्व,की उपाधी देते देखता हूँ और उनके द्वारा अपना चरित्र हनन पढ़ता हूँ तो अनायास वह गरीब मजदूर आँखों के सामने घूम जाता है।

अबसे 20 वर्ष पीछे लौट कर देखते हैं तो एक पंडित जी जो शक्तिशाली राजनेता थे का ज़िक्र करना मुनासिब लगता है। पंडित जी को एक दूसरे पंडित नेता जी ब्लैक मेल कर रहे थे किन्तु दूसरे पर पहले का अगाध विश्वास था। वह उनके विरुद्ध कुछ भी सुनना पसंद नहीं करते थे। समझाने पर उनको लगता था कि उनके खिलाफ साजिश हो रही है। आगरा शहर से 80 किलोमीटर दक्षिण -पूर्व स्थित बाह नमक कस्बे मे उन्होने ज़िला स्तरीय चुनाव रखे थे। उनके घरेलू मित्रों ने मुझसे अनुरोध किया कि पंडित जी के परिवार को बचाओ दूसरा पंडित उनका घर-परिवार,कारख़ाना और राजनीति सब हथिया लेना चाहता है। खैर दिमाग और मेहनत खर्च करके पिछड़ा वर्ग के एक पहलवान साहब को उनके विरुद्ध चुनाव लड़ने को राज़ी किया। ठीक दो दिन पहले पहलवान साहब मैदान छोड़ गए। पंडित जी के पारिवारिक हितैषी कब मानने वाले थे। उनके एक समय के बिजनेस सहयोगी रहे दलित वर्ग के विश्वस्त को अंडर ग्राउंड राज़ी कर लिया और मुझसे उनका समर्थन करने को कहा जबकि व्यक्तिगत रूप से मैं उनसे घनिष्ठ नहीं था। पंडित जी ने चुनाव से ठीक एक दिन पूर्व मेरे विश्वस्त के माध्यम से अपने घर बुलवाया और कहा कल आपकी बुरी तरह से हार होने वाली है। मैंने जवाब दिया यदि मैं हारता हूँ तो मुझे खुशी होगी और आप हारे तो मुझे पीड़ा होगी। वह बोले आप दिन रात मेरे खिलाफ प्रचार कर रहे हैं साईकिल से 16-16 किलोमीटर गावों मे चल कर जाते हैं और हार जाने पर खुश होंगे फिर इतनी कसरत क्यों की। मैंने कहा इसलिए कि आपकी एक रेपुटेशन है ,इमेज है आपके हारने पर उस पर धक्का लगेगा। मेरे हारने पर मेरी कौन सी इमेज है जो टूटेगी। उनका प्रस्ताव था तब निर्विरोध चुनाव होने दो मैंने कहा तब आप जीत कर भी हारेंगे क्योंकि आपका बेहद नुकसान हो जाएगा और आप हारते हैं तो आपका सब कुछ सुरक्षित रह जाएगा। पंडित जी बोले हमे यह गणित न समझाओ। मैंने कहा आप लोग दीवार तक देखते हैं मैं दीवार के पार देखता हूँ और चला आया था।
अगले दिन वातावरण देख कर पंडित जी ने खुद की जगह दूसरे अपने साथी का नाम प्रस्तावित कर दिया जिसे उन्होने वापिस ले लिया। इस प्रकार दलित वर्ग के प्रतिनिधि निर्विरोध चुन गए। कुछ कारणों से मैं बाद मे दूसरी पार्टी मे चला गया और फिर 10 वर्ष बाद घर बैठ गया । पंडित जी को पता चला मेरे घर आए और बोले एक राजनीति का खिलाड़ी घर बैठा अच्छा नहीं लगता है आप वापिस लौट आईए। आप ही तब सही थे मैं गलत था वह पंडित जी पार्टी से हट गए हैं धोखा दे रहे थे। नौ वर्ष उनको कुर्सी से दूर रहना पड़ गया था ।  आपने सही कहा था कि आप दीवार के पार देखते हैं। और पंडित जी पुनः अपने साथ पुरानी पार्टी मे अपना सहयोगी बना कर ले आए।

1 comment:

सच अतीत से हमें बहुत बड़ा सबक मिलता है ..
 बहुत बढ़िया प्रस्तुति

  05-09-2012 को टिप्पणी
Arvind Vidrohi Muft me kuch mat dijiye ,, jankari lekar swarthi log mazak udaate hai
7 hours ago ·

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1 टिप्पणी:

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