सोमवार, 21 मई 2012

आगरा/1994 -95 /भाग-17

.... जारी....

इन लोगों के आने से लगभग एक सप्ताह पहले पड़ौस वाले शर्माजी( जिन्होने मेरी माता जी के निधन के बाद ऊधम किया था और जिन्होने ही मथुरा वाले माथुर साहब को मेरे मकान की बाबत भ्रामक सूचना दी थी) के एक रिश्तेदार जो अपने श्वसुर साहब के रेजिस्ट्रेशन पर मेडिकल प्रेक्टिस करते थे मेरे घर आए और सवाल उठाया कि मैंने उनके चचिया श्वसुर डॉ रामनाथ से क्यों संपर्क तोड़ा? उनका दबाव था कि मुझे पुनः उनसे मेल करना चाहिए। अंत मे उन्होने धमकी  दी -"माथुर साहब पैसे मे बहुत ताकत होती है हम पैसे के दम पर आपको झुका ही लेंगे। "मैंने उन्हें उत्तर दिया-" मिस्टर उपाध्याय पैसे के दम पर आप गर्दन तो  कटवा सकते हैं पर झुकवा नहीं सकते और मै तो पैसे वालों को जूते की ठोकर पर रखता हूँ। "यह सुन कर वह दुम दबा कर भाग गए। हालांकि 2007 मे उनका बड़ा बेटा मेरे घर किसी कार्य से आया तो मैंने बच्चा समझ कर उसका कार्य कर दिया।

इसके दो दिन बाद हींग की मंडी काम पर जाते समय कमला नगर पुलिस चौकी के दरोगा ने रेडियो मार्केट के निकट अपनी मोटर साइकिल से मेरी मोपेड़ मे टक्कर दी थी जिस कारण सीधे पैर के घुटने मे मोटर साईकिल का लेग गार्ड रगड़ने से हल्का दर्द भी हो गया था। परंतु मैंने न तो यशवन्त को इसका एहसास होने दिया जो मौके पर साथ ही था , न ही डॉ शोभा आदि से कहा और पूनम के घर वालों से तो कहने का कोई प्रश्न ही न था।

ऐसे माहौल के बीच डॉ शोभा और उनके पति कमलेश बाबू एक अलग वितंडा खड़ा कर गए थे। अतः उनके रोष को कम करने हेतु डॉ शोभा को पूनम के वास्ते कुछ (चेनऔर अंगूठी),साड़ी वगैरह खरीदने को कह दिया जिसका पैसा शायद उन्होने बाद मे लिया,एम ओ से भेजने को मना कर दिया था। बाकी पाँच साड़ी -सेट और शाल मैंने खुद ही किनारी बाज़ार से खरीद लिया था। पूनम के पिताजी की ख़्वाहिश के मुताबिक अपने लिए भी एक गरम सूट का कपड़ा खरीद लिया था। डॉ शोभा झांसी मे बाज़ार अपने साथ (कमलेश बाबू के  BHEL के साथी की पत्नी) किन्ही मंजू श्रीवास्तव को ले गई होंगी उन्होने डॉ शोभा को भड़काया कि यदि उन्हें पटना मे ले चला जाये तो वह भोजपुरी मे उन लोगों से फरमाईश करेंगी। उनके अनुसार पूनम के भाई साहब के कोई डिमांड?पूछने पर मना करके मैंने गलती की थी। ऐसा ही हमारे दूर के रिश्ते की एक भुआ ने भी कहा था उनसे तो मैंने नहीं परंतु डॉ शोभा से कहा था कि मै अपने साथ किसी भिकारिन को नहीं ले जा सकता। इससे डॉ शोभा और कमलेश बाबू और अधिक चिढ़ गए। एक बार तो उन्होने खुद भी न चलने की धमकी का पत्र भेज दिया था। हालांकि कई वर्षों के  बाद मे उन मंजू श्रीवास्तव से डॉ शोभा का झगड़ा हो गया और बोल-चाल भी बंद हो  गई। वस्तुतः डॉ शोभा के बड़े दामाद इंजीनियर नहीं हैं और मंजू श्रीवास्तव को इंजीनियर दामाद मिल गया था। मन-मुटाव के लिए यही मुद्दा काफी था।

उधर आर्यसमाज के वह पुरोहित जी जो बाबूजी और बउआ के निधन के बाद शुद्धि हवन कराने आए थे और उसके बाद से यदा-कदा यों ही आते रहते थे भी पटना चलने के इच्छुक थे। मैंने उन्हें भी स्पष्ट मना कर दिया था और ठीक ही किया क्योंकि बाद मे पता चला था कि वह शरद मोहन के रेलवे के साथी रमेश चंद्र आर्य के इशारे पर एक भेदिया के रूप मे आते थे।

कमलेश बाबू के सामने पूनम के पिताजी ने काफी ज़ोर देकर कहा था कि जब और कुछ नहीं ले रहे हैं तो वह पटना से ग्यारह हजार का ड्राफ्ट भेजेंगे उसे स्वीकार कर लूँ। उन्होने हमलोगों के आने-जाने के टिकट का व्यय भी खुद करने की बात कही थी। चूंकि लौटने के टिकट तब आगरा से नहीं मिले अतः वहाँ उन्हें लेने पड़े और इस प्रकार उस व्यय रु 2200/- को काट कर नौ हजार का ड्राफ्ट उन्होने भेज दिया था। पूनम के आने के बाद वह पैसा मैंने पूनम के सुपुर्द कर दिया था।

क्रमशः.......... 

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