शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

आगरा/1994 -95 /भाग-10 (बउआ की बीमारी )

.... पिछले अंक से जारी ....

15 जून को अजय ने कमला नगर के ही डॉ अशोक गर्ग को घर बुला कर बउआ को दिखाया। डॉ गर्ग भाजपा का था उसने घर आने का उस समय रु 500/- लिया था एक विजिट के हिसाब से। पास के एक नरसिग  होम मे उसने एडमिट करवा दिया जिसका चार्ज भी काफी था। उसमे भी मोटा कमीशन डॉ गर्ग को मिला होगा। अजय और कमलेश बाबू नरसिंग   होम मे बउआ के साथ रहे। लगातार ग्लूकोज चढ़ता रहा। अजय शायद रु 5000/- लेकर फरीदाबाद से आए थे वे आनन-फानन मे खत्म हो गए। उसके बाद उन्होने हाथ खड़े कर दिये हमारे पास पैसे नहीं हैं हम इलाज नहीं करा सकते हैं। मैंने उनसे कहा मै सेल्फ का चेक साईंन करके देता हूँ पास के बैंक जा कर रुपए निकाल लाओ। उनका जवाब था हम तुम्हारे नौकर नहीं हैं जो तुम्हारे लिए रुपए निकाल कर दें। तब तक शुद्धि हवन नहीं हुआ था और मुझे घर से निकलना भी नहीं था अतः मैंने कमलेश बाबू से निवेदन किया कि आप से कहने का कोई हक तो नहीं है परंतु इतनी मदद कर दे तो मेहरबानी है। कमलेश बाबू की मेहरबानी से रुपए मेरे अकाउंट से निकल सके और बउआ का इलाज जारी रह सका। 16 जून को शालिनी को दिवंगत हुये एक वर्ष पूर्ण हुआ तब तक बाबू जी भी दिवंगत हो चुके थे और बउआ मरणासन चल रही थीं।

18 जून को बाबू जी का शुद्धि हवन होना था। शोभा और कमलेश बाबू एक बैग मे थोड़ा सामान लेकर नरसिंग होम चले गए। परंपरानुसार बेटी-दामाद को इस हवन मे शामिल भी नहीं होना था और यह भी कि हवन के बाद उनका पुनः आगमन रहे इसलिए भी। अजय और उनकी श्रीमती जी ने हवन की तैयारी की। इस बार अजय को आर्यसमाज के मंत्री जी की श्रीमती जी ने बलकेशवर निवासी एक शिक्षक महोदय का पता दे दिया था उन्हे ही वह कह आए थे। यह पुरोहित जी, जो अजय ने दिलवाया वह सब ले गए। बउआ की तबीयत की जान कर उनसे यह भी कह गए जरूरत हो तो घर आ जाना।

हवन के बाद अजय और उनकी श्रीमती जी ने तय किया कि वे दोनो अब घर पर रहेंगे,हवन हो चुका लिहाजा मुझे नरसिंग होम मे रहना चाहिए। यशवन्त भी मेरे साथ ही जाने पर अड़ गया। शोभा ने कहा कि बिना माँ के बच्चे के साथ यह अन्याय है कि वह बाप के साथ-साथ रात को नरसिंग होम मे गुजारे। अतः शोभा और कमलेश बाबू दोनों मिल कर रात भर नरसिंग होम मे रहने लगे। अजय ने बाबू जी के सन्दूक को चेक किया था उनके जो डिपोजिट्स आदि थे उसमे वह बहन को हिस्सा नहीं देना चाहते थे और वो लोग लेना चाहते थे। मैंने कहा मेरा हिस्सा न लगाओ तुम दोनों आपस मे बाँट लो। अजय किसी भी कीमत पर शोभा को कुछ भी देने को राजी न थे। इसी के बाद उन लोगो ने नरसिंग होम मे रात को रुकना बंद कर दिया था। शोभा की दोनों बेटियाँ तब छोटी थी और झांसी मे दूसरों के आसरे थीं। अजय का निर्णय तो न्यायोचित नहीं ही था उनकी श्रीमती जी और शोभा मे खूब वाक-युद्ध हुआ जबकि उस समय अजय और कमलेश बाबू दोनों ही अस्पताल मे थे। मुझे हस्तक्षेप करना मजबूरी बन गया क्योंकि अजय की श्रीमती जी ने तर्जनी उंगली घुमाते हुये शोभा से कहा कि एक मिनट के अंदर घर से निकाल देंगे। मुझे अजय की श्रीमती जी को संबोधित करके कहना पड़ा कि अभी बउआ   बीमार हैं और बाबू जी नहीं हैं अगर होते और वह भी इस प्रकार शोभा को यहाँ से निकालना चाहते तो नहीं निकाल सकते थे क्योंकि घर और मकान मेरा है। मै इस प्रकार बे इज्जत करके किसी को भी बहन को निकालने नहीं दूंगा। खैर फिर अजय की श्रीमती जी चुप हो गईं उन्होने मुझे कोई जवाब नहीं दिया।

एक रोज फिर अजय और कमलेश बाबू अस्पताल मे थे तब पोस्टमेन एक लिफाफा दे गया जो पटना से बी पी सहाय सहाब का बाबूजी के नाम था और उसमे उन्होने अपने पत्र का उत्तर न मिलने का जिक्र किया था। मुझे शोभा और अजय की श्रीमती जी किसी ने भी  इस बाबत कुछ नहीं बताया और पत्र पढ़ कर दोनों आपस मे इस बात पर उलझ गईं कि उनका जवाब कमलेश बाबू देंगे/अजय देंगे। बाहर खुले मे झगड़ने की आवाज पर मुझे पूछना पड़ा कि मामला क्या है?तब मजबूरन मुझे पत्र दिखाया गया। मैंने दोनों से कहा कि अब बाबू जी हैं नहीं और बउआ भी होश मे नहीं हैं। कमलेश बाबू और अजय दोनों मुझसे छोटे हैं मेरे बारे मे फैसला कैसे कर सकते हैं ?उत्तर देना होगा तो खुद मै ही दूँगा मेरे अलावा और कोई नहीं देगा। यह कह कर मैंने पत्र अपने कब्जे मे ले लिया। पोस्ट कार्ड पर मैंने उन्हें सूचित कर दिया कि 13 जून को बाबूजी नहीं रहे हैं और माँ गंभीर बीमार हैं अभी मै कुछ भी नहीं कह सकता वह कहीं और आगे बात चला सकते हैं।

इसके बाद शोभा और कमलेश बाबू झांसी लौट गए। उन्हें बुरा लगा कि मैंने पत्र का जवाब उन्हें क्यों नहीं देने दिया। मै दो -तीन घंटे के लिए हींग-की-मंडी जाकर कुछ काम निबटा देता था । शुक्रवार 23 जून को अचानक अजय ने कहा कि शाम को वे लोग भी फरीदाबाद लौट रहे हैं। उन्हें भी पटना पत्र का उत्तर न देने का बुरा लगा था। मेरी गणना के मुताबिक रविवार तक का समय बउआ का कष्टप्रद था उसके बाद समय ठीक होना था। मैंने अजय से इतवार तक रुकने को कहा परंतु वह नहीं माने। अतः हींग-की-मंडी जाकर मुझे सभी दूकानदारों से अगले दिन से न आने की सूचना देनी पड़ी। घर पर बीमार माँ ,मै और यशवन्त रह गए।

क्रमशः ... 

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