मंगलवार, 30 अगस्त 2011

आगरा/1984-85 (भाग-5)/मुगल पर केस

श्री हरीश छाबड़ा के ही माध्यम से एक बिजली की दुकान मे जिनकी होटल मुगल मे ही सप्लाई थी 2 घंटे का पार्ट टाईम जाब भी मिल गया। इनसे रु 200/- मासिक मिला और काम सेल्स टैक्स का ही करने को मिला। सुबह साढ़े नौ पर निकलना तथा रात्रि साढ़े नौ तक वापिस आना होता था,तब तक यशवंत सो चुकता था। वकील विनय जी ने मुझे सुझाव दिया कि, सेठ से वक्त कम करवा लो और उसी 2 घंटे के वक्त मे पार्ट टाईम करो जिससे घर जल्दी पहुँचोगे और बच्चा जागता हुआ मिल जाएगा। काम को देखते हुये सेठ जी सहर्ष 2 घंटे का वक्त कम करने पर राजी हो गए। उन्होने ही यह भी सुझाव दिया कि होटल मुगल पर केस दायर कर दो ।

होटल मुगल पर केस 

होटल मुगल पर केस दायर करने से पहले  वहीं के साथियों से विचार-विमर्श करना मुझे उचित लगा। तमाम ऐसे लोग जो कभी न कभी किसी कार्यस्थल पर यूनियन से संबन्धित रहे उनसे तो संपर्क किया ही जो परसोनल विभाग मे कार्यरत रहे उनसे भी मन्त्र्णा की। श्री पद्मा शंकर पांडे परसोनल विभाग मे झा साहब के जमाने मे रहे थे। उन्हीं के मित्र थे पुष्पेंद्र बहादुर सिंह जिनहे भल्ला साहब के स्थान पर मेने यूनियन प्रेसिडेंट चुनवाया था। पांडे जी के श्वसुर साहब हाई कोर्ट के न्याधीश थे। हालांकि पांडे जी आगरा से चले गए थे। उनसे भी संपर्क साधा।

पद्मा शंकर पांडे 

पद्मा शंकर पांडे जब मुगल आगरा आए तो डी एम आवास मे रहते थे। जिलाधिकारी श्री विनोद दीक्षित उनके बड़े भाई के साले साहब थे। श्री दीक्षित एमेर्जेंसी के समय गृह मंत्री रहे श्री उमा शंकर दीक्षित के पुत्र थे। पांडे जी से मिलने उनकी पत्नी श्रीमती शीला दीक्षित (अब दिल्ली की मुख्यमंत्री) अक्सर होटल मुगल आती रहती थी। वैसे महिला कार्यक्रमों और कांग्रेस के कार्यक्रमों मे भी आने पर वह पांडे जी से भेंट अवश्य करती थी। I A S से रिजायींन  करके वह कांग्रेस मे सक्रिय थी। एक बार पांडे जी के इन्तजार मे वह होटल की बाउंड्री दीवार पर बैठ गईं थी जिसे उनकी सादगी माना गया था।  जब दीक्षित जी बाराबंकी स्थानांतरित हो गए तो उन्होने वहा की सोमैया आर्गेनिक क मे लाइजन आफ़ीसर के पद पर पांडे जी की नियुक्ति करा दी। पांडे जी का इंटरव्यू लेने अधिकारी होटल मुगल आया था। जब जनता सरकार मे दीक्षित जी गोरखपुर स्थानांतरित हो गए तो पांडे जी को हटा दिया गया था।

जब सांसद संदीप दीक्षित (दिल्ली की मुख्य मंत्री के पुत्र) 10 वर्ष के थे अपने बाबाजी उमाशंकर दीक्षित के साथ उसी रेल से यात्रा कर रहे थे जिसमे उनके पिता विनोद दीक्षित सरकारी यात्रा पर थे। बाबा-पोता घर पहुँच गए और विनोद दीक्षित का कोई अता-पता नहीं चला तो पूर्व गृह मंत्री अपने पुत्र को खोजने पुनः स्टेशन पहुंचे जहां पता चला कि विनोद दीक्षित बंद  टाइलेट मे मृत पाये गए।

उमाशंकर दीक्षित जी की मृत्यु के बाद से शीला दीक्षित ज्यादा सक्रिय हो गईं और अब तीसरी बार दिल्ली की मुख्यमंत्री है एवं कामन वेल्थ खेलों मे उन पर कीचड़ उछला है जिसे उनके सांसद पुत्र संदीप ने अन्ना -आंदोलन मे मध्यस्थता करके अन्ना-जल से धो डाला है। कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति मे संदीप दीक्षित,शीला दीक्षित और मनमोहन सिंह जी उस तरफ हैं जो सोनिया जी की अनुपस्थिति मे बनी 4 सदस्यीय कमेटी को नीचा दिखाना चाहते हैं। इनही लोगों ने किरण बेदी,अरविंद केजरीवाल के माध्यम से अन्ना साहब को भूख हड़ताल करने को प्रेरित किया था जिससे घपले-घोटालों ,मंहगाई (पेट्रोल,डीजल,गैस की मूल्य वृद्धि से जो तब बढ़ायी गई जब बंगाल से बामपंथी शासन समाप्त हो गया),शोषण-उत्पीड़न,बेरोजगारी,किसानों की आत्म-हत्याओं ,पासको को उड़ीसा की उपजाऊ भूमी 50 वर्ष के लिए देने के गैर कानूनी कृत्य आदि से जनता का ध्यान हटाने मे इस गुट को भारी सफलता मिली जिसके लिए अमेरिका की कार निर्माता क के फोर्ड फाउंडेशन ने खजाना खोल रखा था। कारपोरेट घरानों और साम्राज्यवादी हितों के संरक्षण मे अन्ना आंदोलन ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। 


बेहद दुखद बात है कि साम्राज्यवादी और कारपोरेट हित-साधन को आम जनता की जीत बताया जा रहा है। आम जनता जो गरीब एवं मेहनतकश है मजदूरी करके गुजारा करती है उसे अन्ना आंदोलन से कोई राहत नहीं मिल सकती। जब तक धर्मों और जातियों के नाम पर समाज मे वर्गीकरण रहेगा और साधन-सम्पन्न लोग गरीबों का शोषण-उत्पीड़न जारी रखेंगे भ्रष्टाचार को खत्म कैसे माना जाये और अन्ना की थीम मे इसका कोई जिक्र नहीं है। अन्ना आंदोलन ने राष्ट्रीय स्वाधीनता दिवस पर ब्लैक आउट रखवाया,राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किया,संविधान और संसद को चुनौती दी,किन्तु प्रधानमंत्री के वरद-हस्त के कारण इन राष्ट्र-द्रोहीयों के विरुद्ध कोई कारवाई नहीं हुयी। 

बहरहाल तमाम खोजबीन के बाद भी ईमानदार वकील की खोज पूरी नहीं हो पायी और फिलहाल इस वर्ष होटल मुगल पर केस नहीं दायर कर सके। लेकिन............


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शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

आगरा/1984-85 (भाग-4) //ईमानदार इन्कम टैक्स अधिकारी के दर्शन

चूंकि सारू स्मेल्टिंग,मेरठ मे फेसिट केलकुलेटर था और मे उसे चला नहीं पाता था अतः जबानी गणना करता था परंतु मुगल आगरा मे इलेक्ट्रानिक केलकुलेटर थे जिन्हें चलाना सीख लिया था। सब लोग दो-दो बार गणना करते थे,लेकिन मैंने एक बार जोड़ते रहकर दूसरी बार नीचे से घटाते जाने की प्रक्रिया अपनाई। शून्य आने पर टोटल सही है-निश्चित होता था। यहाँ इस दुकान पर सेल वाले छोटे केलकुलेटर थे उनमे भी वही प्रक्रिया अपना कर मैंने बेलेन्स शीट हेतु ट्रायल बेलेन्स तैयार कर दिया तब पार्ट-टाइम अकाउंटेंट साहब ने 8 प्रतिशत ग्रास प्राफ़िट रखते हुये फाइनल करने को कहा।बेलेन्स शीट को वकील साहब ने भी सही पाया।

सेठ जी का इन्कम टैक्स मे एक पूर्व वर्ष का केस अपील मे चल रहा था जिसमे उनकी बुक्स आफ अकाउंट्स ,अपीलेट इन्कम टैक्स कमिश्नर श्रीमती आरती साहनी द्वारा जब्त की हुयी थीं। उस पुराने केस को समझने हेतु वह मुझे वकील साहब के पास ले गए। वकील साहब उन पर बिफर पड़े कि इन दाढ़ी वाले को क्यों साथ ले आए? उन्होने कहा यह हमारे फुल टाइम अकाउंटेंट हैं इन्हें केस समझा दीजिये। चूंकि वकील साहब अपने किसी आदमी से केस तैयार कराना चाहते थे अतः मेरे व सेठ जी के बीच फ्रिकशन कराकर मुझे हटवा देना चाहते थे। परन्तु सेठ जी भी चाल समझ रहे थे अतः बोले हम इन्हीं से केस तैयार कराना चाहते हैं इस पर वकील साहब ने सवाल मुझे संबोधित कर कहा कि कर लोगे?मैंने भी जवाब यह दिया अगर नौकरी करनी है तो कर लेंगे। इस प्रकार एक ऐसा कार्य जो अब तक पूर्व मे नहीं किया था और नहीं जाना था करने का भार मुझ पर था,और था अपनी इज्जत (क्षमता सिद्ध करने की) एवं अपनी रोजी बचाने का भी उतना ही।

श्रीमती आरती साहनी 

श्रीमती आरती साहनी ,I R S एक निष्पक्ष और ईमानदार अधिकारी थीं। वह और उनके पति दोनों ही इन्कम टैक्स अपीलेट कमिश्नर थे। साहनी साहब तो वैसे ही कार्य करते थे जैसे उनके विभाग का रसूख था। किन्तु श्रीमती साहनी शुद्ध ईमानदारी और नियमानुकूल चलती थीं। सेल्स टैक्स और इन्कम टैक्स मे केस करने हेतु एक निर्धारित रकम एसेस्मेंट आफ़ीसर को भेंट दी जाती है जिसे अक्सर लोग वकील साहबान के माध्यम से देते हैं जिसका 25 प्रतिशत वकील साहब का होता है। यह सेठ जी चतुर सुजान बनने चले थे। इनके  एक भाई दुबई मे नौकरी करते थे जिनके पास ये घूमने गए और वहाँ की बनी साड़ी आदि गिफ्ट लेकर सीधे श्रीमती साहनी के आवास पर पहुँच गए। श्रीमती साहनी ने उन्हें कड़ी फटकार लगाई और आफिस आते ही उनकी बुक्स आफ अकाउंट्स सीज करने का आर्डर जारी कर दिया।

यह मामला मेरे ज्वाइनिंग से बहौत पहले का था। वकील साहब भी नाराज थे कि सेठ जी सीधे क्यों पहुंचे उनसे जिक्र करते तो वह बता देते कि यह महिला ईमानदार अधिकारी हैं। वकील साहब और सेठ जी का मतभेद भी केस का निपटान जल्दी नहीं होने दे रहा था। सेल्स टैक्स मे केस काफी पेंडिंग रहते हैं परन्तु मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह जी ने तेजी लाने के आदेश जारी किए थे इसलिए उनके दूर के रिश्तेदार S T O  डा वीरेंद्र बहादुर सिंह जी ने भी उस वर्ष का केस जिसकी किताबें श्रीमती आरती साहनी ने जब्त की हुयी थीं ता पर लगा दिया। पहले व्यापारीगण सेल्स टैक्स और इन्कम टैक्स मे अलग-अलग बेलेन्स शीट दाखिल करके हेरा-फेरी करते थे परन्तु प्रदेश सरकार ने अनिवार्य रूप से इन्कम टैक्स की एसेस्मेंट कापी जमा कराना शुरू कर दिया।

श्रीमती साहनी इस मजबूरी को समझती थी अतः ता पर ता देकर समय खींच रही थीं। उधर डा वीरेंद्र बहादुर सिंह जी ने भी सेल्स टैक्स मे और ता देने से इंकार करते हुये एक्स पार्टी केस करने का आल्टीमेटम दे दिया था।  सेठ जी वकील साहब पर दबाव बना रहे थे कि श्रीमती साहनी से केस जल्दी खत्म करवाएँ ,वकील साहब समझा रहे थे दबाव मत बनाओ। सेठ जी नहीं माने तो वकील साहब ने अपनी तरफ से केस तैयार करके श्रीमती साहनी के समक्ष पेश कर दिया। श्रीमती साहनी ने अपने विभाग मे पहले ही किताबे चेक करा ली थी। उन्होने लंबी ता दी लेकिन वकील साहब ने जल्दी का निवेदन किया तो उन्होने दंड का भुगतान करने को तैयार होने का प्रश्न पूंछा। वकील साहब ने जवाब अगले दिन देने का निवेदन किया जिसे श्रीमती साहनी ने स्वीकार कर लिया। अगले दिन वकील साहब के घर पर सेठ जी मुझे लेकर पहुंचे। वकील साहब ने उन्हें धैर्य रखने को कहा परन्तु वह  बोले कि वह दो-ढाई लाख तक दंड का भुगतान कर देंगे। वकील साहब नाराज होकर बोले तुम्हारी मर्जी और अपीलेट कमिश्नर के यहाँ पहुँचने को कह दिया। दुकान आने पर मैंने सेठ जी को स्पष्ट किया कि यदि श्रीमती साहनी अर्थ दंड न दें तो? तो वह बोले फिर क्या दंड देंगी?मैंने कहा यदि वह इंपरिजनमेंट दें तो क्या उन्हे कबूल है?सेठ जी को काटो तो खून नहीं,जैसे उन्हें साँप सूंघ गया हो। बोले तुरंत वकील साहब के पास चलो उन्होने तो यह नहीं बताया है फिर तुम कैसे कह सकते हो?

मैंने मेरठ की सारू स्मेल्टिंग मे I T O गांधी साहब से सेठो  के टकराव और छापों की कहानी सुन रखी थी। अतः मैंने आगरा के सेठ जी को दो टूक कह दिया ,वकील साहब कहना नहीं चाहते थे,क्योंकि वकील साहब की मान्यता थी कि इन 'सेठो के पेशाब से चिराग रोशन होते है'। वकील साहब घर के आफिस मे मिल तो गए उनके इन्कम टैक्स जाने का वक्त हो गया था,सेठ जी को देख कर झल्ला पड़े तुम फिर क्यों आ गए ? सेठ जी बोले आखिर श्रीमती साहनी कितना तक दंड लगा सकती हैं? वकील साहब ने किताब निकाल कर सेठ जी को देते हुये कहा -पढे-लिखे हो लो पढ़ लो। किताब मे स्पष्ट लिखा था- monetary or imprisonment or both । पढ़ कर सेठ जी सन्न रह गए वकील साहब ने उनका चेहरा देख कर कहा क्यों क्या हुआ?सेठ जी बोले तो ता ले लीजिये फैसला मत कराये।

तुम्हारी मर्जी कह कर वकील साहब ने सेठ जी को बाहर भेज दिया और मुझे रुकने को कहा,सेठ जी बोले उन्हें ही बता दें तो वकील साहब बोले इन्हे डांटना है तुम चलो । उनके बाहर होते ही बोले इस मूर्ख को जमीन पर ला दिया बहौत उड़ रहा था,खैर तुमने वफादारी की अच्छी बात है।

डा वीरेंद्र बहादुर सिंह से वकील साहब ने बता दिया की किताबें इन्कम टैक्स मे सीज है पेश नहीं की जा सकती हैं अगर वह चाहें तो आफ़िशियल लेटर देकर मांगा सकते हैं। डा सिंह बोले हम प्रांतीय सेवा के हैं वह केंद्रीय अधिकारी है उनसे कैसे मांग सकते हैं। वकील साहब ने सेल्स टैक्स आफ़ीसर से किताब मांग कर उन्हें दिखा दिया की एसेस्मेंट आफ़ीसर के रूप मे एस टी ओ को पूरे अधिकार हैं की वह इन्कम टैक्स के अपीलेट कमिश्नर को सेल्स टैक्स मे किताबें भेजने का सम्मन जारी कर सकता है। एस टी ओ साहब ने उस क्लाज का हवाला देकर श्रीमती आरती साहनी के समक्ष अपना सम्मन भेज दिया। जिस दिन श्रीमती साहनी ने किताबें सेल्स टैक्स मे भेजने हेतु बुलवाया था उस दिन विभाग मे कर्मचारियों ने हड़ताल कर दी थी क्योंकि रिफ़ंड वाउचर के घपले मे कुछ कर्मचारी जेल भेज दिये गए थे।

श्रीमती साहनी ने इन्कम टैक्स इंस्पेक्टर पांडे को उस फर्म की किताबें अपनी आलमारी से निकाल कर सौंप दी जो सेल्स टैक्स आफ़ीसर को दिखा कर वापिस उनके पास ही जमा करनी थी। पांडे जी ने एक कर्मचारी श्री सिंह को साथ ले लिया। एस टी ओ डा सिंह ने जब परिचय के दौरान सिंह साहब का नाम सुना तो चौंक पड़े क्योंकि अखबारों के मुताबिक वह भी जेल मे थे। उनसे पूछने पर सिंह साहब ने अपने इंस्पेक्टर पांडे जी की ओर इशारा करके कहा यह सब पंडित जी की मेहरबानी है। डा सिंह ने मुस्करा कर कहा पंडित जी बहौत अच्छे हैं इनके साथ ही लगे रहना बिलकुल बरी हो जाओगे।

उस समय सेल्स टैक्स आफ़ीसर का एसेस्मेंट करने का रेट रु 6000/- होता था ,इस केस मे कुछ अधिक लगा होगा। सेठ जी ने सीधे ही एस टी ओ को भेंट किया। वकील साहब के पुत्र विनय मुझसे घुल-मिल गए थे और ज्योतिष पर चर्चा करके पूछते रहते थे। विनय जी ने मुझे बताया कि,तुम्हारा सेठ मूर्ख है। सीधे अफसरों को भेंट देता है इसी चक्कर मे श्रीमती साहनी के पास साड़ी लेकर पहुंचा और फंस गया। उन्हीं के माध्यम से मुझे केस की असलियत पता लगी थी। विनय जी ने बताया कि वे लोग आफ़ीसर से अपना कमीशन ले लेते हैं जबकि सेठ समझता है वह सस्ते मे छूटा।वह अपने पिता के असिस्टेंट वकील थे,उनके अनुसार आफ़ीसर के रेट मे वकील का कमीशन शामिल रहता है। आफ़ीसर क्यों वकील को कमीशन देता है इसका कारण उन्होने बताया कि वरना वकील उसे फंसा सकता है। 

और सच मे एक दृष्टांत ऐसा हुआ भी । सेठ जी बाद मे मुझे अकेले ही वकील साहब के पास भेजने लगे थे क्योंकि वकील साहब ने कहा जब सब करना और समझना दाढ़ी वालों को है तो तुम अपनी दूकानदारी देखो इन्हें ही आने दो। जो वकील साहब कभी सेठ जी को मुझे लाने पर ऐतराज करते थे वह अब सेठ जी को ही ज्यादा नहीं आने देते थे ,ऐसा केवल मेरे कार्य के कारण था। उस रोज मे अकेले ही गया था और वहाँ किसी दूसरे सेठ जी के कोयला व्यवसाय मे उनके एसेस्मेंट आफ़ीसर से टकराव चल रहा था। बचने का कोई रास्ता न था। सेठ मुंह मांगी रकम देने को तैयार न था। वकील साहब उससे कह रहे थे तब केवल झगड़ा ही एकमात्र रास्ता बचता है जिसके लिए उन्होने अतिरिक्त रकम मांगी। उस सेठ ने वकील साहब को पेशगी रकम अदा कर दी। वकील साहब मुझसे बोले जो सुना अपने तक रखना अपने सेठ को न कहना।

दोपहर  मे जब हम लोग डा सिंह के कार्यालय पहुंचे तो पूरे सेल्स टैक्स डिपार्टमेन्ट मे कर्मचारियों की हड़ताल वकीलों के खिलाफ थी और वकीलों की हड़ताल उस सेठ के एसेस्मेंट आफ़ीसर को ट्रांसफर कराने हेतु। काफी गरम चर्चा थी कि शांत रहने वाले इन वकील साहब ने उस सेल्स टैक्स आफ़ीसर पर टेबुल उलट दी थी जिस कारण स्टाफ और आफ़ीसर वकीलों के विरुद्ध लामबन्द थे। इसी प्रकार वह वकील साहब जो बार के भी पदाधिकारी थे के अपमान को मुद्दा बना कर वकीलों ने उस सेल्स टैक्स आफ़ीसर के ट्रांसफर होने तक हड़ताल का ऐलान किया था। शू फेक्टर्स फ़ेडेरेशन के प्रेसीडेंट राज कुमार सामा साहब जो भाजपा और व्यापारियों के बड़े नेता थे ने भी प्रशासन पर आफ़ीसर के ट्रांसफर का दबाव बनाया क्योंकि झगड़ा करने वाला व्यापारी भी भाजपा से संबन्धित था। वैसे ज़्यादातर व्यापारी और वकील भाजपा से ही जुड़े थे।

 इन परिस्थितियों मे श्रीमती आरती साहनी का मुस्तैदी के साथ ईमानदारी पर डट कर पूरी बुलन्दगी के साथ केस करना काबिले तारीफ और स्तुत्य है। उस समय तक आज के हीरो अरविंद केजरीवाल ने इन्कम टैक्स विभाग ज्वाइन ही नहीं किया था और टाटा स्टील्स मे कारपोरेट घरानों की सेवा मे थे। इन्हीं कारपोरेट घरानों के हित मे बाद मे उन्होने इन्कम टैक्स विभाग से रीजाइन करके 'इंडिया अगेन्स्ट करप्शन' नामक N G O बनाया। आज यही एन जी ओ देश मे संविधान और संसद को चुनौती देकर 'लोकतन्त्र' को नष्ट-भ्रष्ट करके आर एस एस की अर्ध सैनिक तानाशाही कायम करने के अभियान मे जुटा हुआ है। यदि केजरीवाल ईमानदार होते तो स्तीफ़ा देकर भागते नहीं और श्रीमती साहनी की भांति डट कर विभाग मे भ्रष्टाचार से मुक़ाबला करते। जब एक महिला ईमादारी पूर्वक काम करके सफल हो सकती है तो पुरुष होकर केजरीवाल क्यों नहीं सफल हो सकते थे?क्योंकि वह भ्रष्टाचार के विरुद्ध नहीं थे (उनकी पत्नी आज भी उसी इन्कम टैक्स विभाग मे विभागीय रसूखो का पालन करती हुयी डटी हैं) उन्हें तो कारपोरेट घरानों तथा साम्राज्यवादी अमेरिका के हितो को सम्पन्न करना था जो वह बखूबी जनता को मूर्ख बना करकर रहे हैं। 

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सोमवार, 22 अगस्त 2011

आगरा/1984-85 (भाग-3)

21 फरवरी 1985 को रजिस्टर्ड डाक से मुझे टर्मिनेशन लेटर मिल गया और रोजाना हाजिरी लगाने जाने से छुट्टी हो गई। इसी के साथ-साथ अभी तक जो तीन-चौथाई वेतन सस्पेंशन एलाउंस के रूप मे मिल रहा था वह भी मिलना बंद हो गया। साढ़े-नौ वर्ष की ग्रेच्युटी का ड्राफ्ट भेजा गया था उसे अगले दिन बैंक मे जमा करा दिया। अब एक बार फिर नई नौकरी की तलाश की समस्या आ खड़ी हुयी थी। भयंकर बेरोजगारी के दौर मे नौकरी मिलना आसान काम न था। यों तो मेरे पास सवा तीन वर्ष सारू स्मेल्तिंग,मेरठ का और साढ़े नौ वर्ष मुगल होटल,आगरा का अनुभव था परंतु एक्सपेरिएन्स लेटर एक भी न था अतः किसी बड़ी क .के लिए एपलायी नहीं कर सकता था।

मैंने नौकरी करने के साथ-साथ साथियों को नौकरी मे अनेकों लाभ दिलवाए थे। एहसान फरामोशों की इस दुनिया मे जहां अधिकांश ने मुंह फेर लिया और कुछ थोथे दिलासे देते रहे। एक श्री हरीश चंद्र छाबरा ही मददगार के रूप मे सामने आए।

हरीश छाबरा 

09 जनवरी 1976 को जब अजय के मित्र के फुफेरे भाई करमाकर ने मेरे सिफ़ारिश पर नौकरी ज्वाइन  कर ली तो तत्काल क्षेत्रवाद से ग्रसित होकर मेरे विरोधी गुट मे शामिल हो गए। अतः 10 जनवरी 1976 को ज्वाइन करने वाले हरीश चंद्र छाबरा को मैंने गुप्त रूप से फौलादी समर्थन देना प्रारम्भ कर दिया। उन पर आए हर संकट मे मैंने उनके कवच के रूप मे कार्य किया। यहाँ तक कि विवाद की स्थिति मे मैंने उन्हें उनके पर्चेज डिपार्टमेन्ट से स्थानांतरित करके अपने अधीन अकौंट्स विभाग मे रखवा लिया। साइंस ग्रेज्युएट छाबरा जी को अकौंट्स की पेचीदगियाँ भी समझा दी। मुगल मे आने से पूर्व वह 'दयाल बाग एजुकेशनल इन्स्टीच्यूट' के प्रिंसिपल के पी ए थे। उनके पर्चेज विभाग मे कार्य के दौरान भी मे ही उनमे  हीन भावना का निस्तारण कराता था।
वह सिन्धी समुदाय से आते हैं और उनके पिताजी स्व.भोजराज छाबड़िया रेलवे मे क्लर्क थे। जब रिटायरमेंट के बाद उनका बेलनगंज माल गोदाम वाला रेलवे क्वार्टर छूटा तो वे लोग बिल्लोच्च पूरा मे राशन दफ्तर के पास रहने लगे थे। हरीश जी की माता जी के निधन के समय  यू एफ सी देव सदय दत्ता साहब ने उन्हें बेहद परेशान किया था। यहाँ तक कि शम शान घाट पर शामिल होने के कारण मेरा भी एक दिन का वेतन उन्होने कटवा   दिया था लीव एप्लिकेशन रिजेक्ट करके । ए यू एफ सी विनीत सक्सेना साहब ने मुझे दो दिन के वेतन के बराबर  धन कन्वेंस एलाउंस के रूप मे उसके कंपेनसेशन के रूप मे भुगतान करा दिया था। एक माह बाद दत्त साहब ने उसी रिजेक्ट एप्लिकेशन को एप्रूव करके पुराने कटे वेतन का भी भुगतान करा दिया।

इन्ही हरीश जी के मित्र आयुर्वेदिक चिकित्सक ने मुझे 'आयुर्वेद रत्न' करने मे सहयोग और सहाता प्रदान की थी जिन्हें हम लोगों ने अपना घरेलू डा . और पंडित तथा ज्योतिष सलाहकार बना लिया था। आगरा मे मेरी शुरुआती पहचान हरीश जी के माध्यम से ही बनी थी। झंजावातो  के समय उन्हें मुझसे जो सहयोग मिला था उसके प्रतिकार् स्वरूप  उन्होने मुझे जाब दिलाने का भरोसा  दिलाया। उनके एक मौसेरे साढू हींग की मंडी मे जूता कारोबारी थे और वह तथा उनके बड़े भाई एक ही मकान मे ऊपर-नीचे रहते हुये अलग-अलग व्यापार करते थे। हरीश जी ने उनके बड़े भाई से मेरे बारे मे जिक्र किया था। 30 मार्च 1985 शनिवार के दिन हरीश जी मुझे उनकी दुकान पर लेकर गए। उनके पास पहले से उनके सहपाठी रहे एक सज्जन पार्ट-टाईम  अकाउंटेंट थे जो सी ओ डी मे सरकारी नौकरी करते थे।  उन महाशय ने मुझे फूल टाईम अकाउंटेंट के रूप मे 01-04-1985 सोमवार से ज्वाइन करने को कहा। ले दही-ला दही सूत्र के अनुसार उनका पलड़ा भारी था और मे वेतन के संबंध मे बार्गेनिंग की स्थिति मे नहीं था। रु 700/-प्रतिमाह देने का उनका प्रस्ताव था ,मरता क्या न करता   सूत्र के अनुसार मेरे पास स्वीकार करने के अतिरिक्त कोई विकल्प न था।

पहली अप्रैल मूर्ख दिवस से मैंने यह नई नौकरी प्रारम्भ की जिसमे न कोई एपवोइनमेंट लेटर था न कोई हाजिरी रेजिस्टर न ही कहीं मुझे कोई हस्ताक्षर किसी भी रूप मे करने थे। मुझे 1984-85 की बेलेन्स शीट बनाने का कार्य सौंपा गया और करेंट वर्क पार्ट-टाईम अकाउंटेंट ही शाम को आकर करते रहे।  मेरा जाब पोस्ट-मारटम जाब था। यह पहला मौका था जब इंडिपेंडेंट रूप से मुझे किसी फाइनेंशियल ईयर की बेलेन्स शीट अपने आप स्वतः फाइनल करनी थी। इसके पहले मेरठ की सारू स्मेल्तिंग प्राइवेट लि क थी और मुगल होटल पब्लिक लिमिटेड क I T  C के होटल डिवीजन का एक यूनिट था। दोनों जगह डिवीजन आफ वर्क था और मेरे पास सिर्फ
फाइनेंशियल पार्ट ही था। बेलेन्स शीट के फाइनलिजेशन का कार्य मेनेजर लोग करते थे। सिर्फ हाईस्कूल मे मेरे पास कामर्स थी। इंटर मे आते ही मैंने आर्ट साइड ले ली थी। इस प्रकार यह एक जबर्दस्त चुनौती थी जिसमे कार्य का मूल्यांकन भी प्रोफेशनल्स द्वारा नहीं इन्कम टैक्स -सेल्स टैक्स कंसल्टेंट अर्थात वकील साहब द्वारा किया जाना था।

जिस व्यक्ति ने खतरों से खेलना अपना हाबी बना रखा हो वह घबरा कैसे सकता था?.................................... 

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गुरुवार, 18 अगस्त 2011

आगरा /1984-85 (भाग-2)

नवंबर 1983 मे यशवंत का जन्म हुआ और जनवरी 1984 मे शालिनी के रेलवे वाले भाई शरद मोहन का विवाह हुआ अतः हम लोगों के शामिल होने का सवाल ही नहीं था ,बउआ ने पहले ही उन लोगों से कह दिया था जाड़ों मे छोटे बच्चे को नहीं भेजेंगे यदि शामिल करना चाहें तो गर्मियों मे शादी करे। इसी प्रकार 1982 मे नवंबर मे यशवंत के बड़े भाई के होने और न रहने के तुरंत बाद उन लोगों ने दिसंबर मे शालिनी की छोटी बहन सीमा की शादी की  थी अतः उसमे भी वह शामिल न हो सकी थी। मुझे झांसी जाना पड़ा था। वहाँ बहनोयी साहब बड़ी भांजी को लेकर शामिल हुये थे उनकी सीधे रिश्तेदारी थी (कूकू की पत्नी मधु उनकी भतीजी जो हैं)।

अगले दिन मै बहन के घर गया था । बड़ी भांजी का हाथ पकड़ कर( और छोटी भांजी को गोद लेकर ) उसी से रास्ता पूंछ कर मिठाई की दुकान पर जाकर शुगन की मिठाई लेकर दे दी थी। इसी छोटी भांजी की देवरानी की भाभी है कूकू की वही बेटी जो दिसंबर 1983 मे  सीमा की शादी मे मेरे गोद मे आकार चुप हो जाती थी और और लोगों के पास रो रही थी।

मेरे सस्पेंशन पीरियड मे ही यूनियन के वार्षिक चुनाव हो रहे थे मुझ पर साथियों का दबाव था जब मेनेजमेंट ने वादा तोड़ा है तो तुम भी चुनाव लड़ कर सक्रिय हो जाओ। मैं केम्पस के भीतर तो प्रचार कर नहीं सकता था बाहर ही थोड़ी देर लोगों से मिल लेता था। वोटिंग 10 जनवरी को हुयी थी,मतगणना स्लो स्पीड से करने की मेनेजमेंट की हिदायत थी। साथियों का कहना था परिणाम की घोषणा के वक्त मौजूद रहो। अतः घर पर देर से आने की खबर करने गया  तो वहाँ शालिनी की माता और छोटी भाभी संगीता मौजूद थे जो यशवंत के जन्म के बाद वहाँ से आने वाले पहले लोग थे। मै तो सूचना देकर और चाय पीकर वापिस होटल मुगल जो हमारे घर से 9 K M की दूरी पर था के लिए चला तभी आगंतुक लोग भी वापिस टूंडला लौट गए।

रात 10 बजे परिणामों का खुलासा किया गया प्रेसीडेंट की टीम के 11 मे 10 तथा मेरे टीम के 11 मे 1 जो खुद मै था जीते थे। कुल पड़े मतो मे सेकेंड हाएस्ट वोट मुझे मिले थे। मेनेजमेंट समर्थकों का कहना था जैसे फरनाडीज़ को जेल मे रहते हुये सहानुभूति के वोट मिले थे उसी प्रकार मुझे सस्पेंशन के कारण इतने अधिक मत मिल गए। जबकि हकीकत यह थी कि अपने सेक्रेटरी जेनरल रहते मैंने निचले पोस्ट के लोगों को जो लाभ दिलाये थे उन्हे वे भूले नहीं थे और पुराने उपकार का प्रतिफल उन्होने वोट के रूप मे दिया था।

14 जनवरी 1985 को मकर संक्रांति  के दिन शरद मोहन और उनकी पत्नी संगीता अपनी शादी की वर्षगांठ 16 जनवरी का निमंत्रण लेकर आए और चूंकी यशवंत के जन्म के बाद वहाँ से पहली बार वह आए थे  तो उसके लिए खिलौने-कपड़े,मिठाई भी लाये थे। कड़ाके की सर्दी मे यशवंत और शालिनी तो नहीं गए मुझे ही औपचारिकता निबाहनी पड़ी।

चूंकि मै कार्यकारिणी का चुनाव जीत गया था और इस कार्यकारिणी के सेक्रेटरी और प्रेसीडेंट मेनेजमेंट का खिलौना थे अतः कोई बैठक तब तक नहीं बुलाई गई जब तक 19 फरवरी 1985 को मुझे टर्मिनेशन लेटर नहीं पोस्ट कर दिया गया। नौकरी खोने के बाद............. 

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मंगलवार, 9 अगस्त 2011

आगरा/१९८२-८३(भाग ३) / १९८४-८५ (भाग १)

आगरा लौटने पर भी शालिनी का मन अस्त-व्यस्त रहा उन्हें अपने दिवंगत पुत्र की याद सताती थी जो मात्र १२ घंटे ही जीवित रहा था.हमारी बउआ को बाँके बिहारी,मंदिर -वृन्दावन पर आस्था थी वहीं के दर्शन करके लौटते में बाबूजी का ट्रांसफर बरेली से सिलीगुड़ी होने का समाचार मिला था.शालिनी की माताश्री ने वृन्दावन दर्शन करने का सुझाव दिया तो बउआ ने उसका पालन करा दिया.वृन्दावन में इस बार हम लोग बउआ की माईं जी से भी मिलने गए जो घर पर मिल गयीं क्योंकि तब टी.बी.हास्पिटल से रिटायर हो चुकी थीं,इससे पूर्व बउआ कई बार गयीं वह नहीं मिली थीं.पुराने लोग तो पुरानी हमदर्दी से ही मिलते थे. 

चूंकि पिछली बार टूंडला पीहर भेजने पर शालिनी को बेटा खोना पड़ा था इस बार मैंने नहीं भेजने दिया तो बउआ ने कहा की उनसे काम नहीं होता है लिहाजा मुझे छुट्टी लेकर मदद करना होगा.२२ नवंबर को यशवन्त के जन्म के बाद एक हफ्ता केजुअल +सी.आफ तथा एक माह एनुअल लीव पर रह कर मदद की.

१९८४-८५ (भाग १)

जनवरी १९८४ में मैंने ड्यूटी ज्वाइन कर ली.यूं.ऍफ़.सी.पन्छू साहब के घर एक किलो गुड की गजक मिठाई की जगह दी जो उन्हें बहुत पसंद आई.स्टाफ के लोगों को रेवड़ियाँ बांटीं थीं उसमे से भी पन्छू साहब मांग कर घर ले गए थे.

१९८१-८२ की इन्वेंटरी रिपोर्ट बनाने में तीन लोग थे और फाईनल  ए.यूं.ऍफ़.सी ने की थी.१९८२-८३ की रिपोर्ट भी तीन लोगों ने बनायी थी और फाईनल ए.ओ.ने की थी.१९८३-८४ की रिपोर्ट भी तीन लोगों ने बनायी थी और दो लोग मेरे आधीन होने के कारण मैंने फाईनल की थी.मुझ से पहले मेनेजर और अफसर ने क्या फाईनल घपला किया मेरी जानकारी में नहीं था.मैंने वास्तविक और भौतिक-सत्यापन के आधार पर रिपोर्ट तैयार की थी जिसे देखते ही पछू साहब उछल पड़े क्या तुमसे पहले अफसर गलत थे?उन्होंने एडी-चोटी का दम लगा लिया कि,डिपार्टमेंटल  मेनेजर बुक वेल्यू को वेरीफाई कर दें ,लेकिन कोई क्यों गलत रिपोर्ट  पर दस्तखत  करता?यहाँ तक कि शेफ जो तमिल ही थे उन्होंने भी पन्छू साहब की दलील नहीं स्वीकारी.

मेरी रिपोर्ट से साफ़ था पूर्व में अधिकारियों ने पौने छः लाख का घपला किया था या तो माल आया ही नहीं और भुगतान हुआ या माल चोरी गया.श्रेय मुझे न देकर कं.के इन्टरनल आडीटर की रिपोर्ट में डलवा कर उतनी रकम को राईट आफ करवाया गया.चोरी पकड़ने का रिवार्ड मिलने की बजाय मुझे उत्पीद्नात्मक कारवाईयों का सामना करना पड़ा.

अक्षय तृतीया पर बउआ ने यशवन्त को बांके बिहारी मंदिर दर्शन कराने का फैसला किया उसका घर का नाम भी उन्होंने बांके ही रख दिया था.बाबूजी ने मंदिर में रु.१०/-पंडित को देकर यशवन्त को मूर्ती के निकट तक भिजवा दिया था.लेकिन वहां से लौटने के बाद ड्यूटी जाने पर मुझे सस्पेंशन लेटर थमा दिया गया.

इन्हीं सब घटनाओं का प्रभाव था कि माता-पिता के निधन के बाद मैंने आर्य समाज ज्वाइन कर लिया था.हालांकि शालिनी के निधन के बाद बाबूजी ने ही सर्व-प्रथम आर्य समाज से हवन कराया था क्योंकि अजय के पास समयाभाव था.

सस्पेंशन के बाद......

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मंगलवार, 2 अगस्त 2011

दूसरे वर्ष मे यह ब्लाग


'विद्रोही स्व- स्वर में'शीर्षक से एक तुकबंदी तब लिखी थी जब होटल मुग़ल,आगरा में किसी संघर्ष का समय था.अचानक किसी बात के जवाब में आफिस में तत्काल लिख कर इसे प्रसारित कर दिया था.इसी शीर्षक से यह  ब्लॉग भी चल रहा है और आज इसे प्रारम्भ किये हुए एक वर्ष भी पूर्ण हो गया है.यह अलग ब्लॉग बनाने का कारण यह था कि उसमें व्यक्तिगत संघर्षों का विवरण दिया जा सके.वैसे आम तौर पर किसी एक को दुसरे के व्यक्तिगत जीवन से तब तक कोई सरोकार नहीं होता जब तक कि उसका उसके व्यक्तिगत जीवन पर कोई प्रभाव न पड़ रहा हो.जिन बातोंका उल्लेख किया जा रहा है उनमें से किसी भी बात का प्रभाव ब्लाग जगत के किसी भी व्यक्ति पर नहीं पड़ता है.लेकिन यदि मैं कहीं असफल रहा हूँ तो क्या उससे बचा जा सकता था?या यदि सफलता हासिल की तो क्या और कोई भी उसी प्रकार सफल हो सकता है?दुसरे की ठोकर देख कर खुद को ठोकर खाने से बचाना चाहिए अतः वह ब्लॉग पढ़ने के बाद यदि कोई भी अपने जीवन में असफलता से बच कर सफल हो सके तो यह सब लिखना सार्थक हो सकता है -इसी ध्येय को लेकर 'विद्रोही स्व-स्वर में' ब्लाग शुरू किया था.

ब्लाग जगत में जैसा कि प्रचलंन है लोग अपने -अपने हिसाब से टिप्पणियाँ देते हैं.उस ब्लॉग पर मेरे उद्देश्य को भांप कर सटीक टिप्पणियाँ केवल डा.डंडा लखनवी जी ने ही दी हैं.उनके अतिरिक्त मनोज कुमार जी, वीणा श्रीवास्तव जी,अल्पना वर्मा जी,के.आर.जोशी साहब(Patali The Village),जी.एन.शा साहब भी टिप्पणी देने वालों में प्रमुख हैं.इन सभी के प्रति बहुत-बहुत आभार.

जब टिप्पणियों का जिक्र हुआ है तो  श्री राम शिव  मूर्ती  यादव साहब की प्रशंसा न करना अन्याय होगा.राम शिव मूर्ती जी ने मुझे अपना ब्लाग 'यदुकुल'देखने को निमंत्रित किया था.कुछ लेखों पर मैंने अनुकूल टिप्पणियाँ दी थीं परन्तु 'बाबा रामदेव 'सम्बंधित लेख पर मैंने प्रतिकूल टिप्पणी दी थी जिसे उन्होंने डिलीट नहीं किया है.उनके विपरीत एक अच्छे कवि ज्यादातर ई मेल द्वारा अपनी कवितायें देखने को कहते थे उनकी बाबा रामदेव संबंधी कविता पर भी विपरीत टिप्पणी की थी परन्तु उन्होंने उसे रोक लिया.जबकि वह जानते थे और देख चुके थे मेरे ब्लॉग पर राम देव विरोधी लेख था तो निमंत्रित ही क्यों किया?इन कवि महोदय के विपरीत मैंने अपने लेख पर अभद्र टिप्पणी लिखने वाले 'गर्व से...'पार्टी के ब्लॉगर की टिप्पणी को प्रकाशित कर दिया था.यह तुलना आर.एस.एस.संबंधी ब्लागर्स की फासिस्ट प्रवृति को उजागर करने हेतु की है.अतः राम  शिव  मूर्ती यादव साहब का बहुत-बहुत आभारी हूँ कि वह लोकतांत्रिक उदार विचारों का निर्वहन करते हैं.

उस ब्लॉग की शुरुआत बचपन के लखनऊ के काल से हुई थी और फिर क्रमशः बरेली,शाहजहांपुर,सिलीगुड़ी ,शाहजहांपुर,मेरठ,होते हुए आगरा में बिताए -अनुभव किये वर्णन दिए हैं.१९८१ और १९८२ में दो बार कारगिल टेम्पोरेरी ट्रांसफर पर गए वहाँ का वर्णन भी दिया है जो महत्वपूर्ण हैऔर जिन्हें केवल रक्षा मंत्रालय से संबद्ध मनोज कुमार जी ने ही समझा है..

अभी आगरा में बिताये और २७ वर्षों का वर्णन आना है तब उसके बाद ही लौट कर लखनऊ आने का क्रम होगा.किन्तु उस ब्लाग के एक वर्ष पूर्ण होने के अवसर का लाभ उठा कर इस दौरान यहाँ की कुछ बातों का उल्लेख करना अप्रासंगिक  न होगा.

अपने एक निकटतम और घनिष्टतम रिश्तेदार जो हमारे लखनऊ आने के प्रबल विरोधी रहे है और हाल ही में एक वैवाहिक कार्यक्रम में लखनऊ पधारने पर हमारे घर भी आये थे और उस घटना का थोडा विवरण इस ब्लॉग में दिया जा चूका है उसका दोहराव न करते हुए इतना ही बताना आवश्यक है कि वे क्यों हमारे लखनऊ पुनः आने के विरोधी थे.हम उन  पर अविश्वास नहीं करते थे और इसी बात का नाजायज फायदा वे लोग उठा कर हमें नुक्सान पहुंचाते रहे और यहाँ आने पर उसकी पोल खुल गई,यही भय उन्हें सताता था.उनके छोटे दामाद और उनके घनिष्ठ मित्र (और भतीज दामाद) कुकू के भतीज दामाद दोनों साफ्टवेयर इंजीनियर हैं उनकी मदद से उन लोगों ने पोल खुलने से पूर्व हमारे ब्लाग्स से कुछ तस्वीरें आदि गायब करा दीं.हालांकि इससे उन्हें क्या लाभ हुआ हम अब भी नहीं समझ सके हैं.परन्तु निष्कर्ष निकलता है कि उन्होंने यह ट्रायल इसलिए किया होगा कि भविष्य में उनकी कारगुजारियों का उल्लेख होने पर वे ब्लाग से उसे चोरी से हटा सकें.यही नहीं उनकी छोटी बिटिया ने फेक आई डी बना कर कुछ ढुलमुल यकीन ब्लागर्स को हमारे विरुद्ध अनर्गल लिख कर भेजा जिसका उन पर प्रभाव भी पड़ा.एक ब्लॉगर साहब ने तो ई.मेल् भेज कर प्रश्न उठाया जब मैं ब्राह्मण नहीं हूँ तो ज्योतिष क्यों कर रहा हूँ?जब आगरा में था तो डा.बी.एम्.उपाध्याय,डा.वी.के.तिवारी,श्री एम्.एल.दिवेदी,पं.सुरेश पालीवाल ,इ.एस.एस.शर्मा आदि अनेकों जन्मगत ब्राह्मणों ने मुझ से ग्रह शान्ति और हवन करवाए थे;किसी ने भी मेरे गैर-ब्राह्मण होने का परहेज नहीं किया था.अब भी एक ब्राह्मण ब्लॉगर ने अपनी जन्म-पत्री का विश्लेषण मुझ से करवाया है.समय -समय पर मैं ज्योतिष संबंधी चेतावनियाँ इसी ब्लॉग में देता रहता हूँ. विमान एवं रेलों की दुर्घटनाएं और मुम्बई बम -विस्फोट उन विश्लेषणों के सही होने के प्रमाण हैं.लेकिन आरी में जब लकड़ी के हत्थे लगते हैं तब ही लकड़ी  कटती है उसी प्रकार जब अपने ही लोग मुखालफत करते हैं तब ही उसका असर होता है.यही सोच कर धूर्त-मंडली ने हमारे रिश्तेदार महोदय को मोहरा बना रखा है और वे बने आ रहे हैं.

वैसे तो उन साहब की मौसी के देवर श्री सतीश माथुर ने हमारे भाई अजय से बहुत पहले बहुत कुछ बताया था,लेकिन हम लोग समझते थे कि वे हमारे साथ अपनी कलाकारी नहीं दिखाएंगें जो हम लोगों की भारी भूल सिद्ध हुई और उसी गलती का खामियाजा अब तक भुगतते रहे.हमारे लखनऊ आने पर उन्होंने अपने इंजीनियर मित्र के अनुज लुटेरिय  तथा बाबूजी के एक वकील भतीजा का माध्यम लेकर हमें हर तरह से परेशान  करने का उपक्रम बना लिया.वे यह सिद्ध करना चाहते हैं कि हमने लखनऊ आकर भारी गलती की.क्योंकि अब यहाँ उनका अलीगढ़ का जादू फेल हो गया तो ओछे हथकंडों का सहारा लिया.यूं तो वे अपनी छोटी बेटी की शादी के समय से रिश्ते तोडना चाह रहे थे परन्तु अब लखनऊ आकर ऐसे करतब कर गए जिनके बाद (वे रिश्ते में सबसे छोटे और मैं सबसे बड़ा था इसलिए चुपचाप बर्दाश्त कर रहा था उन्हें लगता था वे अपने अमीर होने के नाते झुका रहे हैं) व्यर्थ में  अब और झुकना हमारे लिए भी मुश्किल हो गया.'एक बिल्ली की याचना भरी पुकार' लेख में उल्लेख सचित्र किया था कि बिल्ली के बच्चों को दूध इसलिए दिया कि वे ताकतवर होकर हमारे घर से चले जाएँ और वे पास में ही अन्यत्र चले गए.किन्तु दूध का दान (जरूरतमंद को देना दान ही है)हमारे लिए घातक  है.परिणामतः एक रोज(२७ जून २०११) तेज बारिश में ऊपर से कपडे लाते में मैं सीढ़ियों पर फिसलता चला गया.चोटें तो बहुत आईं,किन्तु अपनी वैज्ञानिक पूजा पद्धति के बल पर झेल गया और अपनी ही दवाओं से ठीक भी हो गया.१९८२ में कुकू और उसकी माँ ने भी मेरी हत्या करने का प्रयास किया था तब भी बच ही गया था इलाज करने वाले .डा.आर.के.टंडन ने उस एक्सीडेंट की पुलिस में रिपोर्ट करना चाहा था परन्तु बाबूजी ने ही पता नहीं क्यों उन्हें रोक दिया जो आगे के लिए बहुत घातक सिद्ध हुआ.इन लोगों ने हमेशा कुक्कू परिवार को फायदा पहुंचाने का प्रयत्न किया है.कोशिश तो इन लोगों ने यशवन्त को भी मुझ से अलग करने की बहुत की.नाकामयाब रहने पर उसे क्षति पहुंचाने के नित नए प्रयास खुद और अपनी बेटी-दामाद के माध्यम से करते रहते हैं.मैं किसी को नुक्सान नहीं पहुंचाता इसलिए खुद भी नुक्सान उठाने से बच ही जाता हूँ.२७ दिसंबर२०१०  को पूनम भी सीढ़ियों से रात में गिर गईं थीं इसी प्रकार तब भी उपचार किया था. अभी ०८ जुलाई को रात के समय बिल्ली और उसके बच्चों पर बिलौटा ने हमला कर दिया वे सब हमारे घर की छत पर आ कर बचाव की गुहार करने लगे.बिलौटा को भगाया तो वह भागते समय दीवार पर बैठे बिल्ली के दोनों काला व भूरा बच्चों पर कूदता हुआ गया.काला वाला हमारे घर की छत पर गिरा उसे कम चोट लगी यशवन्त ने तो उसे हाथ का सहारा देकर रोका और २० फुट नीचे गिरने से बचा लिया, किन्तु भूरा वाला दुसरे के घर की नीची छत पर गिरा उसके पिछले दोनों पैरों में गंभीर चोटें आ गईं.पहले पूनम ने उसकी रक्षा हेतु खुद स्तुतियाँ कीं फिर मुझे भी करने को कहा.हालांकि वे सब दुसरे के घर पर डेरा डाले थे परन्तु उनके जीवन की रक्षार्थ सफल प्रार्थना हम लोगों ने की और अब वह बिल्ली बच्चा भी ३० फुट ऊपर-नीचे चढ-उतर जाता है.हमारी वैज्ञानिक और पोंगा-पाखण्ड रहित पूजा पद्धति का मखौल ब्लॉग जगत में खूब हुआ है किन्तु प्रत्येक प्राणी का कल्याण केवल उसी से संभव है;ढोंग वाली विकृत पद्धति जिसका पालन ज्यादातर लोग करते हैं केवल लूट और शोषण का रक्षण करती है.अफ़सोस है कि पढ़े-लिखे विद्वान और उच्चाधिकारी भी इंसान की बनाई मूर्तियों को पूजते तथा घंटे बजा कर गौरान्वित होते हैं.27 जूलाई से हमने 'जन हित मे' एक नए ब्लाग के माध्यम से कुछ स्तुतियों को सार्वजनिक करना भी प्रारम्भ किया है .

लखनऊ वापिसी का लाभ इतना ही है कि हमें इंटरनेट में ब्लॉग के माध्यम से अनेकों विद्वानों के विचारों को जानने का मौका मिला उनमें से कुछ से व्यक्तिगत मुलाक़ात भी हुई और अनुभव अच्छा रहा.इस वर्ष लखनऊ में 'आल इण्डिया स्टुडेंट्स फेडरेशन ' के ७५ वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में एक समारोह अमीनाबाद के गंगा प्रसाद मेमोरियल हाल में संपन्न होने जा रहा है.व्यक्तिगत रूप से उसमें भाग लेने का अवसर मिल रहा है,यदि अभी आगरा में रहता तो मेरे लिए यहाँ आकर भाग लेना मुमकिन नहीं हो पाता.हमारे वे रिश्तेदार कहते हैं सम्मान से पेट नहीं भरता है मुफ्त में इंटरनेट पर सलाह देना बंद करो.उम्र और रिश्ते में छोटे होकर वे हमें बेढंगा उपदेश देते हैं.पेट तो भिखारी  और जानवर भी भर लेते हैं किन्तु उनका मान-सम्मान क्या  है?

मनोज कुमार जी,डा.दराल साहब,डा.डंडा लखनवी जी  सरीखे विद्वान जब अपनी टिप्पणियों में सराहना करते हैं तो हम समझते हैं कि हमारा लिखना सार्थक है.धन तो टिकाऊ होता नहीं है ये सद्भावनाएं हमारे लिए  अमूल्य निधि हैं.

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