बुधवार, 30 मार्च 2011

आगरा में १९७५

इमरजेंसी के दौरान बगैर किसी सोर्स और फ़ोर्स के आयी .टी.सी.के निर्माणाधीन होटल मोगुल ओबेराय में जाब मिलने तथा प्रोजेक्ट में कमर्शियल मेनेजर बदल जाने का विवरण पहले दे चुके हैं.यह खन्ना सा :पहले सिगरेट कं.में क्लर्क के रूप में भरती  हुए थे और तरक्की करते -करते इस मुकाम तक पहुंचे थे.अवकाश ग्रहण करने के बाद भी कं .ने ससम्मान उन्हें होटल डिवीजन के गठन के समय बुलाया हुआ था और आगरा में स्थानांतरित कर दिया था.वह कहते थे'-दिस इज नाट ए हिन्दुस्तानी छकड़ा कं.'अगर यहाँ जम गए तो भविष्य सुनेहरा है.५ बजे सायं ड्यूटी समाप्त होने बाद भी कभी-कभी तो ९ -१० बजे रात तक रुक कर कार्य करना पड़ता था.धन तो नहीं परन्तु पूरा मान- सम्मान वह देते और दिलाते थे.इलेक्ट्रिकल इंजीनियर द्वारा डुप्लीकेट बिल पास कर दिया गया और चेकिंग में पकड़ने पर जब वह भड़क गए तो खन्ना सा :ने खुला समर्थन मुझे देकर उन्हें आगे से सचेत रहने को कहा था.इसी प्रकार हार्टीकल्च्रिस्ट सरदार कमल जीत सिंह का पास किया गलत बिल पकड़ने पर भी मुझे खन्ना सा :का समर्थन तो मिला ही सरदार जी ने अफसर होने के बावजूद मुझसे मित्रवत संपर्क बना लिया तब उनकी देखा-देखी बलबीर सिंह यादव जी ने भी वैसा ही किया.इन दोनों अफसरों ने यह कहा आगे से गलती पकड़ना तो सीधें  हमें बताना हम खुद ही ठीक करा देंगे.सिक्यूरिटी आफीसर जगदीश चन्द्र चौधरी सा :डी.एस.पी.इंटेलीजेंस की पोस्ट से तभी-तभी रिटायर होकर आये थे और बेहद रौब में रहते थे.एक बार खन्ना सा :और प्रोजेक्ट मेनेजर दोनों की गैर हाजिरी में मुझसे कोई अर्जेंट पेमेंट विदाउट अप्रूवल करने को दबाव बनाने लगे की मैं इंटेलीजेंस में रहा हूँ सब मुझ से दबते हैं -तुम मुझ से कानूनी बात मत करो और चुप-चाप पेमेंट दे दो. मैंने नियम विरुद्ध भुगतान  नहीं किया और उन्होंने खन्ना सा :के आते ही मेरी शिकायत करके नौकरी से हटाने की सिफारिश कर दी.खन्ना सा :ने मजबूती से मेरे कदम का समर्थन किया और भविष्य के लिए यह समाधान दिया -जब अप्रूव करने वाला कोई मेनेजर न हो और किसी दुसरे अफसर को रु.की जरूरत हो तो उन अफसर को I .O .U .लिखवा कर वांछित रकम मैं दे दूं और यह रुक्का कैश माना  जाएगा बिल उस अफसर को पास कराकर देना ही होगा.बिल न देने पर यह उस अफसर का पर्सनल एडवांस माना जाएगा.

एक बार कं.की और अटैच्ड दोनों कारें कहीं गयीं हुईं थीं और अर्जेंट कैश छीपी -टोला स्थित स्टेट बैंक से लाना था जो लाख से ऊपर की रकम थी.खन्ना सा :ने सिक्यूरिटी आफीसर चौधरी सा :को बुला कर उनके पर्सनल स्कूटर पर मुझे उनके साथ कैश लाने भेजा.उस दिन  से चौधरी सा :मेरे अभिन्न मित्र बन गए. जब कभी मुझे समय मिलता या लंच समय में (क्योंकि मैं घर से खा कर जाता था और वहां नहीं खाता था)चौधरी सा :के पास बैठता था ऐसा उन्होंने ही कहा था और खन्ना सा :का भी समर्थन था.लेखा -विभाग,पुलिस और इंटेलीजेंस की गतिविधियों तथा कार्य शैली पर उनसे चर्चा चलती थी.वह जो रिपोर्ट प्रोजेक्ट मेनेजर को देते थे मुझे पढवा देते थे.इस प्रकार यह एक और ट्रेनिंग मुफ्त में होती गयी.चौधरी सा :के पास इंटेलीजेंस के इन्स्पेक्टर लोग आते रहते थे उनसे भी उन्होंने परिचय करवा दिया था.जब तक आगरा में रहे इस परिचय का पूरा लाभ मिला.

शोभा की शादी के लिए बाबूजी ने राशन दफ्तर में परमिट के लिए अर्जी दी थी और यह जानते हुए भी कि वह डिफेन्स एम्प्लाई हैं वहां रिश्वत माँगी जा रही थी.मैंने चौ.सा :से कहा और उन्होंने इंटेलीजेंस इन्स्पेकटर  से एवं परमिट मुझे उन इंटेलीजेंस इन्स्पेक्टर ने ला कर दे दिया एक पैसा भी रिश्वत नहीं देनी पडी.मुझे तीन दिन से ज्यादा की छुट्टी नहीं मिली ,अभी ज्वाईन किये पूरे दो माह भी नहीं हुए थे.हाँ ड्यूटी पर ज्यादा देर नहीं फालतू रोका.प्रोजेक्ट का काम काफी तेजी से चल रहा था इसलिए रात को शादी के वक्त कोई नहीं आया ऐन शादी के रोज दोपहर में सुदीप्त मित्र हाजिरी लगा गए थे.भुआ-फूफा जी और दोनों भाभी जी (देवेन्द्र भाई सा :एवं लाखेश भाई सा :की पत्नियाँ )चार दिन पहले आ गए थे.मामा जी -माईं जी दो दिन पहले आये उन्हीं के साथ बाबू जी के एक भतीजा भी आये थे जिन्हें पग -धुलाई करना था.पग -धुलाई में उन्हें जो सूट शोभा की सुसराल से मिला उसे फूफा जी के उकसावे पर घटिया बता दिया.

भुआ ने मंजू भाभी जी (लाखेश भाई सा :जिनका घर अब हमारे घर से मात्र एक कि.मी.होगा और अब अमीरी के नशे में हमसे संपर्क नहीं रखते हैं की पत्नी)की तारीफों के पुल बांधते हुए ब्रेड की बर्फी उनसे बनाने को कहा. डेरी से लाया दूध स्टोव पर चढ़ा कर वह कहीं इधर-उधर हो गयीं और काफी दूध उबल कर बर्बाद हो गया.फिर बंदोबस्त करके दूध लाये और तब ब्रेड की बर्फी बनी जिसे रंजना मौसी (जो शोभा की जेठानी भी हैं  )को छोड़ कर किसी ने भी पसंद नहीं किया और फफूंद कर बर्बाद हो गई.फूफा जी ने मंडी से बैगन ला कर रख दिए वह सब्जी भी नहीं पसंद की गई.भुआ ने बरात की विदा के समय ठोस नाश्ता नहीं देने का प्रोग्राम बनवा दिया नतीजतन ऐन वक्त पर मामा जी को खुद हलवाई के साथ जुट कर कुछ ठोस नमकीन सिकवाना पड़ा.

मैंने रु.२७५ (एक माह का वेतन)में एक आल परपज फैन(जो छत ,दीवार और मेज सब पर इस्तेमाल हो सकता है)गिफ्ट में दिया था.अजय जो पढ़ रहे थे और जिनका कुछ माह पहले भीषण  एक्सीडेंट हुआ था कमजोर और चिडचिडे भी थे अपने मिले-मिलाये रु. से एक टाईम पीस घड़ी खरीदी थी जिसे मामाजी ने बाबूजी से कमलेश बाबू को दिलवा दिया और अजय का कोई गिफ्ट न रहा;उस पर वह भड़क गए और विदा के समय बहन-बहनोई को छोड़ने बाहर तक नहीं आये.बाद में माईं जी ने पोट-पाटकर राजी किया.लता मौसी की शादी में १९६९ में शाहजहांपुर में भी अजय के भड़कने पर उन्हीने रजामंद किया था और आज हमसे जो कट-आफ किये हुए हैं वह भी उन्हीं के इशारे पर ही. शोभा की शादी तो शाह गंज में मकान लेकर हुयी थी फिर रुई की मंडी में शिफ्ट हो गए  थे.शायद अजय ही अलीगढ़ बहन को बुलाने गए थे.यह मकान रेलवे फाटक के पास था यहाँ से बाबू जी का दफ्तर नजदीक था वह और मैं अलग-अलग दिशाओं में ड्यूटी जाते थे अपनी-अपनी साईकिलों से.

मकान मालिक पोपली सा : पोस्ट आफिस से रिटायर्ड थे और अच्छे व्यक्ति थे.उनके एक मित्र हमारे होटल में सब कंट्राक्टर थे.वह मुझे एक सौ रु. माहवार भुगतान करके अपने बिल विदाउट चेकिंग पेमेंट करवाना चाहते थे. मैंने पोपली सा :को स्पष्ट इनकार कर दिया न तो ऐसा पैसा लूँगा न आँख बंद कर पेमेंट करूंगा. परन्तु पोपली सा :ने बुरा नहीं माना.आज की बात होती तो मकान खाली करने को कहा जाता.जनवरी १९७६ में शोभा को उनके देवर अलीगढ़ बुला ले गए .बाकी फिर.........


 














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